रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 53 - गुरु सन्दीपनि के मृत पुत्र को वापस लाना

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Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 53 - Rishi Sandipani narrates the story of Ravana slaughter by Sri Rama

गुरु सन्दीपनि श्रीकृष्ण व बलराम को शिक्षा प्रदान करते हुए कहते हैं कि भगवान विष्णु ने इस धरती पर भगवान राम का जो अवतार लिया उसके दो प्रयोजन थे। पहला यह कि वह मानव मर्यादा के उच्च मापदण्ड स्थापित करना चाहते थे जो युगों युगों तक मानव जाति को प्रेम, बलिदान और सभ्यता के पथ पर चलना सिखाये और यह सिखाये कि किसी भी दशा में अपना धर्म न छोड़े और दुखों से विचलित हुए बिना अपने कर्म करे। इसी कारण वह मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये। गुरु सन्दीपनि राम कथा को आगे सुनाते हैं। जब श्रीराम वनवास में थे तब एक दिन रावण की बहन शूर्पणखा ने उन्हें देखा और देखते ही मोहित हो गयी। उसने सुन्दर स्त्री का रूप धारण किया और श्रीराम के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा। राम ने इसे यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि वह विवाहित हैं। तब शूर्पणखा क्रोध में आ गयी। उसने सीता को खाने के लिये अपना राक्षसी रूप पुनः धारण कर लिया। यह देख लक्ष्मण ने तलवार से उसके नाक कान काट दिये। लंकापति रावण ने अपनी बहन के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिये सीता हरण की योजना बनायी। उसने मायावी राक्षस मारीचि को स्वर्ण मृग बनाकर पंचवटी भेज दिया। श्रीराम सीता के कहने पर उस स्वर्ण मृग को पकड़ने उसके पीछे गये। इतने में रावण भिक्षा माँगने के बहाने कुटिया में गया और सीता को उठा ले गया। उसका विमान आकाश मार्ग से जा रहा था, तभी सीता की पुकार सुनकर गिद्धराज जटायु ने रावण पर हमला कर दिया किन्तु रावण ने अपनी तलवार से जटायु के दोनों पंख काट कर उसे धरती पर गिरा दिया। राम व लक्ष्मण जब वापस कुटिया आये तो उन्हें सीता वहाँ नहीं मिली। सीता की खोज में वन वन भटकते हुए राम लक्ष्मण को मार्ग में जटायु मिले। घायल जटायु ने प्राण त्यागने से पूर्व उन्हें बताया कि सीता को लंकापति रावण उठाकर दक्षिण दिशा की ओर गया है। राम और लक्ष्मण दक्षिण दिशा की ओर गये। वहा ऋष्यमूक पर्वत उनकी भेंट हनुमान और सुग्रीव से हुई। हनुमान को सीता की खोज में लंका भेजा गया। वायुमार्ग से लंका जाते समय हनुमान को सुरसा नामक राक्षसी ने रोक लिया। सुरसा को ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त था कि कोई भी उसे पार करके आगे नहीं जा सकता था। सबको उसके मुख में आना ही पड़ता था। हनुमान ने युक्ति से काम लिया। उन्होंने अपना कद बढ़ा लिया। यह देख सुरसा ने अपना मुँह भी बड़ा कर लिया। तब हनुमान ने यकायक लघुरूप धारण कर लिया। वे सुरसा के मुख के अन्दर गये और फुर्ती के साथ बाहर निकल आये। इस तरह उन्होंने ब्रह्मा जी के वरदान की रक्षा भी कर ली और सुरसा का भोजन बनने से भी बच गये। लंका की अशोक वाटिका में हनुमान जी की भेंट सीता जी से हुई। उन्होंने प्रभु श्रीराम की अंगूठी सीता जी को दिखाकर विश्वास दिलाया कि वह रामदूत हैं। उसी समय रावण के पुत्र मेघनाद ने वहाँ आकर हनुमान पर ब्रह्मपाश का प्रहार किया। ब्रह्मा जी का मान रखने के लिये हनुमान स्वयं इसमें बँध गये। बंदी हनुमान को रावण की राजसभा में लाया गया। हनुमान ने रावण से कहा कि वह सीताजी को वापस लौटाकर श्रीराम की शरण में चला जाये। रावण ने क्रोधित होकर हनुमान की पूँछ जला देने का आदेश दिया। हनुमान ने अपनी जलती पूँछ से पूरी लंका में आग लगा दी। लंका दहन के बाद हनुमान श्रीराम के पास लौट आये। उनसे सीता का पता मिलने के बाद श्रीराम ने वानर सेना के साथ लंका की ओर कूच किया। रामेश्वरम् पहुँचकर श्रीराम ने भगवान शंकर की पूजा की और सागर पर सेतुबन्ध किया। वानर जिस पत्थर पर श्रीराम लिखकर समुद्र में डालते थे, वह डूबता नहीं था। पत्थरों के सेतु पर चलकर राम की सेना लंका पहुँच गयी। दोनों पक्षों में भीषण युद्ध हुआ। रावण ने कुम्भकरण को निद्रा से जगाकर युद्ध करने भेजा लेकिन वह मारा गया। रावण का परम शूरवीर पुत्र मेघनाद भी युद्ध में लक्ष्मण के हाथों मारा गया। अन्त में राम रावण के बीच युद्ध हुआ जिसमें श्रीराम ने रावण की नाभि का अमृत अपने बाण से सुखा दिया और फिर उसका वध कर दिया। सीता को अशोक वाटिका से मुक्त करा लिया गया। राम सीता और लक्ष्मण रावण के पुष्पक विमान से अयोध्या वापस लौटे। उनके आने से पूरी अयोध्या में दीपोत्सव मनाया गया। त्रेतायुग में भगवान विष्णु के अवतार की कथा सुनाकर गुरु सन्दीपनि श्रीकृष्ण और बलराम से कहते हैं कि द्वापर युग में भी भगवान का अवतार होगा लेकिन किस रूप में होगा, मैं यह नहीं जानता। महर्षि संदीपनि इच्छा व्यक्त करते हैं कि यदि मेरे जीवनकाल में प्रभु का अवतार हो जाये तो उनका दर्शन लाभ मिल जायेगा। श्रीकृष्ण अपने गुरु की इच्छा सुनकर मुस्कुराते हैं।


