Shri Krishnastakam| Krishna Stotram| Vishnu Stuti|Krishna Bhajan| Madhvi Madhukar Jha

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।। श्री कृष्णाष्टकम् ।।
भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं
स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम् |
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं
अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम् || १ ||
अर्थ:- " मैं भजता हूं उन्हें जो व्रजमण्डल के आभूषण हैं और पापराशी को समाप्त करते हैं और सदा अपने भक्तों के चित्त में रञ्जन करते हैं , जो नन्द बाबा के सुपुत्र हैं । जो मोरपंखगुच्छ को मस्तक पर धारण करते हैं तथा मधुर रागस्वर प्रदायी बांसुरी जिनके हाथ में है , उन प्रेमकला के सागर भगवान कृष्ण को नमस्कार है । "
मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं
विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम् |
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं
महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्णावारणम् || २ ||
अर्थ:- " जिनके आकर्षण के आगे कामदेव का गर्व चूर- चूर होता है , जिनके नेत्र विशाल सुंदर हैं , जो गोपांगनाओं को शोकमुक्त करते हैं उन कमलनयन को प्रणाम है । जिन्होंने अपने कोमल हाथ से पर्वत उठाया था , जो मधुर-सुंदरहास युक्त हैं , जिन्होंने देवराज इन्द्र के दर्प का दलन किया और जो गजराज समान हैं उन श्रीकृष्ण को प्रणाम है । "
कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं
व्रजांगनैकवल्लभं नमामि कृष्णदुर्लभम् |
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया
युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम् || ३ ||
अर्थ:- " जो कदम्ब पुष्पों को कर्णकुण्डल रुप में धारण करते हैं , जिनके गाल सुचारु सुंदर हैं , जो व्रजगोपियों के नायक हैं , जो दुर्लभ हैं उन श्रीकृष्ण को प्रणाम है । श्री यशोदा जी , गोपजनों और नन्द बाबा को परमानन्द देने वाले गोपनायक श्री कृष्ण को प्रणाम है । "
सदैव पादपंकजं मदीय मानसे निजं
दधानमुक्तमालकं नमामि नन्दबालकम् |
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं
समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम् || ४ ||
अर्थ:- " जिनके पादपंकज सदा मन में निवास करते हैं , जिनके घुंघराले केश हैं ,जो वैजयंती की चमकदार माला धारण करते हैं उन नन्दबाबा के पुत्र को प्रणाम है । जो समस्त दोषों का शमन करते हैं तथा समस्त लोकों के पालनहार हैं जो गोपजनों के मन में बसे हैं और नन्द बाबा की लालसा हैं उन्हें प्रणाम है । "
भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं
यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम् |
दृगन्तकान्तभंगिनं सदा सदालिसंगिनं
दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसम्भवम् || ५ ||
अर्थ:- " मैं प्रणाम करता हूं उन श्री कृष्ण को जो पापअंत कर धरा का भार उतारते हैं , जो दु:ख रुपी संसार सागर से पार लगाते हैं , जो यशोदा जी के किशोर हैं और जो चित्त को चुरा लिया करते हैं । जिनके नेत्र अत्यन्त सुंदर हैं जो सदा सज्जनों से घिरे रहते हैं और वन्दित होते हैं और जो नित नये प्रतिदिन नवीन औेर नूतन प्रतीत होते हैं । "
गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं
सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनम् |
नवीनगोपनागरं नवीनकेलिलम्पटं
नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटम् || ६ ||
अर्थ :- " नमस्कार है उन गोपनन्दन को जो गुणाकर-सुखाकर-कृपाकर हैं जिनकी कृपा परम है तथा जो देवों के शत्रुओं का नाश कर देते हैं । जो नित नवीन लम्पट लीलाऐं करते हैं और जो घनमेघ समान सुंदर हैं तथा जो बिजली के समान चमकदार पीताम्बर धारण करते हैं । "
समस्तगोपनन्दनं हृदम्बुजैकमोदनं
नमामि कुंजमध्यगं प्रसन्नभानुशोभनम् |
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं
रसालवेणुगायकं नमामि कुंजनायकम् || ७ ||
अर्थ:- " जिनके द्वारा समस्त गोपजन प्रमुदित और प्रसन्न रहते हैं । जो कुञ्ज के मध्य में रहकर उसी प्रकार सभी के मन को खिलाते हैं जैसे सूर्य की उपस्थिति से कमल खिला करते हैं । प्रणाम उन कुंज नायक को जो भक्तों के मनोरथों को पूर्ण करते हैं । जिनके कृपाकटाक्ष दु:खों का नाश करते हैं और जो बांसुरी पर मधुर धुन और राग छेड़ते हैं । "
विदग्धगोपिकामनोमनोज्ञतल्पशायिनं
नमामि कुंजकानने प्रव्रद्धवन्हिपायिनम् |
किशोरकान्तिरंजितं दृअगंजनं सुशोभितं
गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम् || ८ ||
अर्थ :- " जो विवेकवान गोपियों की धारणा रुपी शय्या पर सदा विश्राम करते हैं , तथा जिन्होंने वनअग्नि का पान किया था गोपजनों को बचाने हेतु । मैं प्रणाम करता हूं उन श्री कृष्ण को जो किशोरकान्ति से सम्पन्न हैं तथा जिनके नेत्र अञ्जन ( काजल ) से सुशोभित हैं । जिन्होंने गजेन्द्र को कालरुप ग्राह से मुक्त करा मोक्ष प्रदान किया और जो श्री लक्ष्मी जी के स्वामी और नाथ हैं उन्हें नमस्कार है । "
यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम् |
प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान
भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान || ९ ||
अर्थ:- " हे कृष्ण ऐसी कृपा करें की मैं सद‍ा आपकी लीला , कथा , महिमा का वर्णन करत‍ा रहूं प्रत्येक स्थिति में । जो भी इन अष्टकाद्वय का पाठ करता रहता है वह कृष्ण भक्ति से जन्मजन्मान्तर तक सम्पन्न रहता है । "
इति श्रीमज्जगदगुरु आदि शंकराचार्य भगवत:
कृतो श्री कृष्णाष्टकं सम्पूर्णम् ।

श्री कृष्णस्टकम को श्री कृष्णा कृपा कटाक्ष स्तोत्र भी कहा जाता है.

This Krishna Bhajan, known as Shri Krishnastakam is also known as Krishna Kripa Kataksh Stotram. It is widely believed that hearing and chanting this Krishna Bhajan, (shri Krishnastakakam) wards off all danger and wash away all one's sins. This is undoubtedly one of the most powerful mantra or Krishna Stotram in Sanatan dharma documented by Adi Shankracharya.

Credits
Sri Krishnastakam : Bhaje Vraje Kamandanam(Traditional, Sanskrit)
By Adi Shankaracharya
Singer : Madhvi Madhukar Jha
Music Label : SubhNir Productions
Music Director : Nikhil Bisht and RajKumar
Flute : Gopal Dayal
#MadhviMadhukar

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