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आरती श्री महाकाली जी की
मंगल की सेवा, सुन मेरी देवा, हाथ जोड द्वार खड़े, पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्याला तेरी भेट धरें, सुन जगदम्बा कर न विलम्बा, सन्तन के भण्डार भरे,
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याणी करे।। 1 ।।
'बुद्धि' विधाता तू जगमाता, मेरा कारज सिद्ध करे,
चरण कमल का लिया आसरा, शरण तुम्हारी आन पड़े,
जब-जब भीड़ पड़े भक्तन पर तब-तब आप सहाय करे,
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ।12।।
'गुरू' के वार सकल जग मोह्यो, तरूणी रूप अनुप घरे।
माता होकर पुत्र खिलावै, कहीं भार्या भोग करे।
'सन्तन' सुखदाई सदा सहाई, संत खड़े जयकार करे,
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ।।3।।
ग्रहा विष्णु महेश फल लिए, भेंट देने तेरे द्वार खड़े।
अटल सिंहासन बैठी माता, सिर सोने का छत्र धरे।
वार 'शनिचर' कुंकुम बरणो, जब लुंकड़ पर हुकुम करे।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।। 4।।
खड़ा खप्पर त्रिशुल हाथ लिये, रक्तबीज कूं भस्म करे।
शुम्भ निशुम्भ क्षणहि में मारे, महिषासुर को पकड़ दले।
'आदित' वारी आदि भवानी, जन अपने को कष्ट हरे।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ।।5।।
कुपित होकर दानव मारे, चण्ड मुण्ड सब चूर करे।
जब तुम देखो दया रूप हो, पल में संकट दूर करे।
'सौम्य' स्वभाव धरयों मेरी माता, जन की अर्ज कबूल करे 11611
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।
सात बार की महिमा बरनी, सब गुण कौन बखान करे।
सिंह पीठ पर चड़ी भवानी, अटल भवन में राज्य करे।
दर्शन पार्वे, मंगल गावे, सिद्ध साधक तेरी भेंट करे।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।। 7 ।।
ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे, शिव शंकर हरि ध्यान धरे।
इन्द्रकृष्ण तेरी करें आरती, चंवर कुबेर डुलाय करें। जय जननी जय मातु भवानी, अचल भवन में राज्य करे।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।
आरती दुर्गा जी की 卐
जै अम्बे गौरी, मैया जै मंगल मूर्ति, मैया जै आनन्द करणी। तुमको निशि दिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ।। टेर।।
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृग मद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चन्द्र बदन नीको ।। टेर।।
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्त पुष्प गलमाला, कण्ठन पर साजै ।। टेर।।
केहरि वाहन राजत, खड़ग खप्र धारी ।
सुर नर मुनि जन सेवत, तिनके दुखहारी ।। टेर ।।
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत संम ज्योती ।। टेर ।।
शुम्भ-निशुम्भ विदारे, महिषासुर घाती।
धुम्र विलोचन नैना, निशि दिन मतमाती ।। टेर ।।
चण्ड-मुण्ड संहारे शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोऊ मारे सुर भयहीन करे ।। जय ।।
ब्रहाणी रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी ।। जय ।।
चौसठ योगिनी मंगल गावत नृत्य करत भैरू ।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ।। जय ।।
तुम ही जगत की माता तु ही हो भर्ता।
भक्तन की दुःख हर्ता सुख संपति कर्ता ।। जय ।।
भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी।। जय ।।
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रल ज्योति ।। जय ।।
अम्बे जी की आरती जो काई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे ।। जय ।।
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