एक स्वयंवर गीत - आरती मालवीय

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अपनी सभी सखियों को हरतालिका तीज की मंगलकामनाओं के साथ प्रस्तुत है एक बघेली स्वयंवर गीत । यूं तो आज शिक्षक दिवस है , लेकिन संयोग ऐसा कि आज के ही दिन 27 वर्ष पहले रज्जन और आभा परिणय सूत्र में बंधे थे । क्योंकि उस वर्ष शिक्षक दिवस और तीज एक ही दिन पड़े थे । इसलिए उन्हें आशीर्वाद दे रही हूं और शिक्षक दिवस
के अवसर पर अपने उन गुरुओं को प्रणाम करती हूं । जिनसे मुझे थोड़ी मोड़ी संगीत की रुचि मिली , पहले तो अपने बड़े दादा , फुआ दादी जिनके साथ हर पहर कुछ कुछ गुनगुनाते और सीखने का मौका मिला । इसके बाद समूह में बैठ कर जिन लोगों के साथ सीखा उनमें से इटवा वाली ताई, मरवा वाली काकी, सुजावल वाली शान्ति बुआ , घुमचाहाइ वाली मोटाई बुआ , रेमरी वाली रक्षा बुआ । भैंसवार वाली दादी । खुटहा वाली मम्मा आदि । तो प्रस्तुत है यह गीत - सुनिए

गीत के बोल -

सिया ब्याहन को भगमान
धनुहिया तोड़ें

छोटे हैं रामचंद्र , छोटी धनुहिया
छोटे हैं लछिमन वीर

सिया मन भारी बहुत सकुचनी
गौरा जी से लेतीं असीस

देस देस के भूपति आए
तोड़ें धनुष रघुवीर

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