चारभुजा part 2 || यहाँ श्रीं कृष्ण स्वयं आते हैं अपने भक्तों के कष्ठ हरने इस लिए आते हैं लाखो लोग

Описание к видео चारभुजा part 2 || यहाँ श्रीं कृष्ण स्वयं आते हैं अपने भक्तों के कष्ठ हरने इस लिए आते हैं लाखो लोग

उदयपुर/चारभुजाजी. मेवाड़ और मारवाड़ के आराध्य चारभुजानाथ (गढ़बोर) मंदिर की परंपराएं और सेवा-पूजा की मर्यादाएं अनूठी हैं। करीब 5285 साल पहले पांडवों के हाथों स्थापित इस मंदिर में कृष्ण का चतुर्भुज स्वरूप विराजित है। यहां के पुजारी गुर्जर समाज के 1000 परिवार हैं। इनमें सेवा-पूजा नंबर (ओसरा) में बंटा हुआ है। इसके अनुसार कुछ परिवारों का नंबर जीवन में सिर्फ एक बार (48 से 50 साल में) तो किसी को 4 साल के अंतर में आता है।

हर अमावस्या को नंबर बदलता है और अगला परिवार मुख्य पुजारी बनता है। इसका निर्धारण बरसों पहले गोत्र और परिवारों की संख्या के अनुसार हुआ था, जो अब भी चल रहा है। अभी पुजारी भरत गुर्जर के परिवार का नंबर चल रहा है, वे ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री वसुंधराराजे को पूजा करवाएंगे।
ओसरा चलने तक मंदिर में ही रहते हैं पुजारी, परिवार में मौत हो तब भी नहीं जा सकते
ओसरे के दौरान पाट पर बैठ चुके पुजारी को एक महीने के कठिन तप, मर्यादाओं में रहना पड़ता है। ओसरा चलने तक पुजारी घर नहीं जा सकते हैं, उन्हें मंदिर में ही रहना पड़ता है। परिवार या सगे-संबंधियों में मौत होने पर भी पूजा का दायित्व निभाना होता है। किसी भी कारण से मर्यादा भंग होने पर पुजारी स्नान कर नई धोती पहनते हैं। पूजा के ओसरे में एक महीने हर प्रकार के व्यसन से दूर रहने, बदन पर साबुन नहीं लगाने, ब्रह्मचर्य पालन की मर्यादाएं निभाते हैं। भगवान की रसोई में ओसरा निभाने वाले परिवार द्वारा चांदी के कलश में लाया जल ही काम में लिया जाता है।

मंदिर के बारे में ये भी रोचक
- शंख, चक्र, गदा, ढाल-तलवार, भाला ठाकुरजी को धराए जाते हैं ।
- मान्यता है कि प्रतिमा स्थापना के बाद पांडवों ने बद्रीनाथ में जाकर शरीर त्यागा था ।
- शृंगार में मोर मुकुट, बंशी सहित रत्नजड़ित मालाओं का आभूषण धराया जाता है
- सुबह 8 बजे से शाम 7.30 बजे तक खुले रहते हैं दर्शन।
- जन्माष्टमी पर भगवान के पोतड़े धोने की परंपरा निभाई जाती है।

Комментарии

Информация по комментариям в разработке