अत्रि वंश :
ब्रह्मा के मानस पुत्र अत्रि से चन्द्र वंश चला।
यह प्रस्तुत है अत्रिवंशी ययाति कुल की जानकारी...
ययाति कुल : ऋषि अत्रि से आत्रेय वंश चला। आत्रेय
कुल की कई शाखाएं हैं। इस बारे में विस्तार से जानने
के लिए मत्स्य पुराण पढ़ें। आत्रेय नाम की शाखाओं
को छोड़कर यहां अन्य कुल की बात करते हैं। अत्रि
से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध, बुध से पुरुरवा (पुरुवस)
का जन्म हुआ। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार पुरुवस
को ऐल भी कहा जाता था। पुरुवस का विवाह उर्वशी
से हुआ जिससे उसको आयु, वनायु, शतायु, दृढ़ायु,
घीमंत और अमावसु नामक पुत्र प्राप्त हुए। अमावसु
एवं वसु विशेष थे। अमावसु ने कान्यकुब्ज नामक
नगर की नींव डाली और वहां का राजा बना। आयु
का विवाह स्वरभानु की पुत्री प्रभा से हुआ जिनसे
उसके 5 पुत्र हुए- नहुष, क्षत्रवृत (वृदशर्मा), राजभ
(गय), रजि, अनेना। प्रथम नहुष का विवाह विरजा
से हुआ जिससे अनेक पुत्र हुए जिसमें ययाति,
संयाति, अयाति, अयति और ध्रुव प्रमुख थे। इन
पुत्रों में यति और ययाति प्रिय थे। यति के बारे में
फिर कभी। अभी तो जानिए ययाति के बारे में।
अमावसु ने पृथक वंश चलाया जिसमें क्रमश: 15
प्रमुख लोग हुए। इनमें कुशिक (कुशश्च), गाधि,
ऋषि विश्वामित्र, मधुच्छंदस आदि हुए। नय के
पश्चात इस वंश का उल्लेख नहीं मिलता। इस
वंश में एक अजमीगढ़ राजा का उल्लेख मिलता
है जिससे आगे चलकर इस वंश का विस्तार हुआ।
ययाति प्रजापति ब्रह्मा की पीढ़ी में हुए थे। ययाति
ने कई स्त्रियों से संबंध बनाए थे इसलिए उनके कई
पुत्र थे, लेकिन उनकी 2 पत्नियां देवयानी और
शर्मिष्ठा थीं। देवयानी गुरु शुक्राचार्य की पुत्री थी
तो शर्मिष्ठा दैत्यराज वृषपर्वा की पुत्री थीं। पहली
पत्नी देवयानी के यदु और तुर्वसु नामक 2 पुत्र हुए
और दूसरी शर्मिष्ठा से द्रुहु, पुरु तथा अनु हुए। ययाति
की कुछ बेटियां भी थीं जिनमें से एक का नाम
माधवी था।
ययाति के प्रमुख 5 पुत्र थे- 1. पुरु, 2. यदु, 3. तुर्वस,
4. अनु और 5. द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है।
एक समय ऐसा था, जब 7,200 ईसा पूर्व अर्थात
आज से 9,200 वर्ष पूर्व ययाति के इन पांचों पुत्रों
का संपूर्ण धरती पर राज था। पांचों पुत्रों ने अपने
-अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की। यदु से
यादव, तुर्वसु से यवन, द्रुहु से भोज, अनु से मलेच्छ
और पुरु से पौरव वंश की स्थापना हुई।
ययाति ने दक्षिण-पूर्व दिशा में तुर्वसु को (पश्चिम में
पंजाब से उत्तरप्रदेश तक), पश्चिम में द्रुह्मु को,
दक्षिण में यदु को (आज का सिन्ध-गुजरात प्रांत)
और उत्तर में अनु को मांडलिक पद पर नियुक्त
किया तथा पुरु को संपूर्ण भू-मंडल के राज्य पर
अभिषिक्त कर स्वयं वन को चले गए। ययाति के
राज्य का क्षेत्र अफगानिस्तान के हिन्दूकुश से
लेकर असम तक और कश्मीर से लेकर
कन्याकुमारी तक था।
महाभारत आदिपर्व 95 के अनुसार यदु और तुर्वशु
मनु की 7वीं पीढ़ी में हुए थे (मनु-इला-पुरुरवा-
