BGS0614c संसार से निवृत्त मन को संयमित कर के परमात्मा में पिरोकर परमात्मा परायण होना है।

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#koham3469

जिसका अंत:करण शांत हुवा है (प्रशांतात्मा), जो सभी प्रकार के भय से मुक्त (विगतभी:) है और ब्रह्मचर्यव्रतमें स्थिर (ब्रह्मचारीव्रते स्थित:) है यानि संसार के सारे संबंधोंको उपराम करके (विरक्त होकर, by being indifferent) भगवानमें चित्त को पिरोना है और भगवत्परायण होना है।

वैसे तो यह हमेंशा (24/7) होना चाहिये जो गृहस्थी को अशक्य तो नहीं लेकिन बहोत कठिन लगे तो कमसे कम ध्यान करने की समयावधीमें यह विरक्ति होनी जरूरी है।

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