प्रेम बत्तियां – श्री सूरदास जी महाराज (श्री हित अंबरीश जी)

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स्याम अचानक आइ गए री।
मैं बैठी गुरुजन बिच सजनी, देखतही मेरे नैन नए री।।
तब इक बुद्धि करी मै ऐसी, बेदी सौ कर परस कियौ री।।
आपु हँसे उत पाग मसकि हरि, अंतरजामी जानि लियौ री।।
लै कर कमल अधर परसायी, देखि हरषि पुनि हृदय धरयौ री।
चरन छुए दोउ नैन लगाए, मैं अपनै भुज अंक भरयौ री।।
ठाढ़े रहे द्वार अति हित करि, तबही तै मन चोरि गयौ री।
'सूरदास' कछु दोष न मेरौ, उत गुरुजन इत हेत नयौ री।।

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