महाकाल भैरवाष्टकम्
महाकालभैरवाष्टकम् अथवा तीक्ष्णदंष्ट्रकालभैरवाष्टकम्
Mahakaal Bhairav
Ashtakam
हिंद अर्थ
महाकालभैरवाष्टकम् या तीक्ष्णदंष्ट्र कालभैरवाष्टकम् भगवान कालभैरव की अत्यंत उग्र, रौद्र एवं रक्षक रूप में स्तुति है। इसमें भैरव को क्षेत्रपाल (क्षेत्र के रक्षक) रूप में वंदना की गई है।
१॥
यंयंयं यक्षरूपं… प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥
अर्थ:
जो यक्षरूप धारण किए हैं, जिनका तेज दसों दिशाओं में व्याप्त है, जिनकी उपस्थिति से पृथ्वी काँप उठती है।
जो संहार की मूर्ति हैं, जिनके सिर पर जटाओं में चंद्रमा सुशोभित है।
जो दीर्घकाय, भयंकर नखों और मुख वाले हैं, जिनका शरीर उर्ध्वरोम (रोम खड़े होने वाला) है।
जो पापों का नाश करने वाले हैं — ऐसे क्षेत्रपाल भैरव को बारंबार प्रणाम करें।
⸻
२॥
रंरंरं रक्तवर्णं… प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥
अर्थ:
जो रक्तवर्ण के हैं, जिनकी कटी-कटि पर सजीव तेज है, तीव्र दाँतों वाले हैं और भयंकर रूपधारी हैं।
जो भयंकर आवाज़ करते हैं, जिनकी गर्जना से आकाश थर्राता है।
जो हाथ में कालपाश (मृत्यु का फंदा) धारण किए हैं, कामदाहक अग्नि के समान प्रज्वलित हैं।
ऐसे दिव्य देहधारी क्षेत्रपाल भैरव को निरंतर प्रणाम करें।
⸻
३॥
लंलंलं वदन्तं… प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥
अर्थ:
जो ‘लं’ बीजमंत्र का उच्चारण करते हैं, जिनकी ललाट ललित है और लंबी जीभ से विकराल लगते हैं।
जो धूम्रवर्ण के हैं, विकट मुख और सूर्य के समान तेजस्वी हैं, भीषण रूपधारी हैं।
जो रुण्डमाला (कपालों की माला) पहनते हैं, जिनकी दृष्टि सूर्य-तुल्य है, ताम्र नेत्रों से कराल रूप में प्रकट होते हैं।
जो नग्न शरीर पर दिव्य आभूषण धारण करते हैं — उन क्षेत्रपाल भैरव को बारंबार प्रणाम करें।
⸻
४॥
वंवं वायुवेगं… प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥
अर्थ:
जो वायु के वेग के समान तीव्र हैं, भक्तों पर दया करने वाले हैं, ब्रह्मस्वरूप हैं और परम तत्व हैं।
जो हाथ में तलवार धारण किए हैं, तीनों लोकों का विलय करने की शक्ति रखते हैं, भयंकर तेजस्वी हैं।
जिनके गति से स्थिर पृथ्वी भी हिल जाती है, जो माया रूप हैं — उन क्षेत्रपाल भैरव को निरंतर प्रणाम करें।
⸻
५॥
शंशंशं शङ्खहस्तं… प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥
अर्थ:
जिनके हाथ में शंख है, जो चंद्रमा के समान धवल हैं, मोक्ष के पूर्ण तेजस्वी स्वरूप हैं।
जो महान हैं, जिनका कुल श्रेष्ठ है, जो गुप्त मंत्रों से पूजित होते हैं, सदा पूजनीय हैं।
जो भूतनाथ हैं, जो बालकों को भी आनंद देते हैं, किलकारियाँ लगाते हैं।
जो आकाश के समान व्यापक हैं — ऐसे भैरव को सतत प्रणाम करें।
⸻
६॥
खं खं खड्गभेदं… प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥
अर्थ:
जो खड्गधारी हैं, जिनका स्वरूप विष और अमृत का समन्वय है, जो काल के भी काल हैं, विकराल हैं।
