भारतीय संविधान की प्रस्तावना | preamble of constitution |

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संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने हेतु प्राय: उनसे पहले एक उद्देशिका प्रस्तुत की जाती है। भारतीय संविधान की उद्देशिका आस्ट्रेलियाई संविधान से प्रभावित मानी जाती है[1]। उद्देशिका संविधान का सार मानी जाती है उसके लक्ष्य प्रकट करती है , संविधान का दर्शन भी इसके माध्यम से प्रकट होता है।

संविधान किन आदर्शों, आकांक्षाओं को प्रकट करता है, इसका निर्धारण भी उद्देशिका से हो जाता है। सर्वोच्च न्यायालय के मतानुसार उद्देशिका का प्रयोग संविधान निर्माताओ के मस्तिष्क में झांकने और उनके उद्देश्य को जानने में प्रयोग की जा सकती है। उद्देशिका यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है। इसी कारण यह ‘हम भारत के लोग’ से प्रारम्भ होती है। केहर सिंह बनाम भारत संघ के वाद में कहा गया कि संविधान सभा भारतीय जनता का सीधा प्रतिनिधित्व नहीं करती थी अत: संविधान विधि की विशेष अनुकृपा प्राप्त नहीं कर सकता है परंतु न्यायालय ने इसे खारिज करते हुए संविधान को सर्वोपरि माना है जिस पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है। और यह संविधान का आदर्श रूप है ।
हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी , पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य[2] बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए,
तथा उन सब में,
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता[3] सुनिश्चित कराने वाली, बन्धुता बढ़ाने के लिए,
दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई॰ (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
) यह संविधान का महत्वपूर्ण अंग नहीं है क्योंकि यह राज्य के तीनों अंगो को कोई शक्ति नहीं देती है। वे अपनी शक्तियाँ संविधान के अन्य अनुच्छेदों से प्राप्त करती है। इसी प्रकार यह उनकी शक्ति पर कोई रोक भी नहीं लगाती है।
(२) संविधान के किसी भाग पर यह कोई विशेष बल नहीं देती है संविधान के अनुच्छेद तथा इसमें संघर्ष होने पर अनुच्छेद को वरीयता मिलेगी।
(३) न्यायालय में इस के आधार पर कोई वाद नहीं लाया जा सकता है न ही वे इसे लागू कर सकते है।
(४) इस कारण इसे कई बार मात्र शोभात्मक आभूषण भी कहा गया है। सर्वोच्च न्यायालय भी इस की सीमित भूमिका मानता है इसका प्रयोग संविधान में विद्यमान अस्पष्टता दूर करने हेतु किया जा सकता है।
उद्देशिका यह बताती है कि संविधान जनता के लिए हैं तथा जनता ही अंतिम सम्प्रभु है।
(२) उद्देशिका लोगों के लक्ष्यों-आकांक्षाओं को प्रकट करती है।
(३) इसका प्रयोग किसी अनुच्छेद में विद्यमान अस्पष्टता को दूर करने में हो सकता है।
(४) यह जाना जा सकता है कि संविधान किस तारीख को बना तथा पारित हुआ था।
भारत एक स्वतंत्र,स्ंप्रभु ग्णराज्य है
परम्परागत मत -- उद्देशिका को संविधान का भाग नहीं मानता है क्योंकि यदि इसे विलोपित भी कर दे तो भी संविधान अपनी विशेष स्थिति बनाये रख सकता है। इसे पुस्तक के पूर्व परिचय की तरह समझा जा सकता है यह मत सर्वोच्च न्यायालय ने बेरुबारी यूनियन वाद 1960 में प्रकट किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि जहाँ संविधान की भाषा संदिग्ध हो, वहाँ प्रस्तावना विविध निर्वाचन में सहायता करती है। इसीलिए "विधायिका" प्रस्तावना में संशोधन नहीं कर सकती।

नवीन मत-- इसे संविधान का एक भाग बताता है केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य 1973 में दिये निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे संविधान का भाग बताया है। संविधान का एक भाग होने के कारण ही संसद ने इसे 42वें संविधान संशोधन से इसे सशोधित किया था तथा समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंण्डता शब्द जोड़ दिये थे। वर्तमान में नवीन मत ही मान्य है।
उद्देशिका के आदर्श अग्रलिखित है- कम या अधिक मात्रा में प्राप्त कर लिये गये हैं
अपेक्षाएं (स्वतंत्रता, न्याय, समानता है), लक्ष्य है जबकि आदर्श (जनतांत्रिक, समाजवादी) उपाय हैं।

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