सन्यासी विद्रोह (1763-1800 ई.)

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सन्यासी विद्रोह 1763 ई. से प्रारम्भ होकर 1800 ई. तक चला। यह बंगाल के गिरि सम्प्रदाय के सन्यासियों द्वारा शुरू किया गया था।
इसमें जमींदार, कृषक तथा शिल्पकारों ने भी भाग लिया। इन सबने मिलकर कम्पनी की कोठियों और कोषों पर आक्रमण किये। ये लोग कम्पनी के सैनिकों से बहुत वीरता से लड़े।
वारेन हेस्टिंग्स एक लम्बे अभियान के पश्चात ही सन्यासी विद्रोह का दमन कर पाया।

सन्यासी आन्दोलन का उल्लेख ‘बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय’ ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास “आनन्दमठ” में किया है। इस विद्रोह में सम्मिलित लोग “ओउम् वन्देमातरम“ का नारा लगाते थे।
सन्यासी आन्दोलन की खासियत ‘हिन्दू-मुस्लिम एकता’ थी। इस विद्रोह के प्रमुख नेता मजमून शाह, मूसा शाह, द्विज नारायण, भवानी पाठक, चिरागअली व देवी चौधरानी आदि थे।

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