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Скачать или смотреть Class 7 Sanskrit Chapter 2 नित्यं पिबामः सुभाषितरसम् अर्थ सहित l सस्वर गायन

  • Ramysanskritam
  • 2025-07-31
  • 256
Class 7 Sanskrit Chapter 2 नित्यं पिबामः सुभाषितरसम् अर्थ सहित l सस्वर गायन
Samskritclass 7 Sanskritदीपकम्NCERT 7नित्यं पिबामः सुभाषितरसंshlokसुभाति
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Описание к видео Class 7 Sanskrit Chapter 2 नित्यं पिबामः सुभाषितरसम् अर्थ सहित l सस्वर गायन

1.
वस्त्रेण वपुषा वाचा विद्यया विनयेन च ।
वकारैः पञ्चभिर्युक्तो नरो भवति पूजितः ॥
अर्थ:
जो पुरुष वस्त्र (अच्छा पहनावा), रूप (आकर्षक शरीर), वाणी (मधुर बोल), विद्या (ज्ञान), और विनय (विनम्रता) – इन पाँच "व" से युक्त होता है, वह सभी द्वारा सम्मानित होता है।

---

2.
षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता ।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता ॥
अर्थ:
जो पुरुष उन्नति चाहता है, उसे ये छह दोष छोड़ देने चाहिए – अधिक नींद, आलस्य, डर, क्रोध, सुस्ती, और काम को टालते रहना।

---

3.
अद्भिर्गात्राणि शुध्यन्ति मनः सत्येन शुध्यति ।
विद्यातपोभ्यां भूतात्मा बुद्धिर्ज्ञानेन शुध्यति ॥
अर्थ:
जल से शरीर की शुद्धि होती है, सत्य से मन की, विद्या और तप से आत्मा की और ज्ञान से बुद्धि की शुद्धि होती है।

---

4.
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ॥
अर्थ:
जो भूमि समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में स्थित है, वही भारतवर्ष कहलाती है, जहाँ भारती सन्तानें रहती हैं।

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5.
जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः ।
स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च ॥
अर्थ:
जैसे जल की बूंद-बूंद से घट धीरे-धीरे भरता है, वैसे ही थोड़ा-थोड़ा अभ्यास करने से विद्या, धर्म और धन की वृद्धि होती है।

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6.
यः पठति लिखति पश्यति परिपृच्छति पण्डितानुपाश्रयति ।
तस्य दिवाकरकिरणैः नलिनीदलमिव विस्तारिता बुद्धिः ॥
अर्थ:
जो व्यक्ति पढ़ता है, लिखता है, देखता है, प्रश्न करता है और विद्वानों का संग करता है – उसकी बुद्धि सूर्य की किरणों से प्रस्फुटित कमल के समान खिलती है।

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7.
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥
अर्थ:
मधुर वाणी से सभी प्रसन्न होते हैं, इसलिए प्रिय वचन ही बोलना चाहिए – बोलने में कौन-सा धन लगता है?

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8.
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः ।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ॥
अर्थ:
आलस्य मनुष्य के शरीर में स्थित सबसे बड़ा शत्रु है। परिश्रम (उद्यम) जैसा कोई मित्र नहीं, क्योंकि उसे अपनाकर कोई कभी दुखी नहीं होता।


9.
अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् ।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥
अर्थ:
अठारह पुराणों का सार व्यासजी ने दो पंक्तियों में कहा है – दूसरों की सहायता करना पुण्य है और दूसरों को कष्ट देना पाप है।

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