क्या आप जानते है, क्यों पहनते हैं जनेऊ और क्या है इसके वैज्ञानिक महत्व
आखिर क्यों पहना जाता है जनेऊ l क्या है जनेऊ l जनेऊ पहनने के क्या क्या फायदे हैं l उपनयन संस्कार -
आज हम बात करेंगे जनेऊ की. जनेऊ क्या है और इसे क्यों धारण करना चाहिये ?
और इससे पहले अगर आप ये जानना चाहते है की कब कब जनेऊ बदलना चाहिए तो देखें हाहार ये विडिओ -
क्या जनेऊ धारण करना केवल धार्मिक रूप से ही महत्त्वपूर्ण है या फिर वाकई जनेऊ पहनने का कोई वैज्ञानिक आधार भी है ?
क्या है जनेऊ ? (( header))
आपने कई लोगों को बायें कंधे से दायीं बांह की ओर 3 या 6 कच्चे धागे लपेटे देखा होगा.
इस धागे को ही जनेऊ कहते हैं.
जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है.
यह सूत से बना पवित्र धागा होता है.
जनेऊ को उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र भी कहते हैं.
यज्ञोपवीत को व्रतशीलता का प्रतीक मानते हैं.
इसीलिए इसे सूत्र भी कहते हैं.
जनेऊ धारण करने की एक पूरी प्रक्रिया होती है जिसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं.
बालक की आयुवृद्धि हेतु गायत्री तथा वेदपाठ का अधिकारी बनने के लिए उपनयन संस्कार अत्यन्त आवश्यक है.
क्या होता है उपनयन संस्कार ? (( header))
'उपनयन' का अर्थ है, 'पास या सन्निकट ले जाना।'
अब प्रश्न है कि किसके पास ले जाना ?
ब्रह्म यानी ईश्वर और ज्ञान के पास ले जाना ही उपनयन है
यानी उपनयन संस्कार मानव को ईश्वर को जानने की ओर अग्रसर करता है.
जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है.
द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म.
उपनयन संस्कार को मानव का दूसरा जन्म माना जाता है
प्राचीनकाल में शिष्य, संत और ब्राह्मण बनाने के लिए दीक्षा दी जाती थी.
इस दीक्षा देने के तरीके में से एक जनेऊ धारण करना भी होता था.
प्राचीनकाल में गुरुकुल में दीक्षा लेने या संन्यस्त होने के पूर्व यह संस्कार होता था.
कैसे करते हैं उपनयन संस्कार ? (( header))
उपनयन या यज्ञोपवीत संस्कार करने के पूर्व बालक का मुंडन करवाया जाता है.
बालक को स्नान करवाकर उसके सिर और शरीर पर चंदन केसर का लेप करते हैं और जनेऊ पहनाकर ब्रह्मचारी बनाते हैं और होम करते हैं.
उसके बाद विधिपूर्वक गणेशादि देवताओं का पूजन, यज्ञवेदी और बालक को अधोवस्त्र के साथ माला पहनाकर बैठाया जाता है,
दस बार गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित करके देवताओं के आह्वान के साथ उससे शास्त्र शिक्षा और व्रतों के पालन का वचन लिया जाता है.
फिर स्नान कराकर उस वक्त गुरु, पिता या बड़ा भाई गायत्री मंत्र सुनाकर कहता है कि आज से तू अब ब्राह्मण हुआ अर्थात ब्रह्म यानी ईश्वर को मानने वाला हुआ.
यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र है-
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।
इसके बाद मृगचर्म ओढ़कर मुंज (मेखला) का कंदोरा बांधते हैं.
हाथ में एक दंड दिया जाता है.
तत्पश्चात् वह बालक उपस्थित लोगों से भिक्षा मांगता है.
शाम को खाना खाने के पश्चात् दंड को साथ कंधे पर रखकर घर से भागता है और कहता है कि मैं पढ़ने के लिए काशी जाता हूं.
बाद में कुछ लोग शादी का लालच देकर पकड़ लाते हैं.
तत्पश्चात वह लड़का ब्राह्मण मान लिया जाता है.
ये तो हो गया उपनयन संस्कार का महत्त्व और उसकी विधि
चलिये अब जान लेते हैं कि जनेऊ पहनने के क्या-क्या फायदे हैं ?
सनातन धर्म के हर अनुयायी को जनेऊ धारण करना चाहिये जो मांस और मदिरा को छोड़कर सादगीपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं.
जनेऊ पहनने के क्या-क्या फायदे हैं ? (( header))
1.जीवाणुओं-कीटाणुओं से बचाव : जो लोग जनेऊ पहनते हैं और उसके नियमों का पालन करते हैं, वे मल-मूत्र त्याग करते वक्त अपना मुंह बंद रखते हैं. इससे वे लोग गंदे स्थानों पर पाए जाने वाले जीवाणुओं और कीटाणुओं के प्रकोप से बच जाते हैं.
2.किडनी रोग से बचाव : यह नियम है कि बैठकर ही पानी पीना चाहिये. वैसे ही बैठकर ही मूत्र त्याग करना चाहिए. उक्त दोनों नियमों का पालन करने से किडनी पर प्रेशर नहीं पड़ता. जनेऊ धारण करने से यह दोनों ही नियम अनिवार्य हो जाते हैं.
3.हार्ट डिजिज और ब्लडप्रेशर से बचाव : शोध के बाद मेडिकल साइंस ने भी ये माना है कि जनेऊ पहनने वालों को हृदय रोग और ब्लडप्रेशर की आशंका अन्य लोगों के मुकाबले कम होती है. जनेऊ शरीर में खून के प्रवाह को भी कंट्रोल करने में मददगार होता है.
4.
कब्ज से बचाव : जनेऊ को कान के ऊपर कसकर लपेटने का नियम है.
ऐसा करने से कान के पास से गुजरने वाली उन नसों पर भी दबाव पड़ता है,
जिनका संबंध सीधे आंतों से हैं. इन नसों पर दबाव पड़ने से कब्ज की शिकायत नहीं होती है.
5.
तेज होती है स्मरण शक्ति : कान पर हर रोज जनेऊ रखने और कसने से स्मरण शक्ति का क्षय नहीं होता है.
इससे स्मृति कोष बढ़ता रहता है. कान पर दबाव पड़ने से दिमाग की वे नसें एक्टिव हो जाती हैं, जिनका संबंध स्मरण शक्ति से होता है.
6.
आचरण की शुद्धता से मानसिक बल : कंधे पर जनेऊ है, इसका मात्र अहसास होने से ही मनुष्य बुरे कार्यों से दूर रहने लगता है.
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