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  • Jyotish Siksha
  • 2023-08-18
  • 801
#KaamVashna
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Описание к видео #KaamVashna

ज्योतिष क्या कहता है...
जन्म कुंडली के तीन-तीन भाव द्वारा यह सारे पुरुषार्थ
प्रतिनिधित्व करते हैं ये इस प्रकार हैं.......
धर्म 1,5,9 भाव
अर्थ 2,6,10 भाव
काम 3,7,10 भाव
मोक्ष 8,4,12 भाव
यहां विषय-वस्तु काम है इसलिए मैं यहां इसकी ही चर्चा
करूंगा. कुंडली में काम भाव (3,7,10) विवाह, नियमित
यौन जीवन, पति/पत्नी और प्रेम की परिपक्वता का
प्रतिनिधित्व करता है. प्राकृतिक कुंडली में तीन की
संख्या मिथुन राशि की है जिसे प्राचीन आचार्यों ने
प्रकृति
......
रूप से स्त्री-पुरुष प्रेम और यौन संबंध के रूप में दर्शाया
है एवं कुंडली में तीसरा स्थान प्रेम संबंधों में दृढ़ता
गंभीरता परिपक्वता, शौर्य और पराक्रम का भाव माना
जाता है। कुंडली के चतुर्थ से जातक के चरित्र का पता
चलता है और भी बहुत से योग निम्न है.
कुंडली में ग्रहों का कुछ खास योग किसी स्त्री को या तो
मजबूरी में या स्वेच्छा से वेश्यावृत्ति की ओर ले जाती है।
कुंडली में अष्टमेश का बली होना चंद्रमा का बारहवें
भाव में जाना एवं दशम भाव में राहु का उपस्थित होना
वेश्यावृत्ति का प्रबल योग बनाता है।
अष्टम में शुक्र, शनि या शुक्र और मंगल की युति किसी
स्त्री जातक को वेश्यावृत्ति करवा सकती है।
शुक्र और राहु का योग प्रबल वेश्यावृत्ति की ओर इंगित
करता है। इस संबंध में स्त्री की कुंडली के सातवें और
दसवें भाव का अध्ययन विश्लेषण करना जरूरी होता
है। प्राचीन ज्योतिषों के अनुसार यदि इन भाव में
बुध, शुक पीड़ित अवस्था में हो तो कारण जो भी हो
महिला वेश्यावृत्ति की ओर प्रवृत्त होती है।
विशेष रूप से शुक्र और मंगल कुंडली के सातवें अथवादसवें भाव में हो और अगर इन पर क्रूर ग्रह का प्रभाव
हो तो यह योग और प्रबल हो जाता है तो वह महिला
पूरा जीवन वेश्यावृत्ति में ही बिताती है।
नीच और पाप प्रभावित चंद्रमा भी इसी मार्ग पर ले
आता है उच्च का चंद्रमा प्रेम प्रसंग में सफलता प्रदान
करता है लेकिन यही चंद्रमा जब नीच राशि का प्रभाव
में आकर त्रिक भाव में चला जाए तो प्रेम प्रसंग में कभी
भी सफलता हासिल होने नहीं देता है।
किसी भी दृष्टीकोण से शनि और राहु का योग अच्छा
नहीं माना गया है चाहे वह दृष्टि संबंध ही क्यों ना हो इस
ग्रह योग वाली स्त्री का जीवन कष्ट पूर्ण एवं संघर्षों से
भरा होता है।
यदि लग्न और बारहवें भाव के स्वामी की युति केंद्र या
त्रिकोण में हो या आपस में स्थान परिवर्तन कर रहे हो
तो यह पर्वत योग कहलाता है इस योग के कारण व्यक्ति
अत्यंत कामी एवं पर पुरुष/पर-स्त्री गमन करने वाला
होता है।
किसी स्त्री की कुंडली में अगर मंगल तीसरे स्थान में
उच्च का हो या स्वगृह तो हुआ रजस्वला होने से पहले
ही संभोग कर चुकी होती है।
कुछ अन्य ज्योतिषी योग जो स्त्री एवं पुरुष दोनों के
लिए लागू होते हैं.......
सातवें भाव में मंगल, बुध और शुक्र की युति एक ही
स्थान में हो एवं इन पर शुभ ग्रह की दृष्टि ना हो तो
जातक/जातिका अप्राकृतिक सेक्स का आदि होता है।
सप्तम में हो तो जातक समलिंगी होता है।
लग्नेश एवं सप्तमेश में परस्पर स्थान परिवर्तन के
कारण जातक/जातिका स्त्री और पुरुष में समान रूप से
रुचि रखता है।
शनि का लग्न में होना कामवासना में प्रबलता लाता है।
शनि का सप्तम में होने से को जातक/जातिका
व्यभिचारी प्रवृत्ति का बना देता है।मंगल का लग्न एवं लग्नेश पर दृष्टि विशेष रूप से कामी
बना देता है।
शनि का पंचम भाव में होना अपने से बड़ी उम्र की स्त्री
के प्रति आकर्षण पैदा करता है।
शनि का चंद्र के साथ युति जातक को वेश्यागामी बनाता
मंगल और शनि की युति पर-पुरुष में रुचि बना बढ़ाता
शुक्र और शनि की युति कामुकता बढ़ाकर पर पुरुष की
ओर आकर्षण पैदा करता है।
राहु का दशम भाव में होना बहुत बार (अन्य ग्रह योग
को देखते हुए) विधवा स्त्री से संभोग करता है।
शुक्र का बारहवें भाव में होना ज्यादा को अत्यंत काम
एवं भोगी बनाता है।
मंगल अष्टम नवम एवं 12 वे भाव में हो तो जातक
कामुक होता है।
मंगल एवं शुक्र के राशि परिवर्तन से जातक अत्यंत का
कामुक प्रवृत्ति वाला होता है।
शनि की शुक्र चंद्र मंगल के साथ युति जातक में
कामवासना को काफी बढ़ा देती है।
चंद्र बारहवें भाव में मीन राशि में हो तो जातक अनेक
स्त्रियों का उपभोग करता है।
लग्न में शुक्र की युति 2/7/6 के स्वामी के साथ हो तो
जातक का चरित्र संदिग्ध रहता ही रहता है।
अप्राकृतिक सेक्स और मस्टरबेशन से ग्रसित जातिका/
जातक की कुंडली में लग्नेश के ग्यारहवें भाव में स्थित
होता है।
यदि लग्नेश सप्तम स्थान पर हो तो ऐसे जातक एवं
एवं जातिका की रुचि विविध सेक्स के प्रति अधिक
होती है अगर इन्हीं विभिन्न ग्रह योगों का प्रभाव चतुर्थ
स्थान, लग्न, अष्टम स्थान पर पाप प्रभाव ज्यादा हो एवं
मंगल का शुक्र के साथ द्वादश से संबंध हो तो रेप तकका मानसिकता जातक या जातिका में आ जाता है।
चंद्रमा व्यक्ति के मानसिक स्तर को दर्शाता है और गुरु
विवेक का प्रतिनिधि करता है अगर चंद्रमा एवं गुरु
प्रभावित हो एवं उपरोक्त ग्रह योग बन रहे हो तो खुद
को संभालना एवं संयमित करके विवेक का इस्तेमाल
करना मुश्किल हो जाता है तथा चाहे अनचाहे गलत
कार्य कर बैठता है।

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