राम निरंजन न्यारा रे। कबीर साहब

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राम निरंजन न्यारा रे, अंजन सकल पसारा रे !

अंजन उतपति, ॐ कार, अंजन मांगे सब विस्तार,
अंजन ब्रह्मा, शंकर, इन्द्र, अंजन गोपी संगि गोविंद रे ॥1।।

अंजन वाणी, अंजन वेद, अंजन किया नाना भेद,
अंजन विद्या, पाठ-पुराण, अंजन वो घट घटहिं ज्ञान रे ॥2॥

अंजन पाती, अंजन देव, अंजन ही करे, अंजन सेव,
अंजन नाचै, अंजन गावै, अंजन भेष अनंत दिखावै रे ॥3॥

अंजन कहों कहां लग केता? दान-पुनि-तप-तीरथ जेथा !
कहे कबीर कोई बिरला जागे, अंजन छाड़ि निरंजन लागे ! ॥4॥

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