सुर्य ग्रहण शान्ति मन्त्र ।। सुर्य ग्रह वैदिक मन्त्र बोलना सिखे ।। सुर्य ग्रह जप संख्या कीतनी
सूर्यग्रह
सूर्यपरिचय- पुराणों के मतानुसार सूर्य को कश्यप का पुत्र कहा गया है।
इनका वर्ण गुलाबी, मधु के तुल्य, इनके पीले-पीले नेत्र और चौखुटा शरीर तथा सिर पर जरा जरा से केश हैं। इनकी पत्नियों में छाया और संज्ञा आती हैं, पुत्र में शनि और यम और पुत्री में यमुना है। यह वृद्धावस्था के ग्रहदेव हैं, इनका वाहन सात अश्वों से युक्त रथ है। उस रथ के सारथी अरुण हैं। ये पूर्वदिशा के स्वामी हैं, इनकी प्रकृति सात्त्विक तथा इनकी जाति क्षत्रिय है। मनुष्य के आन्तरिक व्यक्तित्व के तृतीय रूप के स्वामी यही माने जाते हैं। यह मनुष्य की उन्नति और विकास का पूर्ण प्रतिनिधित्व कर आत्मविश्वास और भावुकता को संतुलित करते हैं। सम्भवतः नेत्र, दाँत, कान, रक्त और हड्डी पर यह अपना प्रभाव डालते हैं। इन्हें पूर्व दिशा का स्वामी कहा गया है। इनके मित्र चन्द्रमा और मंगल हैं, सम में मात्र बुद्ध हैं, इनके शत्रुओं में शुक्र, शनि और राहु हैं। ये सिंह राशि के स्वामी कहे गये हैं।
सूर्य से उत्पन्न रोग - सूर्य के अनिष्ट स्थान पर स्थित होने पर नेत्ररोग, शिरःशूल, प्रमेह, विषम ज्वर, अम्लशूल, पित्तरोग, हृदयरोग, हैजा एवं चर्मरोग होते हैं।
सूर्यशान्ति
रविवारव्रत - जिस व्यक्ति पर सूर्य की अकृपा हो, उसे रविवार का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस व्रत में ब्राह्म मुहूर्त में उठकर नित्यकर्म करके सन्ध्या इत्यादि के उपरान्त अरुणोदय काल में सूर्य को अर्घ्य देकर आदित्य हृदयस्तोत्र का पाठ करना चाहिए, उस दिन नमक नहीं खाना चाहिए।
दान की वस्तुएँ - माणिक्य, गेहूँ, गुड़, सवत्सा-गौ, कमल का फूल, नवीन गृह, लालचन्दन, लालवस्त्र, सोना, ताँबा, केसर, मूँगा आदि का दान रविवार के व्रत में अरुणोदय के समय करना चाहिए।
सूर्यार्घ्यविधि - सूर्य के उदय होने पर ताँबे के पात्र में लालचन्दन, लालपुष्प छोड़कर सूर्य का हृदय में ध्यान करते हुए निम्न विनियोग का उच्चारण करने के उपरान्त निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।
सूर्यार्घ्य विनियोगः - ॐ तत्सवितुरित्यस्य विश्वामित्र ऋषिः सविता देवता, गायत्री छन्दः, सूर्यार्घ्यदाने विनियोगः ।
पौ०क०वि०-२९
आवाहनम् - एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते। करूणाकर मे देव गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते ॥
ध्यानम्
रक्ताम्बुजासनमशेषगुणैकसिन्धं भानं समस्तजगतामधिपं भजामि । पद्मद्वयाभयवरान् दधतः कराब्जैर्माणिक्यमौलिमरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम् ॥
तन्त्रसारोक्तसूर्यमन्त्रः- ॐ घृणिः सूर्याय नमः । जपसंख्या ७०००, कलौ २८०००।
तन्त्रोक्तबीजमन्त्रः - ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः ।
बीजमन्त्रः - ॐ ह्रीँ हाँ सूर्याय नमः। जपसंख्या ७५००।
धारणार्थरत्नम् - माणिक्य। उपरत्नम् - विद्रुमः। धारणार्थ औषधिः - बिल्वमूल।
पुराणोक्तसूर्यजपमन्त्रः - ह्रीं जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम् । तमोरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरम् ॥
वैदिकमन्त्रविनियोगः - आकृष्णेनेति मन्त्रस्य, हिरण्यस्तूप ऋषिः, त्रिष्टुप्छन्दः, सवितादेवता सूर्यप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।
सबीजवैदिकमन्त्रः - ॐ ह्रां ह्रीँ ह्रौं सः भूर्भुवः स्वः ॐ आकृष्णेन रजसा
वर्त्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यञ्च । हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः हाँ ह्रीं ह्राँ ॐ । (सूर्याय नमः)।
वैदिकमन्त्रः - ॐ आकृष्णेन रजसा वर्त्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यञ्च ।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ॥
वैदिकहवनमन्त्रः - ॐ आकृष्णेन रजसा वर्त्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यञ्च । हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् स्वाहा ।।
सूर्यगायत्री - ॐ आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि तन्नोः भानुः प्रचोदयात् ॥
सूर्ययन्त्रम्
इस सूर्य के यन्त्र का प्रयोग वे ही व्यक्ति करे, जिनपर सूर्य की ग्रहदशा अथवा कुदृष्टि है। भोजपत्र पर अनार की कलम से लाल चन्दन द्वारा रविवार को इस यन्त्र का निर्माण करके सुवर्ण या ताँबे की गुष्टिका में यन्त्र भरकर विधिवत् पूजन कर पुरुष दायीं भूजा में और स्त्री बायर्यो भूजा में रविवार के दिन बांधना चाहिए ।।
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