Gavari गवरी pabuji rathore पाबूजी राठोड़ की शानदार संगीतमय प्रस्तुति -गुड़ला गवरी

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केसर घोड़ी सोवणी, मोतिया जड़ी लगाम। 
कोलमुड़ रा वीर पाबूजी ने झुकझुक करूँ प्रणाम।। 
राजस्थान में पाबूजी राठौड़ को लोक देवता के रूप में पूजा जाता है। जिसने गायों की रक्षा के लिए तीन फेरे लेने के बाद मंडप छोड़ दिया था। वही पाबूजी राठौड़ जिसके लिए कहा जाता है कि शेष चार फेरे स्वर्ग में लिए थे। इस कारण गौ रक्षक के रूप में भी जाने जाते हैं। पाबूजी राठौड़ को ऊंटो का देवता भी कहा जाता है। यहाँ तक की ऊंटों के बीमार होने पर उनकी पूजा और भक्ति की जाती है। इसके साथ साथ पाबूजी महाराज को लक्ष्मण का अवतार भी माना जाता है। पाबूजी राठौड़ के दो वीर प्रसिद्ध साथी भी थे, जिनका नाम चंदा और दामा था। ऊंटों को पालने वाले रेबारी जातियों के लिए बाबूजी राठौड़ आराध्यदेव है। पाबूजी राठौड़ को मुसलमान पीर नाम से पूजते है। पाबूजी राठौड़ की माँ को लेकर भी एक कहानी है। लोग कहते हैं कि पाबूजी राठौड़ की माँ एक परि थी। ऐसा माना जाता है कि परि आसमान में विचरण करती है। वो कभी कभी रात में धरती पर उतरती है। ताकि उनको कोई देख ना सके। अगर उनको कोई देख ले तो वो वापस स्वर्ग लोक नहीं जा पाती। इसी वजह से परी रात में नीचे उतरती है। एक बार एक परी मारवाड़ की धरती पर उतरी। पास ही एक तालाब में वो नहा रही थी। और इधर से पाबूजी राठौड़ के पिता धाँधल जी अपने घोड़े पर सवार होकर जा रहे थे। तालाब को देखकर वह अपने घोड़े को पानी पिलाने के लिए तालाब पर आते हैं। और उस परी को देखकर स्तब्ध रह जाते हैं, और उसी को एकटक देखने लग जाते हैंपरी ने एक पुत्र को जन्म दिया। यानी पाबूजी राठौड़ का जन्म हुआ। पाबूजी बचपन से ही काफी सुन्दर थे। कहते हैं कि एक दिन धाँधल जी बिना आज्ञा से परी के महल में प्रवेश कर गए। और उन्होंने देखा कि एक शेरनी बच्चे को दूध पीला रही है। तभी धाँधल जी को देख वह शेरनी वापस एक पारी के रूप में बदल गई।

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