आयु-नहुष-ययाति-यदु-तुर्वशु)।
महाभारत आदिपर्व में यह भी लिखा है कि
नाभानेदिष्ठ मनु का पुत्र और इला का भाई था।
नाभानेदिष्ठ के पिता मनु ने उसे ऋग्वेद दशम मंडल
के सूक्त 61 और 62 का प्रचार करने के लिए कहा।
1. पुरु का वंश
: पुरु वंश में कई प्रतापी राजा हुए।
उनमें से एक थे भरत और सुदास। इसी वंश में
शांतनु हुए जिनके पुत्र थे भीष्म। पुरु के वंश में ही
अर्जुन पुत्र अभिमन्यु हुए। इसी वंश में आगे चलकर
परीक्षित हुए जिनके पुत्र थे जन्मेजय।
2. यदु का वंश :
यदु के कुल में भगवान कृष्ण हुए। यदु के 4 पुत्र थे
सहस्रजीत, क्रोष्टा, नल और रिपुं। सहस्रजीत से
शतजीत का जन्म हुआ। शतजीत के 3 पुत्र थे
महाहय, वेणुहय और हैहय। हैहय से धर्म, धर्म
से नेत्र, नेत्र से कुन्ति, कुन्ति से सोहंजि, सोहंजि से
महिष्मान और महिष्मान से भद्रसेन का जन्म हुआ।
3. तुर्वसु का वंश :
तुर्वसु के वंश में भोज (यवन) हुए। ययाति के
पुत्र तुर्वसु का वह्नि, वह्नि का भर्ग, भर्ग का
भानुमान, भानुमान का त्रिभानु, त्रिभानु का
उदारबुद्धि करंधम और करंधम का पुत्र हुआ
मरूत। मरूत संतानहीन था इसलिए उसने
पुरुवंशी दुष्यंत को अपना पुत्र बनाकर रखा था,
परंतु दुष्यंत राज्य की कामना से अपने ही वंश में
लौट गए।
महाभारत के अनुसार ययाति पुत्र तुर्वसु के वंशज
यवन थे। पहले ये क्षत्रिय थे, लेकिन छत्रिय कर्म
छोड़न के बाद इनकी गिनती शूद्रों में होने लगी।
महाभारत युद्ध में ये कौरवों के साथ थे। इससे
पूर्व दिग्विजय के समय नकुल और सहदेव ने
इन्हें पराजित किया था।
4. अनु का वंश :
अनु को ऋग्वेद में कहीं-कहीं आनव भी कहा
गया है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह
कबीला परुष्णि नदी (रावी नदी) क्षेत्र में बसा
हुआ था। आगे चलकर सौवीर, कैकेय और
मद्र कबीले इन्हीं आनवों से उत्पन्न हुए थे।
अनु के पुत्र सभानर से कालानल, कालानल
से सृन्जय, सृन्जय से पुरन्जय, पुरन्जय से
जन्मेजय, जन्मेजय से महाशाल, महाशाल
से महामना का जन्म हुआ। महामना के 2
पुत्र उशीनर और तितिक्षु हुए। उशीनर के 5
पुत्र हुए- नृग, कृमि, नव, सुव्रत, शिवि
(औशीनर)। इसमें से शिवि के 4 पुत्र हुए
केकय, मद्रक, सुवीर और वृषार्दक। महाभारत
काल में इन चारों के नाम पर 4 जनपद थे।
5. द्रुह्यु का वंश :
द्रुह्मु के वंश में राजा गांधार हुए। ये आर्यावर्त
के मध्य में रहते थे। बाद में द्रुह्युओं को इक्ष्वाकु
कुल के राजा मंधातरी ने मध्य एशिया की ओर
खदेड़ दिया। पुराणों में द्रुह्यु राजा प्रचेतस के
बाद द्रुह्युओं का कोई उल्लेख नहीं मिलता।
प्रचेतस के बारे में लिखा है कि उनके 100
बेटे अफगानिस्तान से उत्तर जाकर बस गए
और 'म्लेच्छ' कहलाए।
ययाति के पुत्र द्रुह्यु से बभ्रु का जन्म हुआ।
बभ्रु का सेतु, सेतु का आरब्ध, आरब्ध का
गांधार, गांधार का धर्म, धर्म का धृत, धृत
का दुर्मना और दुर्मना का पुत्र प्रचेता हुआ।
प्रचेता के 100 पुत्र हुए, ये उत्तर दिशा में
म्लेच्छों के राजा हुए।
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