जो दूसरों को खुश देखना चाहते हैं || आचार्य प्रशांत, अवधूत गीता पर (2020)

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वीडियो जानकारी: 1.3.2020 , खुला सत्त्र , ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश

प्रसंग:
एकचार्यनिकेतः स्याद्धमत्तो गुहाशयः।
अलक्ष्यमाण आचारैर्मुनिरेकोऽल्पभाषणः।।

राजन ! मैंने साँप से यह शिक्षा ग्रहण की है कि सन्यासी को सर्प की भाँति अकेले ही विचरण करना चाहिए, उसे मण्डली नहीं बाँधनी चाहिए, मठ तो बनाना ही नहीं चाहिए।
~ अवधूत गीता (अध्याय ३, श्लोक १४)

एकचार्यनिकेतः स्याद्धमत्तो गुहाशयः।
अलक्ष्यमाण आचारैर्मुनिरेकोऽल्पभाषणः॥

वह एक स्थान में न रहे, प्रमाद न करे, गुहा आदि में पड़ा रहे, बाहरी आचारों से पहचाना न जाय । किसी की सहायता न ले और बहुत कम बोले ।
~ अवधूत गीता (अध्याय ३, श्लोक १४)


~ जो दूसरों को खुश देखना चाहते हैं वह क्या करें?
~ जीवन से दुर्गंध कैसे हटाएं?
~ सन्यासी को अकेले विचरण क्यों करना चाहिए?
~ असली सन्यासी कौन होता है?
~ साधु के रिश्ते कैसे होते हैं?


संगीत: मिलिंद दाते
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