श्री राधा रानी मंदिर दर्शन एंव सम्पूर्ण परिक्रमा बरसाना|Radharani darsan| Barsana |

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सम्पूर्ण बरसाना परिक्रमा एवं राधा रानी मंदिर बरसाना दर्शन
मथुरा के बरसाने में राधा रानी मन्दिर प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। बरसाने के बीचों-बीच एक पहाड़ी है, जिस पर यह खूबसूरत मंदिर स्थित है। इस मंदिर को ‘बरसाने की लाड़ली जी का मंदिर’ और ‘राधारानी महल’ भी कहा जाता है। हिन्दू कैलेंडर के भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को यहां राधा रानी की विशेष पूजा होती, क्योंकि इस दिन को राधाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। स्कंद पुराण और गर्ग संहिता के अनुसार इस दिन बरसाने की लाड़ली श्री राधा जी का जन्म हुआ था।
250 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना है ये मंदिर
राधा जी का यह प्राचीन मंदिर मध्यकालीन है, जो लाल और पीले पत्थर का बना है। राधा-कृष्ण को समर्पित इस भव्य और सुंदर मंदिर का निर्माण राजा वीरसिंह ने 1675 ई. में करवाया था। बाद में स्थानीय लोगों द्वारा पत्थरों को इस मंदिर में लगवाया गया। राधा रानी का यह सुंदर और मनमोहक मंदिर करीब ढाई सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना है और इस मंदिर में जाने के लिए सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। राधा श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति एवं निकुंजेश्वरी मानी जाती हैं। इसलिए राधा किशोरी के उपासकों का यह अतिप्रिय तीर्थ है।

श्याम और गौरवर्ण के पत्थर
बरसाने की पुण्यस्थली बड़ी हरी-भरी तथा रमणीक है। इसकी पहाड़ियों के पत्थर श्याम तथा गौरवर्ण के हैं जिन्हें यहां के निवासी कृष्णा तथा राधा के अमर प्रेम का प्रतीक मानते हैं। बरसाने से 4 मील पर नन्दगांव है, जहां श्रीकृष्ण के पिता नंदजी का घर था। बरसाना-नंदगांव मार्ग पर संकेत नामक स्थान है। जहां किंवदंती के अनुसार कृष्ण और राधा का प्रथम मिलन हुआ था। (संकेत का शब्दार्थ है पूर्वनिर्दिष्ट मिलने का स्थान) यहां भाद्रपद शुक्ल अष्टमी (राधाष्टमी) से चतुर्दशी तक बहुत सुंदर मेला होता है। इसी प्रकार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, नवमी एवं दशमी को आकर्षक लीला होती है।

सबसे पहले मोर को खिलाते हैं भोग
लाड़ली जी के मंदिर में राधाष्टमी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। राधाष्टमी का पर्व जन्माष्टमी के 15 दिन बाद भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। राधाष्टमी पर्व बरसाना वासियों के लिए अति महत्त्वपूर्ण है। राधाष्टमी के दिन राधा जी के मंदिर को फूलों और फलों से सजाया जाता है। राधाजी को लड्डुओं और छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग का भोग लगाया जाता है और उस भोग को सबसे पहले मोर को खिला दिया जाता है। मोर को राधा-कृष्ण का स्वरूप माना जाता है। बाकी प्रसाद को श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है। इस अवसर पर राधा रानी मंदिर में श्रद्धालु बधाई गान गाते है और नाच गाकर राधाअष्टमी का त्योहार मनाते हैं।

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