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Скачать или смотреть गेहूँ का पीला रतुआ रोग एवं उसकी रोकथाम | गेहूँ में रोग प्रबंधन | Agriculture by Dr Vaibhav K Singh

  • Dr Vaibhav K Singh, ARS
  • 2021-06-03
  • 265
गेहूँ का पीला रतुआ रोग एवं उसकी रोकथाम | गेहूँ में रोग प्रबंधन | Agriculture by Dr Vaibhav K Singh
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Описание к видео गेहूँ का पीला रतुआ रोग एवं उसकी रोकथाम | गेहूँ में रोग प्रबंधन | Agriculture by Dr Vaibhav K Singh

गेहूँ में पीला अथवा धारीदार रतुआ रोग, पक्सीनिया स्ट्राईफार्मिस ट्रिटिसाई नामक कवक से होता है। पीला रतुआ विशेष रूप से उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र के साथ-साथ उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र में अनुकूल वातावरण (कम तापमान और उच्च नमी) होने के कारण अधिक महत्वपूर्ण हो गया है तथा इन क्षेत्रों के लिए एक संभावित खतरा बना हुआ है। पीला रतुआ रोग, तना तथा पत्ती रतुआ से अधिक विनाशकारी होता हैं। पीला रतुआ संक्रमण और रोग लक्षण प्रकट होने के लिए कम तापमान पसन्द करता है। इसलिए यह रोग दिसम्बर एवं जनवरी के महीने में देश के उत्तर-पश्चिमी मैदानी भागों एवं पर्वतीय भागों में अधिक कोहरा एवं ठंड होने कारण उत्पन्न होता है तथा फसल को काफी हाँनि पहुँचाता हैं।
लक्षण: यह रोग पत्तियों पर यूरिडो-स्फोटों (यूरिडो-पसच्यूल्स), संर्कीण, पीला, रेखीय धारियों (पट्टिकाओं) के रूप में विकसित होता है। खेत में रोग का प्रकोप अधिक होने पर यह पीलापन दूर से दिखाई पड़ता है।
रोकथाम:
बुआई के लिए अच्छे एवं स्वस्थ बीज का ही प्रयोग करें।
नाइट्रोजन प्रधान उर्वरकों की अत्याधिक मात्रा रतुआ रोगों को बढ़ाने में सहायक होती है इसलिए उर्वरकों के संतुलित अनुपात में पोटाश की उचित मात्रा प्रयोग करें।
फसल पर इस रोग के पहले लक्षण दिखाई पड़ते ही दवाई का छिड़काव करें। यह स्थिति प्रायः जनवरी के अन्त में या फरवरी के आरंभ में आती है, परन्तु रोग इससे पहले दिखाई दे तो एक छिड़काव अवश्य कर दें जिससे रोग को और अधिक फैलने से भी रोका जा सकता है। छिड़काव के लिये फफूंदनाशी, प्राॅपीकोनेज़ोल 25 ई.सी. का 0.1% घोल का उपयोग करें। एक एकड़ खेत के लिए 200 मि.ली. दवा 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। पानी की उचित मात्रा का प्रयोग करें। फसल की छोटी अवस्था में पानी की मात्रा 100-120 लीटर प्रति एकड़ रखी जा सकती है। रोग के प्रकोप तथा फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 15-20 दिन के अंतराल पर करें।
रोग-लक्षणों के प्रकटन की पहचान के लिए सतत रूप से निगरानी एवं सर्वेक्षण करना अत्यावश्यक हैं। खेतों का निरीक्षण शुरू से ही बड़े ध्यान से करना चाहिए, विशेषकर वृक्षों के आसपास या पापुलर वृक्षों के बीच उगाई गई फसल पर अधिक ध्यान देना चाहिए।

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