Murdahiya Adhyay 1 मुर्दहिया - अध्याय 1 (भुतही पारिवारिक भूमिका)

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मुर्दहिया' डॉ. तुलसीराम की आत्मकथा है। यह उनके जन्म स्थान आजमगढ़ के धर्मपुर नाम के एक गाँव का 'श्मशान घाट' है। लेखक ने अपनी आत्मकथा 'मुर्दहिया' में एक साथ दो पीड़ाओं की अभिव्यक्ति की है। एक तो जातिगत भेदभाव जनित पीड़ा थी जो उन्हें समाज में झेलनी पड़ती है। दूसरी पीड़ा उनकी एक आँख के चले जाने के कारण झेलनी पड़ती है। ख़ास बात तो यह है कि यह पीड़ा देनेवालों में उनका अपना परिवार भी शामिल था, जो उन्हें 'कनवा' कहकर संबोधित करते थे। यह आत्मकथा दो खंडों में लिखी गयी 'मुर्दहिया' (1910 ई.) तथा 'मणिकर्णिका' (2014 ई.) में प्रकाशित हुआ। संभवतः मुर्दहिया हिंदी की पहली आत्मकथा है, जिसमे केवल दलित ही नहीं अपितु गाँव का संपूर्ण लोकजीवन ही केंद्र में है। इस 184 पृष्ठों की आत्मकथा में आरंभिक पढ़ाई से लेकर मैट्रिक तक की पढ़ाई का चित्रण है। सबसे उल्लेखनीय यह है कि यहाँ लेखक केंद्र में नहीं है। इसके केंद्र में दलित जीवन, उनकी अंधश्रद्धाएँ, कर्मकांड, भूतों के प्रति भय, सवर्णों का जीवन, दलित का संघर्ष, आपसी होड़, दरिद्रता, रोजी-रोटी की तलाश, त्योहार, पूजा-पाठ, लोकगीत, गाँव में बसे कुछ विक्षिप्त परन्तु विलक्षण शिक्षा की घोर अवहेलना और उससे संबंधित जानबूझकर फैलाई गई अफवाहें। दलित संघर्ष- सही मायने में एक गाँव में जितने भी अंतः प्रवाह होते हैं, वे सब इसमें आ गये हैं। इस आत्मकथा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें आत्मकथा का निजी अनुभव नहीं है बल्कि इसमें लोक भी साथ-साथ चलता है।

यह आत्मकथा अपने समय और समाज के विविध संदर्भों को समेटे हुए है। इसमें दलितों के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक जीवन की बहुमुखी तस्वीर दिखाई पड़ती है।

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