ग्वालियर शहर स्तिथ अदबुद्ध सास बहू मंदिर | सहस्त्रबाहु मंदिर | मध्य प्रदेश | 4K | दर्शन 🙏

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लेखक: याचना अवस्थी

भक्तों नमस्कार, हम सबके लोकप्रिय यात्रा कार्यकृम दर्शन में आप सभी का सह्र्रिदये अभिनन्दन. इस कार्यक्रम श्रृंखला में हर बार हम आपको ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक व कभी कभी रहस्यात्मक तीर्थ स्थलों की यात्रा करवाते हैं. आज इसी क्रम में हम आपको ले जा रहे हैं एक ऐसे मंदिर की यात्रा पर जो मंदिर होकर भी पूजित नहीं है. जो बनाया तो भगवान् के लिये गया था किन्तु अब वह पुर्णतः खाली है। वो मंदिर है देश की एक प्रमुख ऐतिहासिक नगरी ग्वालियर में स्थित सुप्रसिद्ध “सास बहू मंदिर अर्थात सहस्त्रबाहु मंदिर”

मंदिर के बारे में:
भक्तों, हमारे देश की भारतीय संस्कृति को दर्शाने एवं यहाँ की वास्तुकला के अद्भुद प्रदर्शन में मंदिरों का प्राचीन इतिहास रहा है. इन मंदिरों के निर्माण में गुप्तकाल के दौरान हुए कला और संस्कृति के विकास ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इसी विस्मित वास्तुकला का प्रदर्शन करता है एक बड़ा व एक छोटा दो ऐतिहासिक मंदिरों का समूह “सास बहु मंदिर” जो मध्य प्रदेश में ग्वालियर किले के पूर्व कोने में स्थित है। यह भगवान् विष्णु को समर्पित एक अति प्राचीन मंदिर है. जिसका मूल नाम सहस्त्रबाहु है सहस्त्रबाहु का अर्थ है “हज़ारों भुजाओं वाले” कालांतर यह मंदिर सहस्त्रबाहु से अपभ्रंश होकर सास - बहु मंदिर , जुड़वाँ मंदिर एवं हरिसदानाम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर पर्यटकों एवं इतिहासकारों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है की देश ही नहीं विदेशों से भी लोग इस स्थान की ओर खिंचे चले आते हैं.

मंदिर का इतिहास:
भक्तों, सास बहु अर्थात सहस्त्रबाहु मंदिर के निर्माण की बात करें तो इस मंदिर का निर्माण राजारत्न पाल द्वारा प्रारंभ किया गया था जो कि 1093 में कच्छपघाट राजवंश के राजा महिपाल के शासनकाल में पूर्ण हुआ था.
सहस्त्रबाहु मंदिर के निर्माण से जुडी एक कथा के अनुसार - कहते है की महाराजा महिपाल जी की पत्नी भगवान विष्णु जी की परम भक्त थी इसलिए राजा ने भगवान् विष्णु जी के सम्मान में मंदिर का निर्माण करवाया । जिसमे रानी भगवान् विष्णु की पूजा करने लगीं. वक्त बीतने के साथ-साथ जब महाराजा महिपाल जी का पुत्र विवाह योग्य हुआ। तब राकुमार के विवाह के लिए योग्य वधु की तलाश होने लगी और फिर जल्द ही राजकुमार का विवाह हो गया। भावी राजकुमार की पत्नी शिव जी की परम भक्त थी इसलिए राजा जी ने विष्णु मंदिर के पास ही शिव जी के मंदिर का भी निर्माण करवाया ।
कहते हैं. सास और बहू के लिए निर्मित उनके प्रिय भगवानो के इन मंदिरों की वजह से इसे कालांतर सास बहु मंदिर कहा जाने लगा.

मंदिर परिसर/ दोनों मंदिर:
आप जब इस सास बहु मंदिर के परिसर में प्रवेश करते हैं. तो आपको यहाँ के विशाल प्रांगण में 2 मंदिर देखने को मिलते हैं..जिनमे से एक मंदिर बड़ा है जिसको सास की उपाधि दी गयी है और छोटे मंदिर को बहू मंदिर कहते हैं. बहु मन्दिर की अवस्था अब एक खँडहर की भांति प्रतीत होती है वहीँ सास मंदिर कुछ आमूलचूल परिवर्तन के साथ अभी भी अपना सामंजस्य बनाये हुए है
सास बहु का यह मन्दिर तीन मंजिला मंदिर है। लगातार युद्धों में परिणत होने के कारण इस मंदिर का शिखर और गर्भगृह नष्ट हो चुका है । इसका जगती मंच जिस पर मंदिर की नीव रखी गयी है वह लगभग 30 मीटर की लम्बाई और चौड़ाई में बनाया गया था ।
इस मंदिर की वास्तुकला की बात करे तो इतिहासकारों के अनुसार इन मंदिरों का निर्माण उत्तर भारत की नागर शैली या भूमिजा शैली में कराया गया था। इसलिए इसकी दीवारों में आपको सुंदर नक्काशी और कंगूरे और ब्रह्मा, विष्णु और माँ सरस्वती जैसे देवी-देवताओं के चित्र को उकेरा गया है। भूमिजा शैली, वास्तुकला की एक ऐसी शैली है जिसमें मंदिर पर मनको [ छोटे छोटे मोती या रुद्राक्ष ] की भांति छोटे-छोटे शिखरों का निर्माण किया जाता है। जिसकी झलक इस मंदिर के गर्भगृह के ऊपरी हिस्से यानी की शिखर पर दिखती है। मंदिर के स्तम्भों पर भी हमें वैष्णव और शिव सम्प्रदाय से सम्बंधित बेहतरीन नक्काशीदार प्रतिकीर्ति देखने को मिलती है।
इस मंदिर में प्रवेश के लिए मुख्यतः तीन द्वार बनाये गए है, जो तीन दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते है। मंदिर का निर्माण 5 भागों अर्द्ध मंडप, मंडप, महा मंडप, अंतराल और गर्भगृह के रूप में किया गया था।किसी समय में बड़े मंदिर के गर्भग्रह में त्रिदेव की मूर्तियां विराजित थीं. इनमें ब्रह्मा जी , विष्णु जी एवं शंकर जी की प्रतिमाएं थीं,किन्तु अब मंदिर का गर्भग्रह पूर्णतः खाली है. मंदिर के द्वार पर दोनों तरफ दो द्वारपाल की भी नक्काशी की गई हैं। इनको जय और विजय कहा जाता है। इतना ही नहीं इस सुंदर प्राचीन मंदिर में गंगा जी, यमुना जी की प्रतिमाएं तथा दीवारें ज्यामितीय, पुष्पाकृतियों, पशु पक्षियों, गज, नर्तक, संगीतकार और कृष्ण लीला के सुंदर दृश्यों से सजाई गयीं हैं..
राजा की बहू की पूजा के लिए निर्मित भगवान् शंकर के छोटे मंदिर की दीवारें भी इसी प्रकार की सुंदर नक्काशियों से चित्रित हैं। इस मंदिर में एक लघु केंद्रीय सभागार प्रकोष्ठ भी है। किसी समय इस मंदिर के बीच भगवान् शंकर की प्रतिमा स्थापित की गयी होगी...किन्तु अब यह स्थान भी पूर्णतः खाली है. यहाँ पर बने झरोखे से बाहर देखने पर पूरे ग्वालियर शहर का खूबसूरत दृश्य एवं सूर्य की लालिमा बहुत ही मनमोहक प्रतीत होती है.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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