मन को समझो कोई फर्क नाही पडता.

Описание к видео मन को समझो कोई फर्क नाही पडता.

Understand your mind, it doesn't make any difference.

mahaveer Vani ashtavakra.


मनुष्य का अर्थ होता है, जो मनन करे। और आदमी का अर्थ होता है, जो मिट्टी का बना है। अंग्रेजी में भी मनुष्य का पर्यायवाची है, ह्युमैन। होना नहीं चाहिए। इस देश में आदमी के होने की पहचान है, उसके मनन की क्षमता। इसलिए हम उसे कहते हैं मनुष्य। मनन की अनेक दिशाएं हो सकती हैं। चित्रकार भी सोचता है, मूर्तिकार भी सोचता है, दार्शनिक भी सोचता है, धर्मगुरु भी सोचता है, वैज्ञानिक भी सोचता है। लेकिन ये सारी सोचने की प्रक्रियाएं बाहर की तरफ जाती हैं। ये किसी और विषय की तरफ इंगित करती हैं। जिसको हमने ज्ञानी कहा है वह अपने सारे सोचने की दिशाओं को भीतर की तरफ मोड़ लेता है। वह सिर्फ अपने संबंध में ही सोचता है। उसके लिए जगत में कुछ और सोचने योग्य नहीं है।, हो भी नहीं सकता। क्योंकि जिसे अपना ही पता नहीं है उसे किसी और चीज का क्या पता हो सकता है?
जिस चिंतन और मनन के लिए मैंने तुमसे कहा है उसमें पहली बात है कि सब तरफ से अपने विचारों को खींचकर अपने पर ही आमंत्रित कर लेना। और एक जादू घटित होता है जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। तुम सोच सकते हो केवल उसी चीज के संबंध में जिसके संबंध में तुमने पढ़ा हो, सुना हो, किसी ने कुछ कहा हो। तुम अपने संबंध में क्या सोचोगे? तो जैसे ही व्यक्ति सारे बाह्य चिंतन छोड़ देता है और उसकी आंखें सिर्फ अपनी ही रूप पर टिक जाती हैं...इसलिए मैंने कहा, एक जादू घटित होता है: तुम अपने संबंध में सोच नहीं सकते। वहां सोचना शून्य हो जाता है। वहां सिर्फ देखना शेष रह जाता है।
इसलिए हमने इस देश में उस घड़ी को दर्शन की घड़ी कहा है, चिंतन की नहीं। तुम देखते तो कि तुम कौन हो लेकिन सोचने को कुछ बाकी नहीं। तुम जो भी हो, पूरे के पूरे खुले हो और नग्न हो। और यही आत्म-पहचान तुम्हें जीवन के सार तत्व से परिचित करा देती है, उस अमृत से परिचित करा देती है जिसका कोई अंत नहीं है। इस ज्ञान की परमदशा को हमने समाधि कही है। व्याधि से मुक्त, स्वस्थ।स्वास्थ्य का अर्थ होता है, स्वयं में स्थित हो जाना, स्वस्थ हो जाना। इसका किसी घाव के भरने से संबंध नहीं है। तुम हो, लेकिन अपने से भागे-भागे तुम हो, लेकिन अपने से दूर-दूर। तुम हो, लेकिन तुम्हें पता नहीं है कि तुम कहां हो। जिस दिन तुम स्वस्थ हो जो हो, स्थिर हो जाते हो, अपनी चेतना में ठहर जाते हो जैसी कोई दीए की ज्योति निष्कंप ठहर जाए, कोई हवा का झोंका उसे हिलाए नहीं, वैसी ज्योति की भांति जब तुम अपने भीतर ठहर जाते हो तो जो प्रकाश का आविर्भाव होता है, जो किरण विकीर्णित होती हैं, उसे ही मैंने मरने के पहले अपने को जानना कहा है।


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