भारतीय सामाजिक संस्थाओं में जाति सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण। भारत में आदि काल से जाति प्रथा का प्रचलन। पश्चिमी देशों में सामाजिक स्तरीकरण का आधार वर्ग जबकि भारत में जाति एवं वर्ण।जाति हिन्दू सामाजिक संरचना का मुख्य आधार जिससे हिन्दुओं का सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन प्रभावित होता रहा है।
मजूमदार –‘‘जाति व्यवस्था भारत में अनुपम है। सामान्यतया भारत जातियों एवं सम्प्रदायों की परम्परात्मक स्थली माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ की हवा में भी जाति घुली हुई है और यहाँ तक की मुसलमान ईसाई भी इससे अछूते नहीं बचे हैं।’’
जाति- अंग्रेजी शब्द Caste का हिंदी अनुवाद। पुर्तगाली भाषा के शब्द Casta से बना, जिसका अर्थ मत, विभेद। जाति शब्द की उत्पत्ति का पता 1665 में ग्रेसिया डी.ओरेटा ने लगाया, उसके बाद फ्रांस के अब्बे डुब्बॉय ने इसका प्रयोग प्रजाति के संदर्भ में किया।
मजूमदार एवं मदान-‘‘जाति एक बंद वर्ग है।’’
ब्लन्ट के अनुसार - E.A.H. Blunt, the Caste System in Naorthern India. P-4‘‘जाति एक अन्तर्विवाही समूह अथवा अन्तर्विवाही समूहों का संकलन है जिसका एक सामान्य नाम होता है जिसकी सदस्यता आनुवांशिक होती है, जो सामाजिक सहवास के क्षेत्र में अपने सदस्यों पर कुछ प्रतिबंध लगाता है। इनके सदस्य या तो एक सामान्य परम्परागत व्यवसाय को करते है, अथवा किसी सामान्य आधार पर अपनी उत्पत्ति का दावा करते है और इस प्रकार एक समरूप समुदाय के रूप में मान्य होते है।’’
जाति प्रथा की विशेषताएँ -
डॉ. धूरिये ने जाति की निम्नांकित सांस्कृतिक एवं संरचनात्मक विशेषताओं का उल्लेख किया हैं –
1. समाज का खण्डात्मक विभाजन
2. संस्तरण
3. भोजन एवं सामाजिक सहवास पर प्रतिबंध
4. नागरिक एवं धार्मिक नियोग्यताएँ एवं विशेषाधिकार
5. पेशे के अप्रतिबन्धित चुनाव का अभाव
6. विवाह संबंधी प्रतिबंध
(1) समाज का खण्डात्मक विभाजन - खण्ड विभाजन से तात्पर्य - एक जाति के सदस्यों की सामुदायिक
भावना सम्पूर्ण समुदाय के प्रति न होकर अपनी जाति तक सीमित। प्रत्येक खंड के सदस्यों की
स्थिति, पद एवं कार्य निश्चित। प्रत्येक जाति की एक जाति पंचायत, नियम उल्लंघन, दंड, जाति से
बहिष्कृत।
(2) संस्तरण- जन्म पर आधारित सामाजिक संस्तरण - सभी जातियों की सामाजिक स्थिति समान नहीं,
ऊँच-नीच का एक संस्तरण अथवा उतार-चढ़ाव। जन्म पर आधारित होने के कारण इस संस्तरण में
स्थिरता एवं दृढ़ता।
(3) भोजन एवं सामाजिक सहवास पर प्रतिबंध - जातियों के परस्पर भोजन एवं व्यवहार से संबंधित अनेक
निषेध।
(4) नागरिक एवं धार्मिक नियोग्यताएँ एवं विशेषाधिकार - उच्च जातियों को कई सामाजिक एवं धार्मिक
विशेषाधिकार। अछूत जातियों पर अनेक निर्योग्यताएँ। अछूतों को स्कूल, मंदिर तालाब एवं सार्वजनिक
स्थलों के उपयोग की मनाही। उनके निवास गांव से दूर।
(5) पेशे के अप्रतिबन्धित चुनाव का अभाव - परम्परागत व्यवसाय, पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरण। कई जातियों
के नाम से ही उनके व्यवसाय का बोध।
(6) विवाह संबंधी प्रतिबंध - जीवनसाथी चयन अपनी ही जाति एवं उपजाति के अंतर्गत।
अन्य विशेषताएँ –
7. जन्मजात सदस्यता
8. जाति एक राजनीतिक इकाई
9. प्रत्येक जाति की विशिष्ट संस्कृति
10. जाति का संबंध धर्म, कर्म एवं पुर्नजन्म से
11. जातियों का क्षेत्रीय प्रसार
(7) जन्मजात सदस्यता - जिस जाति में जन्म, मृत्यु पर्यन्त सदस्यता। शिक्षा, धर्म, व्यवसाय एवं गुणों
में वृद्धि करने से जाति परिवर्तित नहीं की जा सकती।
(8) जाति एक राजनीतिक इकाई - डॉ. सक्सेना का मत है कि जाति एक राजनीतिक इकाई भी है, क्योंकि
प्रत्येक जाति व्यवहारिक आदर्श के नियम प्रतिपादित करती है और अपने सदस्यों पर उनको लागू
करती है।व्यवहारिक आदर्श नियम का पालन अनिवार्य, जाति पंचायत, विधायी न्यायिक एवं व्यवस्था
संबंधी कार्य। उच्च जातियों की अपेक्षा निम्न जातियों में जाति पंचायतों का संगठन अधिक सुदृढ़
होता है।
(9) प्रत्येक जाति की विशिष्ट संस्कृति - प्रथाऐं, भाषा, शिष्टाचार, संस्कार, जीवनशैली।
(10) जाति का संबंध धर्म, कर्म एवं पुर्नजन्म से।
(11) जातियों का क्षेत्रीय प्रसार - रवारी, अहीर, गूजर, जाट, उत्तरी भारत। कामा एवं रेड्डी आंध्रप्रदेश।
पाटीदार, गुजरात। पाल-बंगाल। भूमिहार, बिहार।
जाति की विशेषताओं में वर्तमान समय में अनेक परिवर्तन। परिणामस्वरूप जाति के संरचनात्मक एवं
सांस्कृतिक स्वरूप में परिवर्तन।
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