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Скачать или смотреть रणमल और भारमली की प्रेम कहानी| अभिषेक पाटन सर| हंसाबाई ने कैसे की रक्षा मेवाड़ की 😱|

  • HISTORYGURUGYAN0
  • 2024-12-27
  • 2718
रणमल और भारमली की प्रेम कहानी| अभिषेक पाटन सर| हंसाबाई ने कैसे की रक्षा मेवाड़ की 😱|
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Описание к видео रणमल और भारमली की प्रेम कहानी| अभिषेक पाटन सर| हंसाबाई ने कैसे की रक्षा मेवाड़ की 😱|

राजस्थान में मेवाड़ और मारवाड़ नाम से दो अलग-अलग प्रांत हैं। इनमें मेवाड़ क्षेत्र में उदयपुर और इसके आसपास के जिले जबकि मारवाड़ में जोधपुर का इलाका आता है। लेकिन क्या आपको मालूम है कि इनके बीच सीमा के बंटवारे को लेकर एक दिलचस्प कहानी है। ऐसा कहा जाता है कि मेवाड़-मारवाड़ के बीच बीच सीमा को बांटने के लिए महाराणा कुंभा और जोधा के बीच एक संधि हुई थी। इस संधि में यह कहा गया कि जहां बबूल होगा वहां मारवाड़ और जहां आम-आंवला होगा वहां मेवाड़। इस बबूल और आम-आंवले का मतलब समझने के लिए हम आपको इतिहास में ले चलते हैं क्योंकि वहीं इसकी पूरी कहानी छिपी है। उस समय दिल्ली के राजा खिलजी वंश के जलालुद्दीन थे। उसने अपने भतीजे और दामाद अलाउद्दीन खिलजी को उत्तर भारत के हिस्से पर कब्जा करने के ले भेज दया। देविगरी को जीतने के बाद उसने अपने ससुर जलालुद्दीन की ही हत्या कर दी और खुद दिल्ली का शासक बन बैठा। इसके बाद खिलजी ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। उस वक्त वहां के राज ने पत्नी के साथ छल से खिलजी को वापस भेज दिया। हालांकि बाद में खिलजी ने वहां अधिकार जमा लिया, राव मालदेव राठौड़ (१५११-१५६८ ई.)

जोधपुर के एक वीर व प्रतापी राजा थे। जोधपुर के शासक गांगा के पुत्र थे। इनका जन्म वि॰सं॰ १५६८ (५ सितंबर १५११) को हुआ था। पिता की मृत्यु के पश्चात् वि॰सं॰ १५८८(१५३१ ई.) में सोजत में मारवाड़ की गद्दी पर बैठे। उस समय इनका शासन केवल सोजत और जोधपुर के परगनों पर ही था। जैतारण, पोकरण, फलौदी, बाड़मेर, कोटड़ा, खेड़, महेवा, सिवाणा, मेड़ता आदि के सरदार आवश्कतानुसार जोधपुर नरेश को केवल सैनिक सहायता दिया करते थे। परन्तु अन्य सब प्रकार से वे अपने-अपने अधिकृत प्रदेशों के स्वतन्त्र शासक थे। मारवाड़ के इतिहास में राव मालदेव का राज्यकाल मारवाड़ का "शौर्य युग" कहलाता है। राव मालदेव अपने युग का महान् योद्धा, महान् विजेता और विशाल साम्राज्य का स्वामी था। उसने अपने बाहुबल से एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया था। मालदेव ने सिवाणा जैतमालोत राठौड़ों से, चौहटन, पारकर और खाबड़ परमारों से, रायपुर और भाद्राजूण सीधलों से, जालौर बिहारी पठानों से, मालानी महेचों से, मेड़ता वीरमदेव से, नागौर, सांभर, डीडवाना मुसलमानों से, अजमेर साँचोर चौहाणों से छीन कर जोधपुर(मारवाड़)राज्य में मिलाया। इस प्रकार राव मालदेव ने वि॰सं॰ 1600 तक अपने साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार कर लिया। उत्तर में बीकानेर व हिसार, पूर्व में बयाना व धौलपुर तक एवं दक्षिण-पश्चिम में राघनपुर व खाबड़ तक उसकी राज्य सीमा पहुँच गई थी। पश्चिम में भाटियों के प्रदेश (जैसलमेर) को उसकी सीमाएँ छू रही थी। इतना विशाल साम्राज्य न तो राव मालदेव से पूर्व और न ही उसके बाद ही किसी राजपूत शासक ने स्थापित किया। जैसलमेर के राव लूणकरण की पुत्री उमादे का विवाह 1536 ई. में जोधपुर के राव मालदेव के साथ हुआ, विवाह के उपरांत राव मालदेव व उमादे में अनबन हो जाने के कारण राजस्थान के इतिहास में रानी उमादे को रूठी रानी के नाम से जाना जाता है, रानी ने अपना सम्पूर्ण समय तारागढ़ दुर्ग में व्यतीत कर दिया था। राव मालदेव वीर थे लेकिन वे जिद्दी भी थे। ज्यादातर क्षेत्र इन्होंने अपने ही सामन्तों से छीना था। वि॰सं॰ 1591 (ई.स. 1535) में मेड़ता पर आक्रमण कर मेड़ता राव वीरमदेव से छीन लिया। उस समय अजमेरपर राव वीरमदेव का अधिकार था, वहाँ भी राव मालदेव ने अधिकार कर लिया। वीरमदेव इधर-उधर भटकने के बाद दिल्ली शेरशाह सूरी के पास चला गया। वि॰सं॰ 1568 (ई.स. 1542) में राव मालदेव ने बीकानेर पर हमला किया। बीकानेर राव जैतसी साहेबा(पाहोबा) के युद्ध में हार गए और वीरगति को प्राप्त हो गये । बीकानेर पर मालदेव का अधिकार हो गया। बीकानेर का प्रबंधन सेनापति कूंम्पा को सोंप दिया। राव जैतसी का पुत्र कल्याणमल और भीम भी दिल्ली शेरशाह के पास चले।
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