नमस्कार मित्रो, आप का स्वागत है हमारी नई कथा
जिसका शीर्षक है "पुष्पक विमान का रहस्य"
कहते है की रावण ने नहीं "छीना" था पुष्पक विमान? |
पुष्पक ने स्वयं क्यों चुना रावण को? |
आज सुनते है रामायण का अनसुना रहस्य
हम सब क्या जानते हैं? यही कि रावण एक अत्याचारी था। उसने अपने भाई कुबेर पर चढ़ाई की, उसकी सोने की लंका छीन ली और उसका दिव्य पुष्पक विमान भी बलपूर्वक हथिया लिया।
लेकिन... क्या यह पूरा सच है? क्या हो अगर मैं आपसे कहूँ कि रावण ने पुष्पक विमान को 'छीना' नहीं था? क्या हो अगर मैं कहूँ कि उस दिव्य, चेतन विमान ने स्वयं रावण को अपने स्वामी के रूप में 'स्वीकार' किया था?
आज हम रामायण की उस कथा की परतों को खोलेंगे, जो बताती है कि पुष्पक विमान कोई साधारण यंत्र नहीं, बल्कि एक 'चेतन' शक्ति था।
पुष्पक विमान की कहानी रावण से नहीं, कुबेर से भी नहीं, बल्कि स्वयं सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी से शुरू होती है। ब्रह्मा जी ने इस अद्भुत विमान की कल्पना की और इसे देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा से बनवाया।
यह कोई साधारण विमान नहीं था। इसकी तीन मुख्य विशेषताएँ थीं:
मन की गति: यह अपने स्वामी के मन की गति से चलता था। उसे जहाँ जाने का संकल्प होता, यह पल भर में वहाँ पहुँच जाता।
घटने-बढ़ने की शक्ति: इसमें कितने भी लोग बैठ जाएँ, यह कभी भरता नहीं था। यह अपनी इच्छा से अपना आकार छोटा या बड़ा कर सकता था।
चेतना : और सबसे महत्वपूर्ण... यह 'चेतन' था। यह जड़ नहीं था। यह अपने स्वामी को पहचानता था।
ब्रह्मा जी ने यह दिव्य विमान अपने पुत्र (और कुबेर के पिता) महर्षि विश्रवा को दिया, और विश्रवा से यह उनके ज्येष्ठ पुत्र कुबेर को उत्तराधिकार में मिला। तब तक, यह विमान धर्म और समृद्धि का प्रतीक था।
समय बीता। रावण ने घोर तपस्या करके ब्रह्मा और शिव से अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया। शक्ति के मद में चूर होकर, अपनी माँ कैकसी के कहने पर, रावण ने अपने ही भाई कुबेर पर आक्रमण कर दिया।
घमासान युद्ध हुआ। रावण ने कुबेर को पराजित कर दिया और लंका पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। कुबेर को लंका छोड़कर कैलाश के पास अलकापुरी में शरण लेनी पड़ी।
रावण ने कुबेर का सब कुछ छीन लिया... उसका राज्य, उसका धन, और उसकी प्रतिष्ठा।
अब आई उस विमान की बारी। लोककथाओं में कहा जाता है कि रावण ने विमान को 'छीन' लिया। लेकिन सत्य इससे कहीं अधिक गहरा है।
इसके पीछे तीन गहरे कारण छिपे हैं।
पहला कारण: रावण का 'अर्जित' बल हम रावण को एक खलनायक के रूप में जानते हैं, लेकिन वह एक महान तपस्वी और प्रकांड पंडित भी था। उसने जो शक्तियाँ पाई थीं, वे उसने अपनी घोर तपस्या से 'अर्जित' की थीं। पुष्पक विमान, जो स्वयं दिव्य ऊर्जा से बना था, उसने रावण की उस अपार, अर्जित ऊर्जा और तेज को पहचाना। यह एक शक्ति का दूसरी शक्ति द्वारा सम्मान था।
दूसरा कारण: स्वामी का संकल्प पुष्पक विमान का धर्म था अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करना। जब कुबेर पराजित हो गए, तब वे 'स्वामी' नहीं रहे। लंका का नया स्वामी अब रावण था। विमान जड़ नहीं था कि उसे चुराया जा सके; वह एक 'सेवक' था जिसने नए स्वामी को पहचान लिया था।
और तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण: विधि का विधान (नियति) पुष्पक विमान को शायद यह ज्ञात था कि भविष्य में क्या होने वाला है। वह जानता था कि उसकी नियति में केवल कुबेर की सेवा करना नहीं लिखा है।
उसी पुष्पक विमान को माता सीता के हरण का साक्षी बनना था। उसी विमान को रावण को उसके अंतिम युद्धों तक ले जाना था।
और अंत में... उसी पुष्पक विमान को, रावण के वध के बाद, प्रभु श्री राम, माता सीता, लक्ष्मण और पूरी वानर सेना को लेकर वापस अयोध्या लौटना था।
पुष्पक विमान केवल एक वाहन नहीं था; वह रामायण की कथा का एक मुख्य सूत्रधार था। उसे रावण की सेवा इसलिए करनी पड़ी, ताकि वह अंत में 'राम' की सेवा कर सके।
इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण रामायण के अंत में मिलता है।
विमान ने खुशी-खुशी श्री राम और उनके साथियों को अयोध्या पहुँचाया। यह इस बात का प्रतीक था कि 'अधर्म' का काल समाप्त हुआ और 'धर्म' पुनः स्थापित हो गया।
और अयोध्या पहुँचने के बाद क्या हुआ? श्री राम ने उस विमान को धन्यवाद दिया और उसे वापस उसके 'मूल' स्वामी, यानी कुबेर के पास लौट जाने का आदेश दिया। और विमान तुरंत कुबेर के पास लौट गया।
तो, रावण ने लंका 'छीनी' थी, लेकिन पुष्पक विमान को उसने 'पाया' था।
यह एक दिव्य शक्ति थी जिसने रावण के बल को स्वीकार किया, उसके पापों का साक्षी बना, और अंत में धर्म की पुनर्स्थापना में अपना योगदान दिया। पुष्पक विमान की कहानी हमें सिखाती है कि ब्रह्मांड में कुछ भी जड़ नहीं है, हर वस्तु अपनी नियति को पूरा करने के लिए सही समय और सही स्वामी की प्रतीक्षा करती है।
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