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Скачать или смотреть प्रेम का उदय - कहानी | Prem Ka Uday - Story by मुंशी प्रेमचंद - Munshi Prem Chand

  • Varunodaya Audiobooks
  • 2023-05-14
  • 16
प्रेम का उदय - कहानी | Prem Ka Uday - Story by मुंशी प्रेमचंद - Munshi Prem Chand
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प्रेम का उदय - कहानी

Author: मुंशी प्रेमचंद
Narrator: सोनम
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"प्रेम का उदय" का एक अंश:

आज भोंदू की दृष्टि में वह इज्जत नहीं रही, वह भरोसा नहीं रहा। मजबूत दीवार को टिकौने की जरूरत नहीं। जब दीवार हिलने लगती है, तब हमें उसको सँभालने की चिन्ता होती है। आज भोंदू को अपनी दीवार हिलती हुई मालूम होती थी। आज तक बंटी अपनी थी। वह जितना अपनी ओर से निश्चिन्त था, उतना ही उसकी ओर से भी था। वह जिस तरह खुद रहता था उसी तरह उसको भी रखता था। जो खुद खाता था, वही उसको खिलाता था, उसके लिए कोई विशेष फिक्र न थी; पर आज उसे मालूम हुआ कि वह अपनी नहीं है, अब उसका विशेष रूप से सत्कार करना होगा, विशेष रूप से दिलजोई करनी होगी।

सूर्यास्त हो रहा था। उसने देखा, उसका गधा चरकर चुपचाप सिर झुकाये चला आ रहा है। भोंदू ने कभी उसकी खाने-पीने की चिन्ता न की थी; क्योंकि गधा किसी और को अपना स्वामी बनाने की धमकी न दे सकता था। भोंदू ने बाहर आकर आज गधे को पुचकारा, उसकी पीठ सहलायी और तुरन्त उसे पानी पिलाने के लिए डोल और रस्सी लेकर चल दिया।
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लेखक के बारे में:

मुंशी प्रेमचंद (31 जुलाई 1880–8 अक्तूबर 1936)

प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिंदी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिंदी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। उन्होंने हिंदी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बंद करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबंध, साहित्य का उद्देश्य अंतिम व्याख्यान, कफन अंतिम कहानी, गोदान अंतिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अंतिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है। प्रेमचंद निश्चित रूप से हिंदी के पहले प्रगतिशील लेखक कहे जा सकते हैं।उनकी मृत्‍यु के बाद उनकी कहानियाँ ‘मानसरोवर’ शीर्षक से ८ भागों में प्रकाशित हुई। — मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
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