अनमोल रतन बिक जाते हैं। नारायण महाराज जी की शानदार प्रस्तुति। नटेरन गम्मत प्रोग्राम सचिन तिवारी।

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मित्रों हमारी वीडियो आने में जो देरी हुई है इस बार उसके लिए लोकरंग विदिशा आपसे माफी चाहेगा। मित्रों आज हम लेकर आए हैं आपके लिए एक बेहतरीन सूफियाना गजल– यह अर्श हवस की मंडी है अनमोल रतन बिक जाते हैं। इस ग़ज़ल को पहले भी कई गायक गा चुके हैं और सुना भी होगा आपने आज हम श्री नारायण महाराज जी के मुख से गई हुई इस ग़ज़ल को आपके लिए लाए हैं।
इस कार्यक्रम का आयोजन तहसील नटेरन जिला को हुआ।

इस ग़ज़ल के लिरिक्स आपको नीचे दिए जा रहे हैं

यह हर्ष हवस की मंडी है
अनमोल रतन बिक जाते हैं

कागज के कड़क के नोटों पर

दुनिया के चमन बिक जाते हैं
ये हर्ष हवस की मंडी है
अनमोल रतन बिक जाते हैं
हर चीज यहां पर बिकती है
हर चीज का सौदा होता है
इज्जत भी बेची जाती है
ईमान खरीदे जाते हैं
यह हरष हबस की मंडी है
अनमोल रतन बिक जाते हैं
बिकते हैं मुल्लों के सजदे
पंडित के भजन बिक जाते हैं

बिकती है दुल्हन की रातें
मुर्दों के कफन बिक जाते हैं
यह हरष हवस की मंडी है
अनमोल रतन बिक जाते हैं
यह हर्ष हवस की मंडी है
अनमोल रतन बिक जाते हैं

कागज के कड़क के नोटों पर

दुनिया के चमन बिक जाते हैं

ये इश्क़ हवस की मंडी है , अनमोल रतन बिक जाते है ,
मुल्लाओ के सजदे बिकते है ,पंडित के भजन बिक जाते है

मंदिर भी यहाँ पर बिकता है , मस्जिद भी ख़रीदी जाती है चाँदी के खनकते सिक्कों पर ,शायर के शकुन बिक जाते है

बिकती है सुहाग की रात यहाँ , दुल्हन के चलन बिक जाते है
दुनिया के चलन का ज़िक्र ही क्या , मुर्दों के कफ़न बिक जाते है।

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