भोजन खाने के बाद बोली जाने वाली वाणी | अन्नदेव की आरती | Sant Rampal Ji Maharaj | Annadev Ki Aarti

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भोजन खाने के बाद बोली जाने वाली वाणी | अन्नदेव की आरती | Sant Rampal Ji Maharaj | Annadev Ki Aarti

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‘‘भोजन खाने के बाद बोली जाने वाली वाणी’’

पाया प्रसाद मन भया थीर, रक्षा करैं मेरे गुरुदेव रूप में सतगुरु सत कबीर।

।।अन्नदेव की छोटी आरती।।
आरती अन्न देव तुम्हारी। जासे काया पलै हमारी। रोटी आदि रू रोटी अन्त। रोटी ही कूँ गावैं संत।।1।।
रोटी मध्य सिद्ध सब साध। रोटी देवा अगम अगाध। रोटी ही के बाजैं तूर। रोटी अनंत लोक भरपूर।।2।।
रोटी ही के राटारंभ। रोटी ही के हैं रण खंभ। रावण मांगन गया चून। तातें लंक भई बेरूंन।।3।।
मांडी बाजी खेले जूवा। रोटी ही पर कैरों पांडौं मूवा। रोटी पूजा आत्मदेव। रोटी ही परमात्म सेव।।4।।
रोटी ही के हैं सब रंग। रोटी बिना न जीतै जंग। रोटी मांगी गोरखनाथ। रोटी बिना न चलै जमात।।5।।
रोटी कृष्ण देव हो पाई। सहंस अठासी की क्षुधा मिटाई। तंदुल बिप्र कूँ दिये देख। रची सुदामा पुरी अलेख।।6।।
आधीन विदुर घर भोजन पाई। कैरों बूडे़ मान बड़ाई। मान बड़ाई से हैं दूर। आजिज के हरि सदा हजूर।।7।।
बूक बाकले दिये विचार। भये चकवे कई एक बार। बीट्ठल हो कर रोटी पाई। नाम देव की कला बधाई।।8।।
धन्ना भगत कूँ दिया बीज। जाका खेत निपाया रीझ। द्रुपद सुता कूँ दीया लीर। जाके अनंत बधाये चीर।।9।।
रोटी चार भार्या घाली। नरसीला की हुण्डी झाली। सांवल शाह सदा का सही। जाकी हुंडी तत्त पर लई।।10।।
जड़ कूँ दूध पिलाया जान। पूजा खाय गये पाषाण। बलि कूँ यज्ञ रची अश्वमेध। बावन होकर आये उमेद।।11।।
तीन पैड़ जगह दिया दान। बावन कूँ बलि छले निदान। नित बुन कपड़ा देते भाई। जाकै नौ लख बालद आई।।12।।
अबिगत केशव नाम कबीर। तातें टूटैं जम जंजीर। रोटी तैमूरलंग कूँ दीन्हीं। तातें सात पादशाही लीन्हीं।।13।।
रोटी ही के राज रू पाट। रोटी ही के हैं गज ठाठ। रोटी माता रोटी पिता। रोटी काटै क्षुधा बिथा।।14।।
दास गरीब कहै दरवेषा। रोटी बांटो सदा हमेशा।।15।।
गरीब, बुढ़िया और बाजीद जी, सुनही के आनंद। रोटी चारौं मुक्ति हैं, कटैं गले के फंद।
एक दाने का निकास, सहंस्र दानों का प्रकाश। जिस भण्डारे से अन्न निकसा, सो भण्डारा भरपूर, काल कंटक दूर।
सती अन्नदेव संतोषी पावै, जाकी वासना तीन लोक में समावै।।

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