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Скачать или смотреть वसोर्धारा/सप्तघृत मातृका पूजन(वनस्थ योगी गुरु श्रीशिवदत्त स्मारक गड्डी,जोधपुर)9414849604,9829335510

  • Rajendra Kumar Vyas Palji
  • 2020-01-07
  • 18529
वसोर्धारा/सप्तघृत मातृका पूजन(वनस्थ योगी गुरु श्रीशिवदत्त स्मारक गड्डी,जोधपुर)9414849604,9829335510
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वसोर्धारा पूजनम् संकल्प - अद्यपूर्वोच्चारित एवं ग्रहगुण विशेषण विशिष्ठायां शुभ पुण्य तिथौ अस्मिन कर्माङ्गत्वेन ( दुर्गापूजनाख्यस्य ) श्र्यादि सप्त वसोर्धारा देवता आवाहन , स्थापन , पूजनमहम् करिष्ये ( षोडश मातृका मण्डल के ऊपर शिला पर स्थापित करें ) नीचे वाले सात बिन्दुओं पर घृत से धारा करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें : ॐ वसोः पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रमसि सहस्र धारं। देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः ॥ इसके बाद गुड़ मौली से नीचे के सात ( घृत धारा प्रवाहित ) बिन्दुओं का एकीकरण करें तदनन्तर उन्हीं बिन्दुओं पर दक्षिण से उत्तर की तरफ एक - एक धारा पर अधोलिखित मंत्रों से प्रत्येक मातृका का आह्वान व स्थापन करें । श्री ॐ मनसः काममाकृतिं व्वाचः सत्त्यमशीय पशूनां रूपमन्नस्य रसो यश : श्री : श्रयतां मयि स्वाहा ॥ सुवर्णपद्महस्तां तां विष्णोर्वक्षः स्थले स्थिताम् । । त्रैलोक्यवल्लभां देवीं श्रियमावाहयाम्यहम् ॥१॥ॐभूर्भवः स्वः श्रियै नमः , श्रियमावाहयामि , स्थापयामि । लक्ष्मी ॐ श्रीश्च्च ते लक्ष्मीश्च्च पत्क्न्या वहोरात्रे नक्षत्राणि रूपमश्श्विनौ व्यात्तम् । इष्ष्णन्निषाणामु म्म ऽ इषाण सर्व्वलोकं म ऽ इषाण ॥ शुभलक्षणसंपन्नां क्षीरसागरसंभवाम् । चन्द्रस्य भगिनीं सौम्यां लक्ष्मीमावाहयाम्य हम् ॥ २ ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः लक्ष्यै नमः , लक्ष्मीमावाहयामि , स्थापयामि । धृति ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्ष भिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टटुवा गुं सस्तनूभिर्व्यशेम हि देवहितं य्यदायुः ॥ संसारधारणपरां धैर्यलक्षणसंयुताम् । सर्वसिद्धिकरी देवीं धृतिमावाहया म्यहम् ॥३॥ ॐ भूर्भुवः स्वः धृत्यै नमः , धृतिमावाहयामि , स्थापयामि । मेधा ॐ मेधां मे व्वरुणो ददातु मेधामग्निः प्रजापतिः।मेधामिन्द्रश्च्च व्वायुश्श्च मेधां धाता ददातु मे स्वाहा ॥ सदसत्कार्यकरण क्षमां बुद्धिविशालिनीम् । मम कार्ये शुभकरी मेधामावाहयाम्यहम् ॥ ४ ॥ ॐ भूर्भुव : स्व : मेधायै नमः , धामावाहयामि , स्थापयामि । पुष्टि ॐ रयिश्च्चमेरायश्चचमेपुष्ट ञ्चमेपुष्टिश्च्चमेट्विभुचमेप्प्रभुचमेपूर्णञ्चमेपूर्णतरञ्चमेकुयवञ्चमेक्षितञ्च मेन्नञ्चमेक्षु च्चमेयज्ञेनकल्प्पन्ताम् ॥ सोमरूपां सुवर्णाभां विद्युज्ज्वलितकुंडलाम् । जननीं पुष्टिकरिणीं पुष्टिमावाहयाम्यहम् ॥ ५ ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः पुष्टयै नमः , पुष्टिमावाहयामि , स्थापयामि । श्रद्धा ॐ सत्त्यञ्चमेश्श्रद्धाचमेजगच्चमेधनञ्चमेविश्वञ्च मेमहश्च्चमेक्क्रीडाचमेमोदश्च्चमे जातञ्चमेजनिष्य माणञ्चमेसूक्तञ्चमेसुकृतञ्चमेयज्ञेनकल्प्पन्ताम् ॥ भूतग्राममिदं सर्व मजेन श्रद्धया कृतम् । श्रद्धया प्राप्यते सत्यं श्रद्धामावाहयाम्यहम् ॥ ६ ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः श्रद्धायै नमः , श्रद्धामावाहयामि , स्थापयामि ।सरस्वती ॐ पावका नः सरस्वती व्वाजेभिर्वाजिनीवती , यज्ञं व्वष्टु धियावसुः ॥ प्रणवस्यैव जननी रसनाग्रस्थितां सदा । प्रागल्भ्यदात्री चपलां वाणी मावाहयाम्यहम् ॥ ७ ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः सरस्वत्यै नमः , सरस्वतीमावाहयामि , स्थापयामि । इस प्रकार आह्वान - स्थापन के बाद इस मंत्र से अक्षत छोड़ते हुए प्रतिष्ठा करें : ॐ मनोजूति र्जुषतामाज्यस्यबृहस्पतिर्यज्ञमिमन्तनो त्वरिष्ठैय्यज्ञ छ समिमन्दधातु ॥विश्वेदेवासऽ इहमा दयन्तामों३म्प्रतिष्ठ । ॐ भूर्भुवः स्वः , श्र्यादि सप्त वसोर्धारा देवताभ्यो नमः सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि , धूपं आघ्रापयामि दीपं दर्शयामि नैवेद्यं निवेदयामि , ततो नमस्करोमि । प्रार्थना ॐ यदङ्गत्वेन भो देव्यः पूजिता विधिमार्गतः । कुर्वन्तु कार्यमखिलं निर्विजेन क्रतूद्भवम् ॥ आचमनी में जल लेकर छोड़ें अनया पूजया वसोर्धारादेवता : प्रीयन्ताम् ।

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