Shri Mataji
Voice: Anjali Kadri
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Shri Mahalakshmi Ashtakam is a devotional hymn dedicated to Shri Mahalakshmi,
who is a Primordial Cause of Sustenance or Evolution.
This stotram is a part of Padma Purana.
Lord Indra first recited this stotra in praise of Goddess Mahalakshmi.
The first eight stanzas of the stotra are composed in praise of Devi Mahalakshmi, The rest of the stanzas talk about the benefits of chanting Mahalakshmi Ashtakam.
Salutations to you O Mahamaya,
One who resides in Shri Peetha (her abode) and is adored by the Gods, One who holds the Shankha (Conch-shell), the Chakra (Discus) and the Gada (Mace):
Reverential Salutations to You, O Devi Mahalakshmi.
Salutations to the One who is riding the Garuda (Lord Vishnu’s Vahana).
The One, who destroyed the demon Kola Asura.
The One, who destroys all sins caused by the mind, body, and soul.
I worship thee, Devi Mahalakshmi.
The One, who is aware of everything in the creation,
One who fulfills all desires,
One who is the destroyer of all evils,
One who removes all miseries.
I worship thee, Shri Mahalakshmi.
The one who bestows success and intelligence.
The one who gives liberation or Moksha (Salvation).
The one who is an embodiment of all Mantras,
I worship thee, Devi Mahalakshmi.
who is Without Beginning (Aadi) and Without End (Anta),
and who is the Great Goddess representing the Primordial Power (Adi Shakti).
The one who is the born of Yoga (union with divine), the one who is one with Yoga.
I worship thee, Shri Mahalakshmi.
The one who is gross, subtle and most terrifying,
the one who has great powers,
I worship thee, Devi Mahalakshmi.
The one who is seated on a lotus,
who can assume the form of Supreme Brahman,
who is the Supreme Goddess and the Mother of the Universe;
Reverential Salutations to You, O Devi Mahalakshmi.
One who is clad in pure white clothes,
one who is adorned with many ornamentations,
who abides within the Universe as the Mother of the Universe
directing our lives and all activities;
Reverential Salutations to You, O Devi Mahalakshmi.
Now, here comes the Benefits of chanting Shri Mahalakshmi Ashtakam
He who recites this Mahalakshmi Ashtakam with Devotion
will attain all accomplishments and Prosperity all the time.
Reciting this once everyday destroys great sins.
Reciting this twice everyday bestows one with wealth and food.
Reciting this thrice every day destroys great enemies.
One who keeps Her happy is blessed with divine boons for eternity.
श्री महालक्ष्मी अष्टकम् देवी श्री महालक्ष्मी को समर्पित स्तोत्र है,
जो जीविका या विकास का मूल कारण है।
यह स्तोत्र पद्म पुराण का भाग है।
भगवान इंद्र ने सबसे पहले देवी महालक्ष्मी की स्तुति में इस स्तोत्र का पाठ किया था।
स्तोत्र के पहले आठ श्लोक देवी महालक्ष्मी की स्तुति में रचे गए हैं,
बाकी श्लोक महालक्ष्मी अष्टकम् का जाप करने के लाभों के बारे में बताते हैं।
हे महामाया, आपको नमस्कार है।
जो श्री पीठ में निवास करती है और देवताओं द्वारा पूजनीय है, जो शंख, चक्र और गदा धारण करती है।
हे देवी महालक्ष्मी, आपको श्रद्धापूर्वक नमस्कार।
गरुड़ की सवारी करनेवाली देवी, जिसने राक्षस कोलासुर को नष्ट कर दिया।
जो मन, शरीर और आत्मा के कारण होनेवाले सभी पापों को नष्ट करती है।
हे देवी महालक्ष्मी, आपको श्रद्धापूर्वक नमस्कार।
जो सृष्टि की हर चीज़ से अवगत है,
जो सभी इच्छाओं को पूर्ण करती है,
जो सभी बुराइयों का नाश करती है,
जो सभी दुखों को दूर करती है।
मैं आपकी पूजा करता हूँ, श्री महालक्ष्मी।
जो सफलता और बुद्धि प्रदान करती है, मोक्ष देती है,
जो सभी मंत्रों का स्वरूप है,
हे देवी महालक्ष्मी, मैं आपकी पूजा करता हूँ।
जो आदि नहीं है और अंत भी नहीं है,
जो स्वयं आदि शक्ति है, स्वयं योग से उत्पन्न हुई देवी जो स्वयं योग है।
मैं आपकी पूजा करता हूँ, श्री महालक्ष्मी।
जो स्थूल, सूक्ष्म और अत्यंत भयानक है, जिसके पास महान शक्तियाँ हैं।
जो कमल पर विराजमान है, जो परम ब्रह्म का रूप धारण करती है,
जो सर्वोच्च देवी - जगन्माता है,
हे देवी महालक्ष्मी, आपको श्रद्धापूर्वक नमस्कार।
जो शुद्ध श्वेत वस्त्र पहने हुए है,
जो अनेक आभूषणों से सुशोभित है,
जो ब्रह्मांड के भीतर ब्रह्मांड की माता के रूप में निवास करती है
हे देवी महालक्ष्मी, आपको श्रद्धापूर्वक नमस्कार।
फलश्रुति :-
जो इस महालक्ष्मी अष्टकम् का भक्तिपूर्वक पाठ करता है
हर समय सभी सिद्धियाँ और समृद्धि प्राप्त होगी।
इसका प्रतिदिन एक बार पाठ करने से बड़े-बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं।
इसका प्रतिदिन दो बार पाठ करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
इसका प्रतिदिन तीन बार पाठ करने से बड़े-बड़े शत्रुओं का नाश होता है।
जो उन्हें प्रसन्न रखता है, उसे अनंत काल तक दैवीय वरदान प्राप्त होता है।
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