📄 Video Description
🟩 Hindi Description
इस प्रवचन में वक्ता “मैं” (I) की वास्तविकता, व्यक्तिगत/व्यक्ति होने का भ्रम, और “यूनिवर्सल मैं” की अनुभूति को सरल उदाहरणों के माध्यम से समझाते हैं। विचार, पहचान, नाम-रूप, शरीर—सब केवल मान्यता हैं। मूल में केवल “मैं” है—जो शुद्ध अस्तित्व, साक्षी, आत्मस्वरूप है।
यह वार्ता हमें भीतर लौटने, प्रश्न "मैं कौन हूँ?" को देखने और अहंकार की जड़ ढीली करने की प्रेरणा देती है।
इस वीडियो में समझाया गया है कि कैसे हम सार्वभौम चेतना में होते हुए भी स्वयं को शरीर-मन तक सीमित मान लेते हैं, और कैसे मौन-अनुभूति में सत्य स्पष्ट होता है।
🟦 English Description
This discourse beautifully explains the concept of “I/Me”, individuality, ego identity, and the universal consciousness. The speaker highlights how the sense of being a ‘person’ arises only as a thought, while in reality, we are pure existence—limitless awareness itself.
Through examples and self-inquiry, the talk guides us to observe our assumptions, question “Who am I?”, and return to the natural state of pure presence.
This session helps one realize that actions are universal, individuality is only assumed, and the root of liberation lies in turning attention back to the source—the silent ‘I am’.
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0:12 – 0:35 मानव होना और विचार कहाँ से आते हैं, यह "यूनिवर्सल थॉट" है।
0:56 – 1:52 समस्या तब शुरू होती है जब हम विचार को अपना मान लेते हैं—इसी से "व्यक्ति" की भावना जन्म लेती है।
2:07 – 3:34 "मैं" एक प्राथमिक विचार है—व्यक्ति होना केवल सोच में है, अनुभव में नहीं।
3:49 – 5:36 कर्म करते समय सदा अनुभव होता है "मैं कर रहा हूँ", व्यक्ति/नाम बाद में जुड़ते हैं।
6:00 – 7:14 वास्तविक "मैं" सार्वभौम है, नाम-रूप केवल उपयोगी उपकरण हैं, मूल पहचान नहीं।
8:21 – 10:12 "व्यक्ति" की भावना स्वभाव से आती है—लेकिन यह लोकेशन आधारित भ्रम है।
11:00 – 12:08 सपना उदाहरण—एक ही “मैं” कई रूपों में अनुभव लेता है, पर मूल अद्वैत है।
13:06 – 15:07 पाप-सुख-दुख अनुभव लेने के लिए पहले ‘मैं पापी/सुखी’ बनना पड़ता है—सिर्फ विचार।
16:12 – 18:02 दुनिया केवल विचारों से वास्तविक लगती है, हम assumption भूल जाते हैं।
19:09 – 21:01 "मैं" का Universal nature—सभी कार्य ब्रह्म/ऊर्जा से होते हैं, व्यक्ति भास मात्र।
22:06 – 24:48 गुरु – शिष्य की भूमिका विचार तक है, मौन में मिलन होता है।
25:35 – 27:10 सत्संग का सुख तात्कालिक नहीं, जड़ पर काम होना आवश्यक—मूल परिवर्तन वहीं है।
28:02 – End अंतिम सीख: स्वयं अनुभव करो—गुरु दिशा दिखाता है, चलना स्वयं को है।
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Self Inquiry – “Who Am I?” Spiritual Talk
Non-Duality Discourse – Understanding the ‘I’
Advaita Philosophy – Universal Consciousness Explained
Hindi Satsang on Ego & True Self Awareness
Deep Realization – You Are Not the Person
ज्ञान & अद्वैत पर प्रवचन – आत्मबोध
Meditation & Awareness – Returning to the Source
सत्संग – ‘मैं’ का रहस्य और अनुभव
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Hindi
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English
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