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  • Acharya Ram Hari Sharma
  • 2025-09-16
  • 157
#इंदिराएकादशी
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Описание к видео #इंदिराएकादशी

#इंदिराएकादशी एकादशी 2025 व्रत कथा
युधिष्ठिर ने पूछा- मधुसूदन! कृपा करके मुझे यह बात बताइए कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में कौन-सी एकादशी आती है?

कृष्ण पक्ष में 'इंदिरा' नाम की एकादशी आती है, जिसके व्रत के प्रभाव से बड़े-बड़े पापों का नाश हो जाता है। वहीं, नीच योनि में पड़े हुए पितरों को भी यह एकादशी सदगति देने वाली मानी जाती है।
राजन! पूर्व काल की बात है, सत्य युग में इन्द्रसेन नामक एक राजकुमार थे, जो माहिष्मती पुरी के राजा होकर धर्म पूर्वक प्रजा का पालन करते थे। उनका यश चारों ओर फैल हुआ था। राजा इन्द्रसेन भगवान विष्णु की भक्ति में तत्पर हो गोविंद के मोक्ष दायक नामों का जाप करते हुए अपना समय निकालते थे और विधिपूर्वक अध्यात्म तत्त्व के चिंतन में लगे रहा करते थे। एक दिन राजा राजसभा में सुखपूर्वक बैठे हुए थे, तभी देवर्षि नारद आकाश से उतरकर वहां आ पहुंचे। उन्हें आता हुआ देखकर राजा हाथ जोड़कर खड़े हो गए और विधिपूर्वक पूजन करके उन्हें आसन पर बिठा दिया, इसके बाद, उन्होंने बोला- 'मुनिश्रेष्ठ! आपकी कृपा से मेरी सर्वथा कुशल है। आज आपके दर्शन से मेरी सभी यज्ञ-क्रियाएं सफल हो गई हैं। देवर्षे, आप अपने आने का कारण बताकर मुझ पर कृपा कीजिए।'
नारदजी ने कहा- नृपश्रेष्ठ! सुनो, मेरी बात तुम्हें आश्चर्य में डालने देंगी, मैं ब्रह्म लोक से यमलोक में आया था, तभी वहां एक श्रेष्ठ आसन पर बैठा और यमराज ने मेरी भक्ति पूर्वक पूजा की। यमराज की सभा में मैंने उस वक्त तुम्हारे पिता को भी देखा। वे व्रत भंग के दोष से वहां आए हुए थे। राजन, उन्होंने तुम्हें एक संदेश देने के लिए कहा था, उसे सुनो। उन्होंने कहा, 'बेटा। मुझे 'इंदिरा' एकादशी के व्रत का पुण्य देकर स्वर्ग में भेज दो।' उनका यही संदेश बताने के लिए मैं तुम्हारे पास आया हूं। राजन, अपने पिता को स्वर्ग लोक की प्राप्ति कराने हेतु 'इंदिरा' एकादशी का व्रत करो।


राजा ने सवाल किया- भगवन, कृपा करके 'इंदिरा' व्रत की विधि मुझे बताएं। किस पक्ष में, किस तिथि को और किस विधि से इसका व्रत करना चाहिए।

नारद जी ने कहा- राजेन्द्र, सुनो, मैं तुम्हें इस व्रत की शुभ कारक विधि बताता हूं। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि के उत्तम दिन पर श्रद्धायुक्त मन से प्रातःकाल स्नान करें। फिर, मध्याह्नकाल में खान करके एकाग्रचित्त हो एक समय भोजन ग्रहण करें तथा रात्रि के समय भूमि पर शयन करें। रात्रि के अंत में निर्मल प्रभात होने पर एकादशी व्रत के दिन दातुन करके मुंह धो लें। इसके बाद, भक्ति के भाव से निप्राङ्कित मंत्र पढ़ते हुए उपवास का नियम ग्रहण करें। अद्य स्थित्वा निराहारः सर्वभोगविवर्जितः । श्श्रो भोक्ष्ये पुण्डरीकाक्ष शरण मे भवाच्युत ।। 'कमलनयन भगवान नारायण, आज मैं सभी 'भोगों से अलग हो निराहार रहकर कल भोजन करूंगा। अच्युत । आप मुझे शरण दीजिए।'

इस प्रकार नियम करके मध्याह्नकाल में पितरों की प्रसन्नता के लिए शालग्राम शिला के सामने विधिपूर्वक श्राद्ध करें और दक्षिणा से ब्राह्मणों का सत्कार करके उन्हें भोजन कराना चाहिए। पितरों को दिए हुए अत्रमय पिंड को सूंघकर विद्वान पुरुष गाय को खिला दें। इसके बाद, धूप और गंध आदि से भगवान हृषीकेश का पूजन करें व रात्रि के समय उनके समीप जागरण करें। तत्पश्चात सुबह होने पर द्वादशी के दिन दोबारा भक्ति पूर्वक श्री हरि की पूजा करनी चाहिए। फिर, ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात भाई-बंधु, नाती और पुत्र आदि के साथ स्वयं मौन होकर भोजन करना चाहिए।

राजन, इस विधि से आलस्य रहित होकर तुम 'इंदिरा' का व्रत करो। ऐसा करने से तुम्हारे पितर भगवान विष्णु के वैकुण्ठ- धाम में चले जाएंगे।

भगवान कृष्ण कहते हैं- राजन, राजा इन्द्रसेन से इस बात को कहकर देवर्षि नारद अन्तर्धान हो गए । राजा ने उनके द्वारा बताई हुई विधि से अन्तःपुर की रानियों, पुत्रों और भृत्यो सहित उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया। कुन्तीनन्दन, व्रत पूरा होने पर आकाश से फूलों की वर्षा होनी शुरू हो गई। इन्द्रसेन के पिता गरुड़ पर आरूढ़ होकर श्रीविष्णु धाम की ओर चले गए और राजर्षि इन्द्रसेन भी अकण्टक राज्य का उपभोग करके अपने पुत्र को राज्य सौंपकर स्वयं स्वर्ग लोक चले गए। इस प्रकार मैंने तुम्हारे सामने 'इन्दिरा' व्रत के महात्म्य का वर्णन किया है। इसे पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्ति पा लेता है।

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