Kalki Avatar Katha || कल्कि अवतार कथा

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कल्कि अवतार कथा:-


त्रेता में राम, द्वापर में कृष्ण, कलियुग में बने कल्कि भगवान
(जय श्री हरि)


(1) माहा अवतार और भगवान विष्णु के अंतिम अवतार होंगे कलियुग मे। त्रेतायुग में भगवान श्री राम ने अवतार लिया था। द्वापरयुग में भगवान श्री कृष्ण ने अवतार लिया था और अब कलियुग में भगवान कल्कि बन कर आएँगे।

(2) भगवान परशुराम त्रेतायुग में भगवान श्री राम के स्वयंवर में दिखाई दिए थे और उन्होंने नारायण के दर्शन हुए और उसके बाद महेन्द्रगिरि पर्वत पर जा कर तपस्या आरम्भ कर दी। द्वापरयुग में भी भगवान परशुराम दिखाई दिए थे और उन्होंने देव व्रत भीष्म, द्रोणाचार्य और सूर्य पुत्र कर्ण को अस्त्र सस्त्र प्राप्त करवाया था और अंत में महाभारत युद्ध हुआ था और उसका परिणाम पांडवो की विजयी में हुई थी। भगवान परशुराम कलियुग के अंत में दिखाई देते है और वेहे कल्कि भगवान के गुरु बनेंगे । जो आज भी कलियुग में भगवान परशुराम घोर तपस्या कर रहे है महेन्द्रगिरि पर्वत पर (ओडिशा )। कलियुग में भगवान कल्कि को दिव्य अस्त्र सस्त्र प्राप्त करवाते हैं।

(3) जैसे ही श्री राम ने सरयू में प्रवेश किया, विष्णु रूप धारण करके उन्होंने हनुमान श्री से कहा। हे हनुमान तुमने दीर्घकाल तक जीवित रहने की प्रतिज्ञा की थी सो हे हनुमान ! जब तक संसार में मेरी कथा का प्रचार रहे तब तक तुम भी मेरी आज्ञा से धरती पर रहोगे तुम कलियुग के अंत में होने वाली प्रलय तक रह कर मेरी कथा का प्रचार करोगे। हे पवन पुत्र हनुमान कलियुग में धर्म का केवल एक ही चरण रह जायेगा। अंत उस समय भक्तों को तुम्हारी सहायता की विशेष आवश्यकता होगी। क्यूंकि कलियुग में केवल हरि नाम कीर्तन ही मोक्ष का सुलभ मार्ग होगा।

(4) (माँ वैष्णो देवी और भगवान कल्कि के अद्भुत सम्बन्ध)
जब वैष्णवी ने भगवान श्री राम से अपने मिलान को वंचित पाया तो वेहे व्यथित हो उठी। भगवान श्री राम ने उन्हें मधुर शब्दों में कहा "हे वैष्णवी तुम्हे अभी उतनी आध्यात्मिक शक्ति नहीं मिली है की तुम्हारा विष्णु से समन्वय हो सके " निराश न हो तुम्हे अभी तप करते रहना होगा। समय आने पर तुम्हे फल मिलेगा। तुम्हारी तपस्या के बल पर कलियुग में मैं कल्कि अवतार में तुम्हे अपनी शक्ति के रूप में स्वीकार करूँगा।

(5) माता वैष्णो देवी यात्रा और आज भी इस कलियुग में माता वैष्णवी त्रिकुटा पर्वत पर विराजमान है (Katra in Jammu & Kashmir)और अपने भक्तों का उधार करती है। कहा जाता है माता वैष्णवी त्रेतायुग से लेकर कलियुग तक यही पर विराजमान है उनकी लीला बड़ी ही निराली है और इसी भूमि पर माता वैष्णवी ने भैरव का अंत किया था और भैरव का मुख ऊपर की पहाड़ियों में जा गिरा और माता से क्षमा मांगने लगा तब माता वैष्णवी ने भैरव को वरदान दिया और कहा जो भी भक्त मेरे द्वार पर आएगा तब तेरे भी दर्शन अवश्य होंगे अर्धात तेरे दर्शन के बिना भक्तों की यात्रा सफल नहीं होगी इसलिए आज भी हज़ारों भक्त माता वैष्णवी के दर्शन के साथ साथ भैरव के भी दर्शन करने जाते है और यहीं से माता वैष्णो देवी की यात्रा सफल मानी जाती है। .


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