संत लहरी सिंह कश्यप जी के जीवन पर कबीरदास जी के जीवन-दर्शन का प्रभाव
भारतीय संत परंपरा ने समाज को नई दिशा और ऊर्जा प्रदान की है। कबीरदास जी इस परंपरा के ऐसे महान संत थे जिन्होंने अपने दोहों और वाणी से समाज में सत्य, समानता और करुणा का प्रकाश फैलाया। उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। संत लहरी सिंह कश्यप जी का जीवन भी कबीरदास जी की शिक्षाओं से गहराई से प्रभावित था। उनके जीवन के प्रत्येक कार्य में कबीर की वाणी और दर्शन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।
कबीरदास जी का जीवन-दर्शन
कबीरदास जी का जीवन-दर्शन अत्यंत सरल, सहज और मानवीय था। उन्होंने कहा –
👉 “साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके ह्रदय साँच है, ताके ह्रदय आप॥”
👉 “पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥”
इन दोहों में स्पष्ट संदेश है कि सत्य ही परमात्मा है और प्रेम ही सबसे बड़ी विद्या। कबीर ने जात-पात, आडंबर और कर्मकांड का विरोध किया। उनका कहना था कि भक्ति मंदिर या मस्जिद में नहीं, बल्कि मानव-हृदय में है।
संत लहरी सिंह कश्यप जी पर कबीरदास जी के दर्शन का प्रभाव
1. सत्य और सादगी
कबीर कहते हैं –
👉 “निरपेक्ष रहे जो साधु जन, ताके मन निर्मल होय।
सत्य की राह चलत ही, हरि स्वयं संग होय॥”
इसी भाव को संत लहरी सिंह कश्यप जी ने अपने जीवन में उतारा। उन्होंने सादगी, सत्य और ईमानदारी को ही अपनी शक्ति बनाया। उनके जीवन का प्रत्येक क्षण सच्चाई से ओत-प्रोत था।
2. समानता और सामाजिक न्याय
कबीर ने कहा था –
👉 “जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥”
संत लहरी सिंह कश्यप जी ने भी यही संदेश दिया। उन्होंने समाज में फैली ऊँच-नीच और जातिगत भेदभाव का विरोध किया। वे मानते थे कि मनुष्य की पहचान उसके ज्ञान और कर्म से होती है, न कि जन्म से।
3. कर्मयोग और सेवा
कबीर कहते हैं –
👉 “करता रहा सो क्यों रहा, अब कर क्यों पछताय।
बोए पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाय॥”
यह दोहा कर्म के महत्व को दर्शाता है। संत लहरी सिंह कश्यप जी ने केवल आध्यात्मिक प्रवचन नहीं दिए, बल्कि शिक्षा, संगठन और समाज सुधार में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने सिखाया कि जीवन में कर्म और सेवा ही सच्ची साधना है।
4. आडंबर और रूढ़ियों का विरोध
कबीर कहते हैं –
👉 “पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते यह चाकी भली, पीस खाय संसार॥”
यहाँ कबीर ने मूर्तिपूजा और आडंबर का विरोध किया। संत लहरी सिंह कश्यप जी ने भी यही विचार अपनाया। उन्होंने लोगों को समझाया कि ईश्वर की असली पूजा इंसानियत की सेवा है, न कि कर्मकांड।
5. लोकहित और भाईचारा
कबीर का संदेश था –
👉 “हिंदू कहो, मुसलमान कहो, सबका रक्त एक।
माटी एक शरीर की, एक ही प्राण फेंक॥”
संत लहरी सिंह कश्यप जी ने भी समाज को यही शिक्षा दी कि सभी मनुष्य समान हैं। उन्होंने भाईचारे, प्रेम और सहयोग का संदेश फैलाया।
दार्शनिक दृष्टि
दार्शनिक रूप से कबीरदास जी का भक्ति-दर्शन संत लहरी सिंह कश्यप जी के जीवन का आधार बना। कबीर का मानना था कि –
👉 “माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका छोड़ दे, मन का मनका फेर॥”
यानी भक्ति बाहरी साधनों से नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि से होती है। संत लहरी सिंह कश्यप जी ने इस सिद्धांत को अपनाया और समाज को यही सिखाया कि सच्ची पूजा सत्य, समानता और सेवा में है और अंत मे संत लहरी सिंह कश्यप जी का जीवन कबीरदास जी की शिक्षाओं का सजीव उदाहरण है। उन्होंने सत्य, समानता और इंसानियत को जीवन का आधार बनाया। कबीर की तरह वे भी आडंबर और झूठ के विरोधी थे। उन्होंने अपने कर्मों से सिद्ध किया कि –सत्य ही ईश्वर है। समानता ही धर्म है। और इंसानियत ही सबसे पवित्र भक्ति है। आज के समय में जब समाज स्वार्थ, दिखावे और विभाजन की ओर बढ़ रहा है, तब संत लहरी सिंह कश्यप जी का जीवन हमें फिर से कबीर की वाणी याद दिलाता है। वे आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देते हैं कि – "जाके ह्रदय साँच है, ताके ह्रदय आप।"
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