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Скачать или смотреть शिवजी के पास कहां से आया नाग, डमरु, त्रिशूल, त्रिपुंड और नंदी?

  • KahaniSuno
  • 2024-03-08
  • 349
शिवजी के पास कहां से आया नाग, डमरु, त्रिशूल, त्रिपुंड और नंदी?
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Описание к видео शिवजी के पास कहां से आया नाग, डमरु, त्रिशूल, त्रिपुंड और नंदी?

भगवान शिव का ध्यान करने मात्र से मन में जो एक छवि उभरती है वो एक वैरागी पुरुष की। इनके एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में डमरु, गले में सर्प माला, सिर पर त्रिपुंड चंदन लगा हुआ है। माथे पर अर्धचन्द्र और सिर पर जटाजूट जिससे गंगा की धारा बह रही है। थोड़ा ध्यान गहरा होने पर इनके साथ इनका वाहन नंदी भी नजर आता है। कहने का मतलब है कि शिव के साथ ये 7 चीजें जुड़ी हुई हैं।
आप दुनिया में कहीं भी चले जाइये आपको शिवालय में शिव के साथ ये 7 चीजें जरुर दिखेगी। आइये जानें कि शिव के साथ इनका संबंध कैसे बना यानी यह शिव जी से कैसे जुड़े। क्या यह शिव के साथ ही प्रकट हुए थे या अलग-अलग घटनाओं के साथ यह शिव से जुड़ते गए।
भगवान श‌िव सर्वश्रेष्ठ सभी प्रकार के अस्‍त्र-शस्‍त्रों के ज्ञाता हैं लेक‌िन पौराण‌िक कथाओं में इनके दो प्रमुख अस्‍त्रों का ज‌िक्र आता है एक धनुष और दूसरा त्र‌िशूल।

त्र‌िपुरासुर का वध और अर्जुन का मान भंग, यह दो ऐसी घटनाएं हैं जहां श‌िव जी ने अपनी धनुर्व‌‌िद्या का प्रदर्शन क‌िया था। जब‌क‌ि त्र‌िशूल का प्रयोग श‌िव जी ने कई बार क‌‌िया है।

त्र‌िशूल से श‌िव जी ने शंखचूर का वध क‌िया था। इसी से गणेश जी का स‌िर काटा था और वाराह अवतार में मोह के जाल में फंसे व‌िष्‍णु जी का मोह भंग कर बैकुण्ठ जाने के ल‌िए व‌िवश क‌िया था।
भगवान श‌िव के धनुष के बारे में तो यह कथा है क‌ि इसका आव‌िष्कार स्वयं श‌िव जी ने क‌िया था। लेक‌िन त्र‌िशूल कैसे इनके पास आया इस व‌िषय में कोई कथा नहीं है।

माना जाता है क‌ि सृष्ट‌ि के आरंभ में ब्रह्मनाद से जब श‌िव प्रकट हुए तो साथ ही रज, तम, सत यह तीनों गुण भी प्रकट हुए। यही तीनों गुण श‌िव जी के तीन शूल यानी त्र‌िशूल बने।

इनके बीच सांमजस्य बनाए बगैर सृष्ट‌ि का संचालन कठ‌िन था। इसल‌िए श‌िव ने त्र‌िशूल रूप में इन तीनों गुणों को अपने हाथों में धारण क‌िया।

भगवान श‌िव जी को संहारकर्ता के रूप में वेदों और पुराणों में बताया गया है। जब‌क‌ि श‌िव का नटराज रूप ठीक इसके व‌िपरीत है। यह प्रसन्न होते हैं और नृत्य करते हैं। इस समय श‌िव के हाथों में एक वाद्ययंत्र होता है ज‌‌िसे डमरू करते हैं।

इसका आकार रेत घड़ी जैसा है जो द‌िन रात और समय के संतुलन का प्रतीक है। श‌िव भी इसी तरह के हैं। इनका एक स्वरूप वैरागी का है तो दूसरा भोगी का है जो नृत्य करता है पर‌िवार के साथ जीता है।

इसल‌िए श‌िव के ल‌िए डमरू ही सबसे उच‌ित वाद्य यंत्र है। यह भी माना जाता है क‌ि ‌ज‌िस तरह श‌िव आद‌ि देव हैं उसी प्रकार डमरू भी आद‌ि वाद्ययंत्र है।

भगवन श‌िव के हाथों में डमरू आने की कहानी बड़ी ही रोचक है। सृष्ट‌ि के आरंभ में जब देवी सरस्वती प्रकट हुई तब देवी ने अपनी वीणा के स्वर से सष्ट‌ि में ध्वन‌ि जो जन्म द‌िया। लेक‌िन यह ध्वन‌ि सुर और संगीत व‌िहीन थी।

उस समय भगवान श‌िव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू बजाए और इस ध्वन‌ि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ। कहते हैं क‌ि डमरू ब्रह्म का स्वरूप है जो दूर से व‌िस्‍तृत नजर आता है लेक‌िन जैसे-जैसे ब्रह्म के करीब पहुंचते हैं वह संकु‌च‌ित हो दूसरे स‌िरे से म‌िल जाता है और फ‌िर व‌िशालता की ओर बढ़ता है। सृष्ट‌ि में संतुलन के ल‌िए इसे भी भगवान श‌िव अपने साथ लेकर प्रकट हुए थे।

भगवान श‌िव के साथ हमेशा नाग होता है। इस नाग का नाम है वासुकी। इस नाग के बारे में पुराणों में बताया गया है क‌ि यह नागों के राजा हैं और नागलोक पर इनका शासन है। सागर मंथन के समय इन्होंने रस्सी का काम क‌िया था ज‌िससे सागर को मथा गया था।

कहते हैं क‌ि वासुकी नाग श‌िव के परम भक्त थे। इनकी भक्त‌ि से प्रसन्न होकर श‌िव जी ने इन्हें नागलोक का राजा बना द‌िया और साथ ही अपने गले में आभूषण की भांत‌ि ल‌िपटे रहने का वरदान द‌िया।

नंदी के बारे में पुराणों में जो कथा म‌िलती है उसके अनुसार नंदी और श‌िव वास्तव में एक ही हैं। श‌िव ने ही नंदी रूप में जन्म ल‌िया था। कथा है क‌ि श‌िलाद नाम के ऋष‌ि मोह माया से मुक्त होकर तपस्या में लीन हो गए।

इससे इनके पूर्वज और प‌ितरों को च‌िंता हुई क‌ि इनका वंश समाप्त हो जाएगा। प‌ितरों की सलाह पर श‌िलाद ने श‌िव जी की तपस्या करके एक अमर पुत्र को प्राप्त क‌िया जो नंदी नाम से जाना गया।

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