हम सब अनंत जेल में हैं, कैसे? इन जेलों से बाहर निकलने का उपाय क्या है? @ जयपुर सेशन, 1 Sep. 2024

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अमर अकर्ता पर चलित अकर्तापन
परमात्मा अकर्ता है, तो चलित रूप से सारी सृष्टियां भी अकर्ता हैं। सारे जीव भी अकर्ता हैं, लेकिन चलित अकर्ता हैं। ये चलित अकर्ता क्या होता है? इसको कहते हैं, चलते हुए अकर्तापन। जैसे कोई पंखा है, तो पंखा केवल गोल गोल ही घूमेगा। उसके अलावा वह उड़ नहीं सकता, वो चल नहीं सकता। वो अन्य दूसरे काम नहीं कर सकता। केवल उसको गोल गोल ही घूमना है। ऐसे ही जो पेड़ पौधे होते हैं, उनका काम है बीज से रोपित होना। अपना पोषण करते हुए बढ़ जाना और फल देना। इसके अलावा वो कोई एक्स्ट्रा काम नहीं कर सकते।
ऐसे ही इंसान है। इंसान का भी तंत्र जैसा बनाया गया है, उस तंत्र से एक्स्ट्रा काम नहीं कर सकता। जैसे उड़ नहीं सकता। खुद से कोई दूसरी चीज उत्पादित नहीं कर सकता। जैसे सेव चाहिए तो सेव के पेड़ से ही लेना पड़ेगा, खुद के शरीर से उत्पादन नहीं कर सकता। ऐसे बहुत सारे असमर्थताएँ हैं जो हम नहीं कर सकते। जितनी समर्थता तंत्र ने दी हैं, जितनी क्षमता तंत्र के पास है उतना ही करेगा, उससे एक सूत भी, एक तिल भी न तो कम कर सकता, न ज्यादा कर सकता। इसी को चलित अकर्तापन कहते हैं। आप चलते हुए दिखाई तो देते हो, कार्य करते हुए दिखाई तो देते हो, लेकिन सीमित, उतना ही जितना आपको नियमित किया गया है कार्य करने के लिए। इसी को चलित अकर्तापन कहते हैं।
ऐसे ही जो आकाश है, वो खंडित रूप से व्यापक है और जो परम आकाश है वो खंडित रूप से सर्वव्यापक है। मतलब एकरस सर्वव्यापक नहीं है वो। खंडित रूप से है। ऐसे ही परम आकाश अकर्ता भी दिखता हुआ प्रतीत होता है, लेकिन अकर्ता नहीं है। इससे परम चेतनाएं प्रकट होती रहती हैं। तो आंशिक गुण परमात्मा के प्रकृतियों में आ जाते हैं और उसी आंशिक गुणों का फ़ायदा हमें तब मिलता है जब हम परमात्मा से जुडते हैं तो वही आंशिक गुण जो गुणता प्रकृति के अंदर है, वही गुणता हमारा सहयोग करने लगती है। और वो आंशिक गुण जो परमात्मा की प्रकृति के अंदर है, वो भी इतने विराट हैं कि उनका जब सहयोग मिलने लगता है हमें, परमात्मिक सुध में जो प्रकृतियाँ होती हैं, उनका जब सहयोग हमें मिलने लगता है तो वो सहयोग हमारे जीवन को सुंदर और संतुलित बनाता है।
तो सारी सृष्टियां, सारे जीव, चलित अकर्तापन का गुण रखती हैं। लेकिन अमर अकर्तापन का गुण इनके पास नहीं है। अमर शांति नहीं है, अमर ठहराव नहीं है। अमर ठहराव, अमर शांति, अमर एकरसता, निस्वार्थता, निर्भयता, परमात्मा से जुड़कर ही मिलेगी। क्योंकि आपका मन वहाँ मिट रहा होता है। आपमें विराटता आ रही होती है, अखंडता आ रही होती है, सर्वव्यापिता आ रही होती है, क्योंकि आप मिट रहे होते हो और ये परमात्मिक गुण आपको उपलब्ध होने लगते हैं। जैसे जैसे मन मिटता है उतनी उपलब्धता आपको होती चली जाती है और एक समय बाद मन पूर्ण मिट जाता है और परमात्मा ही बचता है। धन्यवाद।
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