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Скачать или смотреть गिरिराज (हिमालय) कृत शिवस्त्रोतम।

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  • 2025-08-28
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गिरिराज (हिमालय) कृत शिवस्त्रोतम।
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Описание к видео गिरिराज (हिमालय) कृत शिवस्त्रोतम।

गिरिराज (हिमालय) कृत शिवस्त्रोतम ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्मखंड का प्रसिद्ध स्तोत्र है, जो हिमालय पर्वत (पर्वतराज) द्वारा भगवान शिव की महिमा में रचित है। यह शिवस्त्रोतम संस्कृत में उपलब्ध है और साधक के लिए कल्याणकारी, संकटमोचक और सर्व-सिद्धि प्रदायक माना जाता है.

शिवस्त्रोतम (संस्कृत पाठ)
हिमालय उवाच—

त्वं ब्रह्मा सृष्टिकर्ता च त्वं विष्णुः परिपालकः।
त्वं शिवः शिवदोऽनन्तः सर्वसंहारकारकः ॥१॥

त्वमीश्वरो गुणातीतो ज्योतीरूपः सनातनः।
प्रकृतिः प्रकृतीशश्च प्राकृतः प्रकृतेः परः ॥२॥

नानारूपविधाता त्वं भक्तानां ध्यानहेतवे।
येषु रूपेषु यत्प्रीतिस्तत्तद्रूपं बिभर्षि च ॥३॥

सूर्यस्त्वं सृष्टिजनकः आधारः सर्वतेजसाम्।
सोमस्त्वं शस्यपाता च सततं शीतरश्मिना ॥४॥

वायुस्त्वं वरुणस्त्वं च त्वमग्निः सर्वदाहकः।
इन्द्रस्त्वं देवराजश्च कालो मृत्युर्यमस्तथा ॥५॥

मृत्युञ्जयो मृत्युमृत्युः कालकालो यमान्तकः।
वेदो वेदकर्ता चैव वेदाङ्गानि च सर्वशः ॥६॥

त्वं विद्वद्विद्वदाचार्यः मन्त्रो जपस्तपस्तथा।
फलदाता तपस्वीनां वाणी वाक्यस्वरूपिणी ॥७॥

त्वं वाक्यमन्त्ररूपश्च वाग्मी सरस्वतीस्वरः।
स्तुति ते सरस्वतीबीजे सतां दुर्वाच्यवर्णना ॥८॥

त्वं गृह्णासि नमस्कारं त्वं विभासि नमः शिवः।
त्वं धन्यः पूजनीयश्च त्वं भववैदिकः प्रभुः ॥९॥

मायात्मा मायिनां स्वामी भक्तानां परिपालकः।
त्वं चतुर्वर्गदाता च शिवः सर्वार्थदायकः ॥१०॥

धनार्थी लभते धन्यं पुत्रार्थी पुत्रमाप्नुयात्।
काम्यं कामयते कामं राज्यं राज्यमवाप्नुयात् ॥११॥

चिरकालगतं वस्तु लभते सहसा ध्रुवम्।
राज्यभ्रष्टो लभेद्राज्यं शङ्करस्य प्रसादतः ॥१२॥

कारागारे श्मशाने च शत्रुग्रस्तेऽतिसङ्कटे।
गभीरेऽतिजलाकीर्णे भग्नपोते विषादने ॥१३॥

रणमध्ये महाभीते हिंस्रजन्तुसमन्विते।
सर्वतो मुच्यते स्तुत्वा शङ्करस्य प्रसादतः ॥१४॥

इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे हिमालयकृतं शिवस्तोत्रं सम्पूर्णम्.

महत्त्व और उपयोग
संकटमोचन: यह स्तोत्र विशेष रूप से विपत्ति, भय, रोग, शत्रु बाधा और संकटों से रक्षा के लिए पढ़ा जाता है.

सर्व-सिद्धि प्रदायक: शिव की कृपा से साधक की समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है—धन, संतान, राज्य, संपत्ति, आदि.

शिव महिमा: शिव के त्रिदेव स्वरूप, गुणों की परा स्थिति और भक्तवत्सलता की अद्भुत विवेचना इसमें मिलती है.

यह स्तोत्र पारंपरिक ग्रंथों, सत्संग में, शिव पूजा में, रुद्राभिषेक आदि अवसरों पर श्रद्धापूर्वक पढ़ा जाता है और संकट व कल्याण की प्राप्ति के लिए महत्त्वपूर्ण है.

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