Produced - Ramanand Sagar / Subhash Sagar / Pren Sagar
निर्माता - रामानन्द सागर / सुभाष सागर / प्रेम सागर
Directed - Ramanand Sagar / Aanand Sagar / Moti Sagar
निर्देशक - रामानन्द सागर / आनंद सागर / मोती सागर
Chief Asst. Director - Yogee Yogindar
मुख्य सहायक निर्देशक - योगी योगिंदर
Asst. Directors - Rajendra Shukla / Sridhar Jetty / Jyoti Sagar
सहायक निर्देशक - राजेंद्र शुक्ला / सरिधर जेटी / ज्योति सागर
Screenplay & Dialogues - Ramanand Sagar
पटकथा और संवाद - संगीत - रामानन्द सागर
Camera - Avinash Satoskar
कैमरा - अविनाश सतोसकर
Music - Ravindra Jain
संगीत - रविंद्र जैन
Lyrics - Ravindra Jain
गीत - रविंद्र जैन
Playback Singers - Suresh Wadkar / Hemlata / Ravindra Jain / Arvinder Singh / Sushil
पार्श्व गायक - सुरेश वाडकर / हेमलता / रविंद्र जैन / अरविन्दर सिंह / सुशील
Editor - Girish Daada / Moreshwar / R. Mishra / Sahdev
संपादक - गिरीश दादा / मोरेश्वर / आर॰ मिश्रा / सहदेव

Cast / पात्र
Sarvadaman D. Banerjee
सर्वदमन डी. बनर्जी
Swapnil Joshi
स्वप्निल जोशी
Ashok Kumar
अशोक कुमार बालकृष्णन

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