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Скачать или смотреть महादेवी वर्मा का जीवन तथा साहित्यिक परिचय | Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay

  • Sahitya Manch
  • 2023-06-29
  • 151
महादेवी वर्मा का जीवन तथा साहित्यिक परिचय | Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay
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Описание к видео महादेवी वर्मा का जीवन तथा साहित्यिक परिचय | Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay

साहित्य मंच मे आपका स्वागत है,

महादेवी वर्मा जिन्हे हम ‘आधुनिक युग की मीरा’ के नाम से भी जानते है , हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक मानी जाती हैं। प्रख्यात कवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” कहा करते थे। वे आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक है। उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल ब्रजभाषा में ही संभव मानी जाती थी।

महादेवी वर्मा ने स्वतन्त्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन रचनाकारों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। न केवल उनका काव्य बल्कि उनके सामाजसुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी इस दृष्टि से प्रभावित रहे है। महादेवी वर्मा ने अपनी कविताओं के माध्यम से महिलाओं के मानसिक दुःख और संघर्ष को दर्शाया है। उन्होंने महिलाओं के अंतर्निहित भावों को व्यक्त किया और उनकी भावनाओं को उजागर किया । उन्होंने सामाजिक और आध्यात्मिक मुद्दों पर भी अपनी कविताओं के माध्यम से चर्चा की है।

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तरप्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में हुआ था। उनके पिताजी श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा भागलपुर के कॉलेज में प्राध्यापक थे। वे विद्वान तथा संगीत प्रेमी थे, परन्तु एक नास्तिक व्यक्ति थे। इसके उलट उनकी माताजी श्रीमती हेमरानी देवी एक धार्मिक प्रवृति की महिला थी। वे रोज़ाना श्रीमद भदवत गीता का पाठ किया करती थी। वे संस्कृत तथा हिंदी दोनों भाषाओ की ज्ञाता थी। साथ ही संगीत में भी उनकी गहरी रूचि थी।

महादेवी वर्मा की प्रारंभिक शिक्षा इंदौर के मिशन स्कूल में हुई थी। इसके अतिरिक्त उन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा अपने घर में ही ग्रहण की। उन्होंने इलाहबाद के क्रॉसथवेट कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त की। 1932 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की।

मात्र 9 वर्ष की आयु में महादेवी वर्मा का विवाह श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया गया था। परन्तु उनको वैवाहिक जीवन से विरक्ति थी। हालाँकि सामान्य स्त्री-पुरुष के रूप में उनके सम्बन्ध हमेशा मधुर रहे।

महादेवी वर्मा का कार्यक्षेत्र लेखन, सम्पादन और अध्यापन रहा। उन्होंने इलाहाबाद में ‘प्रयाग महिला विद्यापीठ’ के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया । यह कार्य करना , उस समय में महिला-शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम था। इसकी वे प्रधानाचार्य एवं कुलपति भी रहीं। 1923 में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका ‘चाँद’ का कार्यभार संभाला। उन्होंने भारत में महिला कवि सम्मेलनों की नीव रखी।

महादेवी वर्मा को शिक्षा और साहित्य प्रेम एक तरह से विरासत में मिली थी। सात वर्ष की आयु से ही महादेवी वर्मा कवितायेँ लिखने लगी थी। विद्यार्थी जीवन में ही उनकी कविताएँ देश की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाने लगीं । 1930 से 1932 के बीच उन्होंने निहार, रश्मि तथा नीरजा नामक काव्य संग्रहों की रचना की। 1939 में कविताओं का अन्य समूह ‘ यामा ‘ प्रकाशित हुआ। इसके अतिरिक्त सांध्यगीत, दीपशिखा, सप्तपर्णा, प्रथम आयाम तथा अग्निरेखा उनकी प्रमुख कृतियां हैं।

कवयित्री होने के साथ-साथ वे एक विशिष्ट गद्यकार भी थीं। उनके कई उपन्यास व कहानियां बहुत प्रसिद्ध हुई जिनमें ‘मेरा परिवार’, ‘स्मृति की रेखाएं’ , ‘पथ के साथी’, ‘अतीत के चलचित्र’ आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा उन्होंने कई संस्मरण और निबंधों की रचना की जिनमे ‘हिमालय’ , ‘शृंखला की कड़ियाँ’, ‘विवेचनात्मक गद्य’, ‘साहित्यकार की आस्था’ उल्लेखनीय है।

उन्हें प्रशासनिक, अर्धप्रशासनिक और व्यक्तिगत सभी संस्थाओँ से पुरस्कार व सम्मान मिले। वे भारत की 50 सबसे यशस्वी महिलाओं में भी शामिल है।

महादेवी वर्मा को ‘नीरजा’ के लिये 1934 में ‘सक्सेरिया पुरस्कार’ और 1942 में ‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये ‘द्विवेदी पदक’ प्रदान किया गया। 1943 में उन्हें ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’एवं ‘भारत भारती’पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

1956 में उनकी साहित्यिक सेवा के लिये भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ और 1988 में उन्हें मरणोपरांत ‘पद्म विभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया ।

1971 में ‘साहित्य अकादमी’ की सदस्यता ग्रहण करने वाली वे पहली महिला बनी।

‘यामा’ नामक काव्य संकलन के लिये 1982 में उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’प्रदान किया गया ।

11 सितम्बर 1987 को उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में उन्होंने अंतिम सांस ली और पंचतत्व में विलीन हो गई ।
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महादेवी वर्मा की अन्य रचनाएँ :    • महादेवी वर्मा की कविताएं | Mahadevi Verma ...  
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Welcome to Sahitya Manch,

Mahadevi Verma, whom we also know by the name of 'Meera of the modern era', is considered one of the four main pillars of the Chhayawadi era in Hindi literature. Eminent poet Suryakant Tripathi 'Nirala' used to call her "Hindi ke vishal mandir ki Saraswati". She is one of the most powerful poets of modern Hindi. He developed that soft vocabulary in Khadi Boli Hindi poetry, which till now was considered possible only in Brajbhasha.
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