श्री मद्भगवद्गीता अध्याय 3 श्लोक 10,11 विस्तृत व्याख्या साधक संजीवनी ~श्रद्धेय स्वामी रामसुख दास जी

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सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः ।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् ॥3.10॥
देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः ।
परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ॥3.11॥

श्री मद्भगवद्गीता अध्याय 3 श्लोक 10,11 विस्तृत व्याख्या साधक संजीवनी ~श्रद्धेय स्वामी रामसुख दास जी

Shri Mad Bhagwad Geeta chapter 3 verse 10,11 sanskrit shlok with hindi meaning and full explaination from Sadhak Sanjeevani composed by shraddhey Swami
shri Ramsukh Das ji maharaj
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