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  • Vishwaguru Bharatvarsh
  • 2022-12-09
  • 7980
#short
कौरवों के सेनापतियों की मृत्यु कैसे हुईभीष्म की मृत्यु कैसे हुईकैसे हुआ कौरव पक्ष के सभी सेनापतियों का अंतद्रोणाचार्य की मृत्यु कैसे हुईशल्य की मृत्यु कैसे हुईक्या श्री कृष्ण ने इन्हें छ्ल से मारा थाभीष्म को क्यों मिली बाणों की शैयाकर्ण की मृत्यु कैसे हुईकौरवों के साथ छल हुआअर्जुन और कर्ण का अंतिम युद्धभीष्म का अंतिम युद्धmahabharatwarshri krishnaमहाभारत 18 दिन का युद्धHow did the generals of the Kauravas die? in Hindiमहाभारत कोन केसे मराशल्य कौन
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Описание к видео #short

कैसे हुआ कौरव पक्ष के सभी सेनापतियों का अंत || क्या श्री कृष्ण ने इन्हें छ्ल से मारा था || #भारतवर्ष
#विश्वगुरुभारतवर्ष #महाभारत

इस वीडियो में हमने कौरवों के चार सेनापति (भीष्म द्रोण कर्ण शल्य) की मृत्यु केसे हुई ओर उनकी मृत्यु के पिछे क्या कारण था यह बताया है। अगर आपको वीडियो पसंद आया है तो आप प्लीज वीडियो को लाइक करें आप सभी का यहां पर आने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

“JAY SHRI KRISHNA“
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पितामह भीष्म जिन्होंने अपने पिता के लिए उनकी इच्छा के विरुद्ध हस्तिनापुर जैसे साम्राज्य का त्याग कर दिया जिसके लिए आगे जाकर पूरी महाभारत हुई और अपनी प्रतिज्ञा के लिए 170 वर्षों तक हस्तिनापुर के अधीन रहे ओर साथ ही उन अधर्मियों के आगे भी झुके जिन्हें वे आसानी से हरा सकते थे आखिर ऐसे कर्तव्यनिष्ठ पितामह भीष्म को क्यों सहना पड़ा 58 दिन तक बाणों की शैया और अंगराज कर्ण जिनका परिचय देना सूर्य को दिया दिखाना होगा जिन्हें पूरा जीवन क्षत्रिय होते हुए भी एक सूत पुत्र की तरह काटना पड़ा सिर्फ माता कुंती की वजह से उन्हीं माता कुंती के दान मागने पर दे दियाअपने सबसे बड़े शत्रु पांडवोंको जीवन दान आखिर ऐसे दानवीर को क्यों मरना पड़ा एक विद्याहीन बनकर intro-आज आपको कौरव पक्ष के हजारों महारथियों में से चार ऐसे महारथियों की मृत्यु के बारे में बताएंगे जो कौरव पक्ष के सेनापति रहे थे| Content - कौरवों के पहले सेनापति पितामह भीष्म कौरव पक्ष के पहले सेनापति थे वे युद्ध के प्रथम दिन से दसवे दिन तक कौरवों के सेनापति रहे इस तरह पितामह भीष्म कौरवों के सबसे लंबे समय तक बने रहने वाले सेनापति बने कौरवों के दूसरे सेनापति गुरु द्रोणाचार्य कर्ण के कहने पर गुरु द्रोणाचार्य कौरवों के दूसरे सेनापति बने जिन्होंने युद्ध के ग्यारवे दिन से लेकर 15 दिन तक कौरवों के सेनापति बने रहे इसी के साथ गुरु द्रोणाचार्य कौरवों के दूसरे सबसे अधिक समय तक बने रहने वाले सेनापति बने कैसे हुई मृत्यु द्रोणाचार्य और उनके पुत्र अश्वत्थामा का रौद्र रूप देखकर पांडवों को अपनी हार नजदीक नजर आ रही थी। यह देखकर श्रीकृष्ण ने एक योजना बनाई जिसके तहत अवन्तिराज के एक हाथी जिसका नाम अश्वथामा था, उसका भीम द्वारा वध कर दिया गया। कौरवों के तिसरे सेनापति
युद्ध के 16वे दिन कौरवों के सेनापति बने अंगराज कर्ण दुर्योधन जानता था कि कर्ण का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी है अर्जुन तो कर्ण का सारथी भी स्वयं भगवान श्री कृष्ण की तरह होना चाहिए जिसके लिए उसने चुना पांडवों के मामा शल्य को अब शल्य पांडवों के मामा थे तो उन्होंने दुर्योधन का साथ कियो दिया यह आपको आगे बताएंगे अभी महाराज शल्य में वे सभी गुण विद्यमान थे, जो एक योग्य सारथी में होने चाहिए। आखिर कैसे हुई थी कर्ण की मृत्यु
अर्जुन और कर्ण के बीच हो रहे युद्ध को आप इस तरह भी समझ सकते हैं की जब अर्जुन के बाण कर्ण के रथ पर लगते तो उसका रथ कई गज यानी कि 25 से 30 हाथ पीछे खिसक जाता, किन्तु जब कर्ण के बाण अर्जुन के रथ पर लगते तो उसका रथ केवल 2 से 3 हाथ ही पीछे खिसकता। इस पर भगवान कृष्ण कर्ण की प्रशंसा करते हैं तब अर्जुन चकित हो जाता है कि जब मेरे बाण अधिक प्रभावशाली है तो प्रभु कर्ण के प्रशसां क्यों कर रहे हैं तब श्रीकृष्ण ने कहा कि- “कर्ण के रथ पर केवल कर्ण और शल्य का भार है, किन्तु अर्जुन तुम्हारे रथ पर तो स्वयं तुम, मैं और वीर हनुमान भी विराजमान हैं, और तब भी कर्ण ने उनके रथ को कुछ हाथ पीछे खिसका दिया।” युद्ध में कर्ण ने कई बार अर्जुन के धनुष की प्रत्यंचा काट दी, किन्तु हर बार अर्जुन पलक झपकते ही धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा लेता। इसके लिए कर्ण अर्जुन की प्रशंसा करता है और शल्य से कहता है कि- “वह अब समझा कि क्यों अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहा जाता है।” कौरवों के चौथे सेनापति मामा शल्य सबसे पहले जानते हैं कि शल्य ने पांडवों का मामा होते हुए भी दुर्योधन का साथ क्या दिया दरअसल, महाभारत के शल्य माद्री के भाई और नकुल और सहदेव के मामा थे. वह मद्र राज्य के राजा थे. जब शल्य को पता चला कि महाभारत युद्ध होने वाला है तो वह पांडवों की तरफ से लड़ने के लिए चल पड़े कैसे हुई मृत्यु मामा शल्य की कर्ण की मृत्यु के बाद 17 वे दिन ही अश्वत्थामा के कहने से मद्र नरेश शल्य को कौरवों का सेनापति बना दिया गया था श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को शल्य-वध के लिए उत्साहित करते हुए कहा कि इस समय यह बात भूल जाना चाहिए कि वह पांडवों का मामा है। इसी बीच कौरवों ने आपस में विचार कर यह नियम बनाया कि कोई भी एक योद्धा अकेला पांडवों से युद्ध नहीं करेगा। पर शल्य का प्रत्येक पांडव से अकेले ही युद्ध हुआ। कभी वह पराजित हुआ, कभी पांडवगण। अंत में युधिष्ठिर ने उस पर शक्ति से प्रहार कर शल्य का वध किया

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