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  • Dharm Darpan
  • 2021-10-16
  • 194
#Dharm
#Renuka ji#Darm Darpan#Parashuram#Jamdagni#Sahastrabahu#Renuka
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Описание к видео #Dharm

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के नाहन से 40 किलोमीटर दूर एक धार्मिक स्थल स्थित है। इसका नाम है श्री रेणुका जी तीर्थस्थान। रेणुका जी ऋषि जमदाग्नि की पत्नी औरभगवान परशुराम की मां थीं। यहां प्रदेश की सबसे बड़ी झील है जिसका नाम रेणुका जी के नाम पर रेणुका झील रखा गया है।यह झील कई हेक्टेयर तक पैली है। यहां हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी से लेकर पूर्णिमा तक मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले के दौरान उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा,उत्तर प्रदेश और अन्य क्षेत्रों से श्रद्धालु आते हैं और रेणुका झील में स्नान करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस झील में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं। माना जाता है कि इस दौरान मां रेणुका से मिलने भगवान परशुराम महेंद्रगिरि पर्वत से रेणुका तीर्थ स्थान तक आते हैं और मां से मिल कर फिर महेंद्रगिरि पर्वत लौट जाते हैं जहां वे वर्षों से सूक्ष्म रूप में तपस्या कर रहे हैं।
अमरता का वरदान पाये चिरंजीवियों में से एक हैं भगवान परशुराम भी हैं। ऐसी मान्यता है कि वे आज भी पृथ्वी पर विद्यमान हैं। परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। भगवान परशुराम के बारे मान्यता है कि साल में एक बार वह अपनी मां से मिलने हिमालय के एक दिव्य स्थान पर जरूर आते हैं। यह स्थान है हिमाचल के जिला सिरमौर की रेणुका झील, जिसे पहले राम सरोवर के नाम से जाना जाता था। इस पावन झील को भगवान परशुराम की माता रेणुका का स्थायी निवास माना जाता है, जहां पर सदियों से वह वास कर रही हैं।
मान्यता है कि जब सहस्त्रबाहु ने जमदग्नि ऋषि के आश्रम में आक्रमण किया और उनकी कामधेनु गौ को बलपूर्वक ले जाने लगा। महर्षि जमदाग्नि ने कामधेनु को देने से इंकार कर दिया। उनके मना करने से क्रोधित होकर सहस्त्रबाहु ने महर्षि की हत्या कर दी। इस घटना से दु:खी होकर भगवान परशुराम की मां रेणुका ने राम सरोवर (जो अब रेणुका झील के नाम से जाना जाता है) में कूद कर सर्वदा के लिए ले ली जलसमाधि।
परशुराम को जब इस घटना के बारे में पता चला तो उन्होंने अपने फरसे से सहस्त्रबाहु का वध कर दिया। साथ ही अपने तपबल से पिता को भी नया जीवन दे दिया। इसके पश्चात् भगवान परशुराम ने अपनी मां रेणुका से झील से बाहर आने की विनती की। तब उन्होंने कहा कि वह अब हमेशा के लिए इसी झील में वास करेंगी लेकिन साल में एक बार वह जरूर भगवान परशुराम से मिलने आएंगी। इसी के बाद से इस झील भगवान परशुराम की मां के नाम से जाना जाने लगा। उसके बाद इस रेणुका झील की आकृति लेटी हुई महिला की तरह हो गयी।
हर वर्ष यहां मेला लगता है जिसमें आयी माताएं अपने पुत्रों के लम्बे जीवन की कामना करती हैं।अ
महर्षि जमदग्नि की संतान और विष्णु के अंशावतार भगवान परशुराम ने पिता की आज्ञा सेर अपनी माता का सिर काट दिया था और फिर वरदानस्वरूप उन्हें पुनर्जीवित करने की मांग की थी। बाह्मणों में पूजे जाने वाले भगवान परशुराम और माता रेणुका यहां सभी जाति के लोगों में कुलदेवता माने जाते हैं। गिरी नदी के किनारे , हरे-भरे पहाड़ों के बीच बने मंदिर परिसर में माता-पुत्र दोनों के मंदिर और रेणुका जी झील स्थित है.
