| Rohtashgarh Fort | किले के जर्रे जर्रे में रहस्य और रोमांच की कहानियां बिखरी पड़ी है! (Ep-1)

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| Rohtasgarh Fort | दीवारों से टपकता है खून, रूह कांप जाती है इस सतयुग कालीन किले को देखते समय! ‪@Gyanvikvlogs‬

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रोहतास एक जिले का नहीं एक इतिहास का नाम है , जो बिहार में आर्यों के प्रसार के साथ पड़ा । सूर्यवंशी राजा हरिशचन्द्र के पुत्र रोहिताश्व द्वारा स्थापित ' रोहतास गढ़ ' के नाम पर इस क्षेत्र का नामकरण रोहतास पड़ा । मुगल बादशाह अकबर के शासन काल 1582 में ' रोहतास सरकार ' थी , जिसमें सात परगना शामिल थे । 1784 ई . में तीन परगना को मिलाकर रोहतास जिला बना । इसके बाद यह शाहाबाद का अंग बना और 10 नवम्बर 1972 से रोहतास जिला कायम है । शाहाबाद गजेटियर के अनुसार रोहतास सरकार में रोहतास , सासाराम , चैनपुर के अलावे जपला , बलौंजा , सिरिस और कुटुम्बा परगना शामिल थे । 1587 ई . में सम्राट अकबर ने राजा मान सिंह को बिहार व बंगाल का संयुक्त सूबेदार बनाकर रोहतास भेजा था । राजा मान सिंह ने उसी वर्ष रोहतास गढ़ को प्रांतीय राजधानी घोषित किया । शाहजहांनामा के अनुसार इखलास खां को 1632-33 में रोहतास का किलेदार नियुक्त किया गया । अकबरपुर से सटे पहाड़ी के नीचे स्थित एक शिलालेख के अनुसार किलेदार नवाब इखलास खां को मकराइन परगना तथा चांद , सीरिस , कुटुम्बा से बनारस तक फौजदारी प्राप्त थी । वह चैनपुर , मगसर , तिलौथू , अकबरपुर , बेलौंजा , विजयगढ़ व जपला का जागीरदार था । यानी उसके क्षेत्र में पुराना शाहाबाद , गया , पलामू और बनारस क्षेत्र शामिल था । जिसका शासन वह रोहतास से करता था । 25 फरवरी 1702 को वजीर खां के पुत्र अब्दुल कादिर को रोहतास का किलेदार नियुक्त किया गया । उसी समय रोहतास का किला अवांछित तत्वों के काम आने लगा । अकबर के समय से चली आ रही रोहतास सरकार में औरंगजेब ने कई परिवर्तन कर सातों परगना को पुनगर्ठित किया । शाहाबाद गजेटियर में पुनः 1784 में रोहतास जिला स्थापित होने का उल्लेख है । उसके अनुसार रोहतास , सासाराम व चैनपुर परगनों को मिलाकर जिला बनाया गया । रोहतास के सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास पर शोध कर चुके आकाशवाणी के पुस्तकालयाध्यक्ष डा . श्याम सुन्दर तिवारी कहते हैं कि यह जिला आदि काल में कारुष प्रदेश था । जिसका वर्णन ब्रह्मांड पुराण में भी आया है । रोहतास गढ़ के नाम पर ही इस क्षेत्र का नामकरण रोहतास होता रहा है । कभी भारत के बादशाह शाहजहां भी इस किले में अपनी बेगम के साथ रहे हैं । मुगल साम्राज्य से पूर्व भी 1494 ई . में दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी ने राजा शालिवाहन को चैनपुर व रोहतास का राज्य सौंपा था ।
सर्वप्रथम 1764 ई . में मीर कासिम को बक्सर युद्ध में अंग्रेजों से पराजय के बाद यह क्षेत्र अंग्रेजों के हाथ आ गया । 1774 ई . में अंग्रेज कप्तान थामस गोडार्ड ने रोहतास गढ़ को अपने कब्जे में लिया और उसे तहस - नहस किया । रोहतास का इतिहास , इसकी सभ्यता और संस्कृति अति समृद्धशाली रही है । इसी कारण अंग्रेजों के समय यह क्षेत्र पुरातात्विक महत्व का रहा । 1807 में सर्वेक्षण का दायित्व फ्रांसिस बुकानन को सौंपा गया । वह 30 नवम्बर 1812 को रोहतास आया और कई पुरातात्विक जानकारियां एकत्रित की । 1881-82 में एचबीडब्लू गैरिक ने इस क्षेत्र का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया और रोहतास गढ़ से राजा शशांक की मुहर का सांचा प्राप्त किया । वैदिक काल में भी रोहतास का अपना विशिष्ट स्थान रहने का प्रमाण पुराणों में प्राप्त हुए हैं । ब्रह्मांड पुराण 4 / 29 में इस क्षेत्र को कारुष प्रदेश कहा गया है। ' काशीतः प्राग्दिग्भागे प्रत्यक शोणनदादपि । जाह्वी विन्ध्योर्मध्ये देशः कारुषः स्मृतः ।। ' महाभारत काल में कारुष राजा था । महाजनपद युग से लेकर परावर्ती गुप्तकाल तक यह क्षेत्र मगध और काशी के बीच रहा । भगवान बुद्ध उसवेला यानी बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद रोहितवस्तु यानी रोहतास राज्य होते हुए ही ऋषिपत्तन अर्थात सारनाथ गए थे । यह क्षेत्र मौर्यकाल में भी प्रसिद्ध रहा है । तभी तो सम्राट अशोक ने सासाराम के निकट चंदतन शहीद पहाड़ी पर अपना लघु शिलालेख लिखवाया । सातवीं सदी में रोहतास गढ़ का राज्य थानेश्वर का राजा और हर्षवर्द्धन को मार डालने वाले गौड़ाधीप शशांक के हाथों में था । जिसके मुहर व सांचा उत्कीर्णन में प्राप्त हुए हैं । 12 वीं सदी में भी यह राज्य ख्यारवालों यानी खरवालों ( खरवारों ) के हाथ में गया । इसी सदी के प्रतापी राजा प्रताप धवल देव के तुतला भवानी , ताराचंडी , रोहतास गढ़ की फुलवारी में स्थित शिलालेख इसके आज भी प्राचीनता की गाथा के मिसाल हैं ।

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