मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी त्रिया चरित्र (भाग 2)Munshi Premchand Ji Ki Kahani Triya Chritra (Bhag 2)

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मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी त्रिया चरित्र (भाग 2)Munshi Premchand Ji Ki Kahani Triya Chritra (Bhag 2) प्रेमचंद जी की कहानी त्रिया चरित्र (भाग 2)Munshi Premchand Ji Ki Kahani Triya Chritra (Bhag 2)मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी त्रिया चरित्र (भाग 2)Munshi Premchand Ji Ki Kahani Triya Chritra (Bhag 2) गोद लिये धनी पुत्र का घर और ब्याहता पत्नी को छोड़कर, ग़रीबी का जीवन बिताने और एक अन्य स्त्री के प्रेम में पड़ जाने की कहानी
त्रिया चरित्र महिला की अप्रत्याशित स्वभाव को संदर्भित करता है। जैसा कि शास्त्रों में भी कहा गया है कि-''भगवान भी पुरुषों के स्वभाव और स्त्री की प्रकृति के बारे में नहीं जानते।'' प्रस्तुत कहानी में महिला चरित्र की चतुराई का बारीकी से वर्णन किया गया है।


धनपत राय श्रीवास्तव (31 जुलाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936) जो प्रेमचंद नाम से जाने जाते हैं, वो हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचार आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, बड़े घर की बेटी दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिंदी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिंदी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। उन्होंने हिंदी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बंद करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबंध, साहित्य का उद्देश्य अंतिम व्याख्यान, कफन अंतिम कहानी, गोदान अंतिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र हैं

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