Sheila Dikshit: Love story, marriage, life and political journey (BBC Hindi)

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बात उन दिनों की है जब देवानंद भारतीय किशोरियों के दिल पर राज कर रहे थे. पहला फ़िज़ी ड्रिंक 'गोल्ड स्पॉट' भारतीय बाज़ारों में प्रवेश कर चुका था. टेलिविजन की शुरुआत नहीं हुई थी. यहाँ तक कि रेडियो में भी कुछ ही घंटों के लिए कार्यक्रम आते थे. एक दिन 15 साल की बच्ची शीला कपूर ने तय किया कि वो प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिलने उनके 'तीनमूर्ति' वाले निवास पर जाएंगी. वो 'डूप्ले लेन' के अपने घर से निकली और पैदल ही चलते हुए 'तीनमूर्ति भवन' पहुंच गईं. गेट पर खड़े एकमात्र दरबान ने उनसे पूछा, आप किससे मिलने अंदर जा रही हैं? शीला ने जवाब दिया 'पंडितजी से'. उन्हें अंदर जाने दिया गया. उसी समय जवाहरलाल नेहरू अपनी सफ़ेद 'एंबेसडर' कार पर सवार हो कर अपने निवास के गेट से बाहर निकल रहे थे. शीला ने उन्हें 'वेव' किया. उन्होंने भी हाथ हिला कर उनका जवाब दिया. दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास की पढ़ाई करने के दौरान शीला की मुलाकात विनोद दीक्षित से हुई जो उस समय कांग्रेस के बड़े नेता उमाशंकर दीक्षित के इकलौते बेटे थे. शीला याद करती हैं, "हम इतिहास की 'एमए' क्लास में साथ साथ थे. मुझे वो कुछ ज्यादा अच्छे नहीं लगे. मुझे लगा ये पता नहीं वो अपने-आप को क्या समझते हैं. थोड़ा अक्खड़पन था उनके स्वभाव में.'' स्टोरी और आवाज़: रेहान फ़ज़ल

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