Kavi Ghananand Jivan Parichay | Ritimukt | जीवन परिचय | रचना | कथन | घनानंद कवित्त Class 12 अति सूधो

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घनानंद (१६७३- १७६०) रीतिकाल की तीन प्रमुख काव्यधाराओं- रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त के अंतिम काव्यधारा के अग्रणी कवि हैं। ये 'आनंदघन' नाम स भी प्रसिद्ध हैं।

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घनानंद द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या ४१ बताई जाती है-

सुजानहित, कृपाकंदनिबंध, वियोगबेलि, इश्कलता, यमुनायश, प्रीतिपावस, प्रेमपत्रिका, प्रेमसरोवर, व्रजविलास, रसवसंत, अनुभवचंद्रिका, रंगबधाई, प्रेमपद्धति, वृषभानुपुर सुषमा, गोकुलगीत, नाममाधुरी, गिरिपूजन, विचारसार, दानघटा, भावनाप्रकाश, कृष्णकौमुदी, घामचमत्कार, प्रियाप्रसाद, वृंदावनमुद्रा, व्रजस्वरूप, गोकुलचरित्र, प्रेमपहेली, रसनायश, गोकुलविनोद, मुरलिकामोद, मनोरथमंजरी, व्रजव्यवहार, गिरिगाथा, व्रजवर्णन, छंदाष्टक, त्रिभंगी छंद, कबित्तसंग्रह, स्फुट पदावली और परमहंसवंशावली।

इनका 'व्रजवर्णन' यदि 'व्रजस्वरूप' ही है तो इनकी सभी ज्ञात कृतियाँ उपलब्ध हो गई हैं। छंदाष्टक, त्रिभंगी छंद, कबित्तसंग्रह-स्फुट वस्तुत: कोई स्वतंत्र कृतियाँ नहीं हैं, फुटकल रचनाओं के छोटे छोटे संग्रह है।


हिंदी के मध्यकालीन स्वच्छंद प्रवाह के प्रमुख कर्ताओं में सबसे अधिक साहित्यश्रुत घनआनंद ही प्रतीत होते है। इनकी रचना के दो प्रकार हैं : एक में प्रेमसंवेदना क अभिव्यक्ति है, और दूसरे में भक्तिसंवेदना की व्यक्ति।

इनकी रचना अभिधा के वाच्य रूप में कम, लक्षणा के लक्ष्य और व्यंजना के व्यंग्य रूप में अधिक है। ये भाषाप्रवीण भी थे और व्रजभाषाप्रवीण भी। इन्होंने व्रजभाषा के प्रयोगों के आधार पर नूतन वाग्योग संघटित किया है।

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