परशुराम ने अपनी माता का वध क्यों किया था यह कहानी भी जाननी जरूरी है। एक दिन ऐसा हुआ कि परशुराम की माँ रेणुका नदी में स्नान करने गयीं तो वहां पर उन्होंने राजा चित्ररथ को अप्सराओं के साथ स्नान करते तथा क्रीड़ा करते हुए देखा। राजा चित्ररथ दिखने में बहुत आकर्षक तथा सुंदर शरीर वाले थे। अन्य अप्सराओं के साथ उनकी क्रीड़ा को देख कर रेणुका का मन भी प्रफुल्लित हो उठा तथा वह उसे देखती रहीं। इसी कारण उन्हें स्नान करके वापस आश्रम में आने में देरी हो गयी।
जब रेणुका स्नान करके वापस आश्रम लौटीं तो उनके हाव भाव बदले हुए थे तथा उनके मन में अभी भी वही दृश्य चल रहा था। चूँकि ऋषि जमदग्नि एक महान तपस्वी थे तो उन्होंने अपने तप के बल पर संपूर्ण बात का पता लगा लिया तथा रेणुका का मन भी पढ़ लिया। यह देखकर उन्हें इतना ज्यादा क्रोध आया कि उन्होंने अपने सबसे बड़े पुत्र को अपनी माँ का गला काट देने का आदेश दिया।
उनका सबसे बड़ा पुत्र अपनी माँ के प्रेम में ऐसा नहीं कर पाया। तब उन्होंने अपने दूसरे तथा तीसरे पुत्र को भी यही आदेश दिया लेकिन उन्होंने भी ऐसा करने में असमर्थता जतायी। एक ओर माँ की हत्या का पाप लगता तो दूसरी ओर पिता की आज्ञा की अवहेलना करने का पाप। यह एक धर्मसंकट था लेकिन उन्होंने मातृ हत्या करने से मना कर दिया।
पुत्रों द्वारा अपनी आज्ञा ना मानने से ऋषि जमदग्नि को अत्यधिक क्रोध आया और उन्होंने अपने तीनों पुत्रों को श्राप दिया कि वे अपना विवेक, बुद्धि और ज्ञान खो देंगे।
इसके पश्चात ऋषि जमदग्नि ने अपने सबसे छोटे पुत्र परशुराम को अपनी माँ रेणुका का मस्तक धड़ से करने का आदेश दिया। पिता का आदेश मिलते ही परशुराम ने बिना देर किये एक पल में अपनी माँ का सिर धड़ से अलग कर दिया।
यह देख कर परशुराम के पिता जमदग्नि अत्यधिक प्रसन्न हुए तथा परशुराम से कोई वरदान मांगने को कहा। परशुराम ने अपने पिता से तीन वर मांगे। पहले वर में उन्होंने अपनी माँ को पुनः जीवित करने को कहा, दूसरे वर में उन्होंने माँगा कि उनकी माँ को उनका सिर काटे जाने की घटना याद ना रहे। तीसरे वर में उन्होंने अपने तीनो भाइयों का विवेक व बुद्धि वापस किये जाने का वरदान मांग लिया।
जमदग्नि अपने पुत्र परशुराम की समझदारी से बहुत प्रसन्न हुए तथा उन्होंने उसे तीनों वर प्रदान कर दिए। इसके पश्चात सब कुछ फिर से सामान्य हो गया तथा परशुराम जी की माँ पुनः जीवित हो उठीं।
भगवान परशुराम ने अपनी माँ रेणुका को पुनः जीवित तो करवा लिया था लेकिन उनके ऊपर मातृ हत्या का पाप लग चुका था। इससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने भगवान शिव की कठिन तपस्या की थी तथा मातृ हत्या के पाप से मुक्ति पायी।
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