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Скачать или смотреть इकाई-1जनन (Reproduction)1पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन(Sexual Reproduction in Flowering Plants)

  • STUDY WITH SIDHUU
  • 2025-10-07
  • 0
इकाई-1जनन (Reproduction)1पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन(Sexual Reproduction in Flowering Plants)
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Описание к видео इकाई-1जनन (Reproduction)1पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन(Sexual Reproduction in Flowering Plants)

पादपों (आवृतबीजी पौधों का जीवन चक्र पुष्पी पादप (आवृतबीजी पौधे) बीजाणुजनक (sporophyte, 2n) होते हैं। ये अगुणित (haploid; 4) बीजाणुओं (spores) के द्वारा जनन करते हैं। इन पौधों में ये बीजाणु दो प्रकार के होते हैं अर्थात् ये पौधे विषमबीजाणुक (heterosporous) होते हैं। बीजाणुओं को लघु या सूक्ष्मबीजाणु (microspore) और दीर्घ या गुरुबीजाणु (megaspore) कहते हैं जो अंकुरित होकर क्रमशः नर तया मादा युग्मकोद्भिदों (gametophytes) का निर्माण करते हैं। इन्हीं के द्वारा युग्मकों (gametes) का निर्माण होता है। नर और मादा युग्मक के मिलने (निषेचन) से फिर द्विगुणित अवस्था आ जाती है। इस प्रकार बनी हुई कोशिका (2n) युग्मनज (zygote) कहलाती है। यही कोशिका भ्रूण (embryo) का निर्माण करती है। पूण बीज के अन्दर रहता है।

और उसके अनुप्रयोग

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बीज का भ्रूण अंकुरित होकर एक नये पौधे का निर्माण करता है। इससे बनने वाली नई संतति फिर से द्विगुणित या बीजाणुजनक पीढ़ी होती है। इस प्रकार, पीढ़ियों का एकान्तरण (alternation of generations) होता रहता है।

पुष्पी पादपों (आवृतबीजी पादपों में लैंगिक जनन-पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन के लिए अंग पुष्य में होते हैं।

जायांग

एवं पर्यावरण


चाड़ा दल

पुष्पवृन्त

पुकेसर






चित्र-एक प्रारूपिक उभयलिंगी पुष्प के विभिन्न भाग-पुष्प को

खोलकर दिखाया गया है।

सामान्यतः पुष्प में चार चक्र होते हैं-

(1) बाह्यदलपुंज (Calyx)- ये अनेक बाह्यदलों से बने होते हैं। (2) दलपुंज (Corolla)-ये अनेक दलों (petals) से बने होते हैं। (3) पुमंग (Androecium)- यह पुष्प का नर जनन अंग है जो अनेक पुंकेसरों से बना होता है।
(4) जायांग (Gynoecium)- यह पुष्प का मादा जनन अंग है जो एक या अनेक अण्डपों (carpels) से बना होता है।

नर जनन अंग एक पुंकेसर या लघुबीजाणुपर्ण (Micro-sporophyll)- पुंकेसर, जिसमें दो परागपालियाँ होती है, द्विकोष्ठी या डाइथीकस (dithecous) कहलाता है। कभी-कभी जैसे गुड़हल (Hibiscus rosa sinensis) आदि में यह एककोष्ठी या मोनोथीकस (monothecous) होता है। परागकोश के अन्दर परागकण (pollen grains) बनते हैं।

नर युग्मकोद्भिद : लघुबीजाणु या परागकण पराग पुट में विशेष

कोशिकाओं लघुबीजाणु मातृ कोशिकाओं (21) से लघुबीजाणु चतुष्कों का निर्माण अर्द्धसूत्री विभाजन के द्वारा होता है। अतः लघुबीजाणु जो बाद में परागकण बनते हैं अगुणित (n) होते हैं। सामान्यतः चतुष्क के बीजाणु एक-दूसरे से शीघ्र ही अलग हो जाते हैं और परागपुट या लघुबीजाणुधानी में बिखरे पड़े रहते हैं।

एक मातृ कोशिका से 4 परागकणों का निर्माण होता है। चतुष्क का प्रत्येक बीजाणु एक नर युग्मकोद्भिद की प्रथम कोशिका है।

परागण (Pollination) - किसी पुष्प के परागकोशों से निकले हुए परागकणों के उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर अथवा उसी जाति के किसी दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचने की क्रिया को परागण (pollination) कहते हैं। परागण में, परागकणों को किसी कर्मक द्वारा वर्तिकाग्र तक लाया जाता है। यहाँ इन परागकणों का अंकुरण होता है और पराग नलिकाएँ बनती हैं।

उपरोक्त विवरण के अनुसार परागण सामान्यतः दो प्रकार का होता है-

(i) स्व-परागण (Self-pollination or autogamy) - परागकणों के उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचने की क्रिया।

(ii) पर-परागण (Cross-pollination or allogamy) - परागकणों के उसी जाति के किसी दूसरे पौधों पर लगे पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचने

की क्रिया।

मादा जनन अंग जायोग या स्त्रीकेसर अथवा अण्डप या गुरुबीजाणुपर्ण (Megasporophyll) - एक पुष्प का जायांग (gynoecium) एक या अधिक अण्डपों के मिलने से बनता है। यह एक

स्त्रीकेसर या गुरुबीजाणुपर्ण (carpel or megasporophyll) है। इसके तीन प्रमुख भाग किए जा सकते हैं- हैं- स्वतन्त्र सिरा जो परागकणों को ग्रहण करता करता है, वर्तिकाग्र कहलाता है। आधार का फूला हुआ भाग अण्डाशय (ovary) कहलाता है। अण्डाशय तथा वर्तिकाग्र के मध्य एक वृन्त की तरह की संरचना वर्तिका (style) कहलाती है। कुछ पौधों के पुष्पों में जायांग के अवयव (अण्डप) आपस में संयुक्त

(5)
(

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