अप्रतिम भजन, या झोपडीत माझ्या, तुकडोजी भजन, गायक प्रमोद पोकळे Best तबला प्रशांत दुधे At Das Tekdi

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राजास जी महाली सौख्ये कधी मिळाली
ती सर्व प्राप्त झाली या झोपडीत माझ्या

भूमीवरी पडावे ताऱ्यांकडे पहावे
प्रभुनाम नित्य गावे या झोपडीत माझ्या

पहारे आणि तिजोऱ्या, त्यातुनि होती चोऱ्या
दाराशी नाही दोऱ्या, या झोपडीत माझ्या

जाता त्या महाला मज्जाव शब्द आला
भीती न यावयाला, या झोपडीत माझ्या

महाली मऊ बिछाने कंदील शामदाने
आम्हा जमीन माने या झोपडीत माझ्या

येता तरी सुखे या, जाता तरी सुखे जा
कोणावरी न बोजा, या झोपडीत माझ्या

पाहून सौख्य माझे, देवेंद्र तोही लाजे
शांती सदा विराजे, या झोपडीत माझ्या

'तुकड्या' मती करावी, पायी तुझ्या नमावी
मूर्ती तुझी रहावी, या झोपडीत माझ्या

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_संत तुकडोजी महाराज

पूजनीय राष्ट्रसंत तुकडोजीका जन्म ३० अप्रैल १९०९ को महाराष्ट्र राज्य (भारत) के अमरावती जनपदके यावली नामक एक दूरदराजके गाँवके एक बहुत ही गरीब परिवारमें हुआ था। इन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा यावली और वरखेडमें पूरी की। अपने प्रारंभिक जीवनमें ही उनका संपर्क बहुत सारे महान संतोंके साथ हो गया था। समर्थ आडकोजी महाराजने उनके ऊपर अपने स्नेहकी वर्षाकी और उन्हें योग शक्तियोंसे विभूषित किया। संत तुकडोजी महाराजके कार्य
१९३५ में तुकडोजीने सालबर्डीकी पहाड़ियोंपर महारूद्र यज्ञका आयोजन किया। जिस,में तीन लाखसे अधिक लोगोंने भाग लिया। इस यज्ञके बाद उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई और वे पूरे मध्य प्रदेशमें सम्माननीय हो गए। १९३६ में महात्मा गाँधीद्वारा सेवाग्राम आश्रममें उन्हें निमंत्रित किया गया, जहाँ वह लगभग एक महीने रहे। उसके बाद तुकडोजीने सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यक्रमोंद्वारा समाजमें जन जागृतिका काम प्रारंभ कर दिया, जो १९४२ के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्रामके रूपमें परिलक्षित हुआ। राष्ट्रसंत तुकडोजीके ही आह्वानका परिणाम था – आष्टि-चिमुर स्वतंत्रता संग्राम। इसके चलते अंग्रेजोंद्वारा उन्हें चंद्रपुरमें गिरफ्तार कर नागपुर और फिर रायपुरके जेलमें १०० दिनों (२८ अगस्त से ०२ दिसंबर १९४२ तक) के लिए डाल दिया गया।
गुरूकुंज आश्रम की स्थापना
कारागृह (जेल) से छूटनेके बाद तुकडोजीने सामाजिक सुधार आंदोलन चलाकर अंधविश्वास, अस्पृश्यता, मिथ्या धर्म, गोवध एवं अन्य सामाजिक बुराइयोंके खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने नागपुरसे १२० किमी दूर मोझरी नामक गाँवमें गुरूकुंज आश्रम की स्थापना की, जहाँ उनके अनुयायियोंकी सक्रिय सहभागितासे संरचनात्मक कार्यक्रमोंको चलाया जाता था। आश्रमके प्रवेश द्वारपर ही उनके सिद्धांत इस प्रकार अंकित हैं – “इस मन्दिरका द्वार सबके लिए खुला है”, “हर धर्म और पंथके व्यक्तिका यहाँ स्वागत है”, “देश और विदेशके हर व्यक्तिका यहाँ स्वागत है” स्वतंत्रता प्राप्तिके बाद तुकडोजीने अपना पूरा ध्यान ग्रामीण पुर्ननिर्माण कार्योंकी ओर लगाया और रचनात्मक काम करने वालोंके लिए कई प्रकारके शिविरोंको आयोजित किया। उनके क्रियाकलाप अत्यधिक प्रभावकारी और राष्ट्रीय हित से जुड़े हुए थे। तत्कालीन भारतके राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसादने गुरूकुंज आश्रके एक विशाल समारोह में उनके ऊपर अपना स्नेह समर्पित करते हुए आदरके साथ “राष्ट्रसंत” के सम्मानसे प्रतिष्ठित किया। उस समयसे उन्हें लोग अत्यधिक आदरके साथ “राष्ट्रसंत” के उपनामसे बुलाने लगे।
‘ग्रामगीता’ की रचना.....
अपने अनुभवों और अंतदृष्टिके आधारपर राष्ट्रसंतने “ग्रामगीता” की रचना की, जिसमें उन्होंने वर्तमानकालिक स्थितियोंका निरूपण करते हुए ग्रामीण भारतके विकासके लिए एक सर्वथा नूतन विचारका प्रतिपादन किया। १९५५ में उन्हें जापान में होने वाले विश्व धर्म संसद और विश्व शांति सम्मेलनके लिए निमंत्रित किया गया। राष्ट्रसंत तुकडोजीद्वारा खँजड़ी के स्वर के साथ दोनों ही सम्मेलनों का उद्‍घाटन सम्मेलन कक्ष में उपस्थित हजारों श्रोताओं की अत्यधिक प्रशंसा के साथ हुआ। भारत साधु समाज का गठन
१९५६ में राष्ट्रसंत तुकडोजी द्वारा भारत साधु समाज का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न संपद्रायों, पंथों और धार्मिक संस्थाओंके प्रमुखोंकी सक्रिय सहभागिता देखनेको मिली। यह स्वतंत्र भारतका पहला संत संगठन था, और इसके प्रथम अध्यक्ष तुकडोजी महाराज थे। १९५६ से १९६० की वर्षावधिके दौरान उन्हें विभिन्न सम्मेलनोंको संबोधित या संचालित करनेके लिए निमंत्रित किया गया। उनमेंसे कुछ सम्मेलन हैं – भारत सेवक समाज सम्मेलन, हरिजन सम्मेलन, विदर्भ साक्षरता सम्मेलन, अखिल भारतीय वेदान्त सम्मेलन, आयुर्वेद सम्मेलन इत्यादि। वह विश्व हिंदू परिषदके संस्थापक उपाध्यक्षोंमेंसे एक थे। उनकेद्वारा राष्ट्रीय विषयके कई सारे मोर्चों जैसे- बंगालका भीषण अकाल (१९४५), चीनसे युद्ध (१९६२) और पाकिस्तान आक्रमण (१९६५) पर अपनी भूमिकाका निर्वाह तत्परतासे किया गया। कोयना भूकंप त्रासदी (१९६२) के समय राष्ट्रसंतने प्रभावित लोगोंकी त्वरित सहायताके लिए अपना मिशन चलाया और बहुत सारे संरचनात्मक राहत कार्योंको आयोजित किया।

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