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देश के ज्यादातर लोग कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन के नाम से वाकिफ हैं. साउथ इंडिया के जंगलों में उसके नाम की तूती बोलती थी. उसका असली नाम कूज मुनिस्वामी वीरप्पन था, जो चन्दन की तस्करी के साथ-साथ हाथी दांत की तस्करी भी करता था. वो कई पुलिस अधिकारियों की मौत का जिम्मेदार था. उसे पकड़ने के लिए सरकार ने करीब 20 करोड़ रुपये खर्च किए थे.
उसी का नतीजा था कि 18 अक्टूबर 2004 को वीरप्पन एक पुलिस एनकाउंटर में मारा गया था. किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि वीरप्पन मारा गया है. वीरप्पन की राजनीति, पुलिस और जंगल की बहुत सी कहानियां प्रचलित थीं. जब वीरप्पन पर आधारित फिल्म रिलीज हुई, तो जानकारों ने कहा कि फिल्म में बहुत सी बातें छूट गई हैं.
दरअसल, वीरप्पन का नाम पहली बार 1987 में सुर्खियों में आया, जब उसने चिदंबरम नाम के एक फॉरेस्ट अफसर को अगवा कर लिया था. इसके बाद उसने पुलिस के एक पूरे जत्थे को ही उड़ा दिया था. जिसमें 22 लोग मारे गए थे. 1997 में वीरप्पन ने सरकारी अफसर समझकर दो लोगों का अपहरण किया था. पर वो दोनों फोटोग्राफर थे. वो लोग वीरप्पन के साथ 11 दिन रहे. छूटकर आने के बाद उन दोनों ने वीरप्पन के बारे में हैरान करने वाले खुलासे किए थे.
उन दोनों ने बताया था कि वीरप्पन हाथियों को लेकर बड़ा भावुक था. वीरप्पन ने उन दोनों से कहा था कि जंगल में जो कुछ होता है, उसके नाम पर मढ़ दिया जाता है, पर उसे पता है कि इस काम में 20-25 गैंग शामिल हैं. सारा काम वो ही नहीं करता. वो सब उसने छोड़ दिया है. वीरप्पन उन दोनों से बातें करते वक्त नेशनल ज्योग्रॉफिक मैगजीन पढ़ रहा था.
उस दौरान एसटीएफ वीरप्पन को पकड़ने की हरसंभव कोशिश कर रही थी. इसी बीच 2003 में विजय कुमार को एसटीएफ का चीफ बनाया गया. ये दौर था, जब वीरप्पन कमजोर होता जा रहा था. आईपीएस अफसर विजय कुमार के लिए वीरप्पन कोई नया नाम नहीं था. 1993 में भी विजय ने उसे पकड़ने की नाकाम कोशिश की थी.
इस बार विजय कुमार ने योजना बनाकर बड़े दिमाग से काम लिया. उन्होंने वीरप्पन के गैंग में अपने आदमी घुसा दिए थे. ये वो वक्त था, जब वीरप्पन के गैंग में लोग कम हो रहे थे. विजय कुमार ये बात जानते थे. 18 अक्टूबर 2004 का दिन था. वीरप्पन अपनी आंख का इलाज कराने जा रहा था. जंगल के बाहर पपीरापट्टी गांव में उसके लिए एक एंबुलेंस खड़ी थी. वो उसमें सवार हो गया.
वीरप्पन को इस बात का ज़रा भी अंदाजा नहीं था कि वो एंबुलेंस पुलिस की है. उसे एसटीएफ का ही एक आदमी चला रहा था. पुलिस बीच रास्ते में घात लगाकर बैठी थी. तभी अचानक ड्राइवर ने रास्ते में एंबुलेंस रोक दी और वो उसमें से उतर कर भाग गया. इससे पहले कि वीरप्पन कुछ समझ पाता. पुलिस ने एंबुलेंस पर चारों तरफ से फायरिंग शुरु कर दी. जिसमें वीरप्पन मारा गया. उसे कई गोलियां लगी थीं.
बताया जाता है कि पुलिस उसे जिंदा पकड़ना नहीं चाहती थी. अगर वो पकड़ा जाता तो अदालत से छूट जाता. हालांकि पुलिस अपनी सफाई में यही कहती रही कि वीरप्पन को चेतावनी दी गई थी. लेकिन उसने पुलिस पर गोली चला दी थी और पुलिस की जवाबी कार्रवाई में वह मारा गया.
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