जैसे आप, वैसा आपका संसार - दूसरों की शिकायत करना बंद करें || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर(2024)

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वीडियो जानकारी: 03.01.24, वेदांत संहिता, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:

वासना एव संसार इति सर्वा विमुञ्च ताः ।
तत्त्यागो वासनात्यागात् स्थितिरद्य यथा तथा ॥

भावार्थ:
वासना ही संसार है, इसलिए इन सबका परित्याग कर दो। वासना त्याग से ही संसार का त्याग होता है। अब (शरीर, अन्त:करण और संसार की) चाहे जैसी स्थिति हो, उससे कोई सम्बन्ध नहीं रहता।
~ अष्टावक्र गीता, श्लोक 9.8

आपके ही अपने विकार आपके सामने संसार बनकर प्रकट हो जाते हैं I आपके विकार ही संसार को आपके लिए अर्थपूर्ण बनाते हैं I
वासनाएँ दो दिशा में जा सकती हैं I जो वासनाओं की प्राकृतिक दिशा है, वो तो यही है कि संसार से और और विषयों की माँग करते रहो, उनसे नाता जोड़ते हो, उनको आजमाते रहो, उम्मीद बैठाए रखो।
प्राकृतिक दिशा है वासनाओं की, वो तो यही है कि बढ़ते रहो, बढ़ते रहो, अनंत ब्रह्माण्ड हैं, अनंत विषय है I
इच्छा की, कामना की, स्वार्थ की, यह प्राकृतिक दिशा है
एक प्रेम की दिशा होती है। प्रेम की दिशा कहती है कि मिटना है सचमुच I
जो हमें मुक्त कर सकते हैं, उनसे भी हमारा स्वार्थ ही होता है I
बिना स्वार्थ के हम उन्हें मन में जगह देते नहीं, उनसे भी हमारा स्वार्थ ही होता है पर एक विशेष किस्म का स्वार्थ होता है I
उनसे हमारा स्वार्थ होता है मुक्ति का, और जिससे मुक्ति का स्वार्थ होता है, उसे परमार्थ कहते हैं I

~ आप कैसी दुनिया चाहते हो?
~ संसार कितने प्रकार के होते हैं?
~ आपका दुनिया के साथ कैसा संबंध है?
~ आप जैसे हैं, वैसा ही आपका चुनाव होता है।
~ दूसरों की शिकायद बंद करें, पहले स्वयं को देखें।

संगीत: मिलिंद दाते
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