जो तीव्र गति से जलते हैं, दह-दह करके समस्त तापन को भस्म कर देते हैं।
जिनकी हुंकार से गहन गर्जनाएँ होती हैं, जिनकी गर्जना से पृथ्वी काँप उठती है।
जो बालकों के समान खेल करते हैं — उन क्षेत्रपाल भैरव को बारंबार प्रणाम करें।
⸻
७॥
सं सं सं सिद्धयोगं… प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥
अर्थ:
जो सिद्ध योगियों के आराध्य हैं, जिनमें समस्त गुण पूर्ण रूप से हैं, जो देवों के भी देव हैं।
जो कमलनाभ विष्णु, शिव और ब्रह्मा रूप में हैं, जिनकी आँखें चंद्र, सूर्य और अग्नि हैं।
जो ऐश्वर्य के अधिपति हैं, सदा भय को हरने वाले हैं, जो आदिदेव के रूप हैं।
जो रौद्र रूपधारी हैं — उन भैरव को सतत प्रणाम करें।
⸻
८॥
हं हं हं हंसयानं… प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥
अर्थ:
जो हंसवाहन पर आरूढ़ हैं, जो हँसी और कलह से मुक्ति देने वाले योगियों के हर्षस्वरूप हैं।
जिनके नेत्रों से ब्रह्माण्ड कांप उठता है, जिनकी जटा मुकुट में बंधी है।
जिनका तांडव नाद समस्त देवताओं को आंदोलित कर देता है, जो कामदेव के गर्व को हरने वाले हैं।
जो भूतनाथ हैं — उन क्षेत्रपाल भैरव को बारंबार प्रणाम करें।
महाकालभैरवाष्टकम् / तीक्ष्णदंष्ट्र कालभैरवाष्टकम् |
यंयंयंयक्षरूपंदशदिशिविदितंभूमिकम्पायमानं
संसंसंहारमूर्तिंशिरमुकुटजटाशेखरंचन्द्रबिम्बम् ।
दंदंदंदीर्घकायंविक्रितनखमुखंचोर्ध्वरोमंकरालं
पंपंपंपापनाशंप्रणमतसततंभैरवंक्षेत्रपालम् ॥ १॥
रंरंरंरक्तवर्णंकटिकटिततनुंतीक्ष्णदंष्ट्राकरालं
घंघंघंघोषघोषंघघघघघटितंघर्झरंघोरनादम् ।
कंकंकंकालपाशंद्रुक्द्रुक्दृढितंज्वालितंकामदाहं
तंतंतंदिव्यदेहंप्रणामतसततंभैरवंक्षेत्रपालम् ॥ २॥
लंलंलंलंवदन्तंललललललितंदीर्घजिह्वाकरालं
धूंधूंधूंधूम्रवर्णंस्फुटविकटमुखंभास्करंभीमरूपम् ।
रुंरुंरुंरूण्डमालंरवितमनियतंताम्रनेत्रंकरालम्
नंनंनंनग्नभूषंप्रणमतसततंभैरवंक्षेत्रपालम् ॥ ३॥
वंवंवायुवेगंनतजनसदयंब्रह्मसारंपरन्तं
खंखंखड्गहस्तंत्रिभुवनविलयंभास्करंभीमरूपम् ।
चंचंचलित्वाऽचलचलचलिताचालितंभूमिचक्रं
मंमंमायिरूपंप्रणमतसततंभैरवंक्षेत्रपालम् ॥ ४॥
शंशंशंशङ्खहस्तंशशिकरधवलंमोक्षसम्पूर्णतेजं
मंमंमंमंमहान्तंकुलमकुलकुलंमन्त्रगुप्तंसुनित्यम् ।
यंयंयंभूतनाथंकिलिकिलिकिलितंबालकेलिप्रदहानं
आंआंआंआन्तरिक्षंप्रणमतसततंभैरवंक्षेत्रपालम् ॥ ५॥
खंखंखंखड्गभेदंविषममृतमयंकालकालंकरालं
क्षंक्षंक्षंक्षिप्रवेगंदहदहदहनंतप्तसन्दीप्यमानम् ।
हौंहौंहौंकारनादं,प्रकटितगहनंगर्जितैर्भूमिकम्पं
बंबंबंबाललीलंप्रणमतसततंभैरवंक्षेत्रपालम् ॥ ६॥
संसंसंसिद्धियोगंसकलगुणमखंदेवदेवंप्रसन्नं
पंपंपंपद्मनाभंहरिहरमयनंचन्द्रसूर्याग्निनेत्रम् ।
ऐंऐंऐंऐश्वर्यनाथंसततभयहरंपूर्वदेवस्वरूपं
रौंरौंरौंरौद्ररूपंप्रणमतसततंभैरवंक्षेत्रपालम् ॥ ७॥
हंहंहंहंसयानंहसितकलहकंमुक्तयोगाट्टहासं,
धंधंधंनेत्ररूपंशिरमुकुटजटाबन्धबन्धाग्रहस्तम् ।
तंतंतंकानादंत्रिदशलटलटंकामगर्वापहारं,
भ्रुंभ्रुंभ्रुंभूतनाथंप्रणमत सततं,भैरवंक्षेत्रपालम् ॥ ८॥
Информация по комментариям в разработке